यूपी में जाति पर जंग, मायावती बोलीं- धोखा दे रही है योगी सरकार
बता दें कि राज्य सरकार ने यह फैसला अदालत के उस आदेश के अनुपालन में जारी किया है जिसमें उसने अति पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति का जन्म प्रमाण पत्र जारी करने को कहा था. लंबे समय से इन जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने की कवायद कई सरकारें भी कर चुकी हैं पर उनको इसमें सफलता नहीं मिल सकी.
नई दिल्ली: योगी सरकार की उत्तर प्रदेश में 17 पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल किए जाने को लेकर बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने कड़ा विरोध जताया है. मायावती ने प्रेस कांफ्रेंस कर कहा कि कहा कि योगी सरकार का ये आदेश पूरी तरह से गैरकानूनी और असंवैधानिक है.
मायावती ने कहा कि योगी सरकार का फैसला 17 ओबीसी जातियों के लोगों के साथ एक धोखा है. इन लोगों को किसी भी श्रेणी का लाभ नहीं मिल पाएगा, क्योंकि यूपी सरकार उन्हें ओबीसी नहीं मानेंगी.
मायावती ने आगे कहा कि उन्हें SC कैटेगरी से संबंधित लाभ नहीं मिलेगा क्योंकि कोई भी राज्य सरकार उन्हें अपने आदेशों के माध्यम से किसी भी श्रेणी में ना डाल सकती है ना उन्हें हटा सकती है.
बसपा सुप्रीमो ने कहा, ''हमारी पार्टी ने 2007 में केंद्र में तत्कालीन कांग्रेस सरकार को लिखा था कि इन 17 जातियों को SC श्रेणी में जोड़ा जाए और SC श्रेणी आरक्षण कोटा बढ़ाया जाए. उन्होंने कहा कि केंद्र में न तो तत्कालीन सरकार ने और ना तो वर्तमान सरकार ने इसके बारे में कुछ किया. यह दुखद है.''
बता दें कि राज्य सरकार ने यह फैसला अदालत के उस आदेश के अनुपालन में जारी किया है जिसमें उसने अति पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति का जन्म प्रमाण पत्र जारी करने को कहा था. लंबे समय से इन जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने की कवायद कई सरकारें भी कर चुकी हैं पर उनको इसमें सफलता नहीं मिल सकी. वहीं योगी सरकार के इस फैसले का दारोमदार भी इस बाबत निकट भविष्य में कोर्ट द्वारा दिए जाने वाले अंतिम फैसले पर टिका है.
इन जातियों को मिलेगा फायदा? उल्लेखनीय है कि बीते दो दशक से 17 अति पिछड़ी जातियों कहार, कश्यप, केवट, मल्लाह, निषाद, कुम्हार, प्रजापति, धीवर, बिंद, भर, राजभर, धीमर, बाथम, तुरहा, गोडिया, मांझी व मछुआ को अनुसूचित जाति में शामिल करने की कोशिशें की जारी है. सपा और बसपा सरकार में भी इसे चुनावी फायदे के लिए अनुसूचित जाति में शामिल तो किया गया पर उनका यह फैसला परवान नहीं चढ़ पाया.
इस बीच यह मामला अदालत में भी पहुंचा और वर्ष 2016 में अदालत ने इस बाबत जारी किए गये राज्य सरकार के आदेश पर स्टे लगा दिया. वहीं केंद्र सरकार में भी इन जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल कराने की कोशिशें जारी रही. इसके पीछे यह तर्क दिया जाता रहा कि इन सभी जातियों की सामाजिक, आर्थिक व शैक्षणिक स्थिति निम्न स्तर की है और ये जातियां अनुसूचित जाति की सूची में शामिल होने की सभी शर्तें पूरी करती हैं. साथ ही इन जातियों को एससी की सूची में शामिल किए जाने से वर्तमान अनुसूचित जातियों को कोई नुकसान भी नहीं होगा.
सारे कमिश्नर व डीएम को भेजा आदेश प्रमुख सचिव समाज कल्याण मनोज सिंह की ओर से इस बाबत सभी कमिश्नर और डीएम को आदेश जारी किया गया है जिसमें कहा गया है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट में इस बाबत जारी जनहित याचिका पर पारित आदेश का अनुपालन सुनिश्चित किया जाए. इन जातियों को परीक्षण और सही दस्तावेजों के आधार पर एससी का जाति प्रमाण पत्र जारी किया जाए.