यूपी: 17 पिछड़ी जातियों को SC में शामिल करने फैसले को तुरंत वापस ले योगी सरकार- सतीश चन्द्र मिश्रा
नियम के मुताबिक़ कोई भी सरकार किन्ही जातियों को एससी कैटेगरी में न तो शामिल कर सकती है और न ही उसे बाहर कर सकती है. जातियों को एससी में शामिल करने या बाहर निकालने का अधिकार सिर्फ संसद में क़ानून बनाकर ही किया जा सकता है.
नई दिल्ली: बसपा सुप्रीमो मायावती के बाद बहुजन समाज पार्टी के वरिष्ठ नेता सतीश चन्द्र मिश्रा ने योगी सरकार के 17 पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने के फैसले पर सवाल उठाए हैं. सतीश मिश्रा ने कहा कि बिना संविधान में संशोधन के इस तरह का आदेश नहीं जारी हो सकता. लिहाजा उत्तर प्रदेश सरकार को एक एडवाइजरी जारी कर कहा जाए कि वह अपने इस फैसले को तुरंत वापस ले.
मायावती ने क्या कहा उत्तर प्रदेश में 17 पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल किए जाने को लेकर बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने कड़ा विरोध जताया है. मायावती ने प्रेस कांफ्रेंस कर कहा कि कहा कि योगी सरकार का ये आदेश पूरी तरह से गैरकानूनी और असंवैधानिक है.
मायावती ने कहा कि योगी सरकार का फैसला 17 ओबीसी जातियों के लोगों के साथ एक धोखा है. इन लोगों को किसी भी श्रेणी का लाभ नहीं मिल पाएगा, क्योंकि यूपी सरकार उन्हें ओबीसी नहीं मानेंगी.
मायावती ने आगे कहा कि उन्हें SC कैटेगरी से संबंधित लाभ नहीं मिलेगा क्योंकि कोई भी राज्य सरकार उन्हें अपने आदेशों के माध्यम से किसी भी श्रेणी में ना डाल सकती है ना उन्हें हटा सकती है.
योगी सरकार का फैसला
बता दें कि राज्य सरकार ने यह फैसला अदालत के उस आदेश के अनुपालन में जारी किया है जिसमें उसने अति पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति का जन्म प्रमाण पत्र जारी करने को कहा था. लंबे समय से इन जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने की कवायद कई सरकारें भी कर चुकी हैं पर उनको इसमें सफलता नहीं मिल सकी. वहीं योगी सरकार के इस फैसले का दारोमदार भी इस बाबत निकट भविष्य में कोर्ट द्वारा दिए जाने वाले अंतिम फैसले पर टिका है.
सुप्रीम कोर्ट क्या कहता है
इस तरह के मामलों के जानकार और इलाहाबाद हाईकोर्ट के वकील राकेश कुमार गुप्ता का कहना है कि इस बारे में सुप्रीम कोर्ट भी स्थिति साफ कर चुका है. कोर्ट ने तो इसी तरह के एक मामले में टिप्पणी करते हुए यह भी कहा है कि ज़्यादा वोट या सीटें पाकर सरकारें जनप्रिय तो हो सकती हैं, लेकिन इसके बावजूद उन्हें काम नियम-क़ानून व संविधान के मुताबिक़ ही करने का अधिकार है.
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