अयोध्या मामला: सीएम योगी ने कहा- हम जानते थे कि मध्यस्थता से हल नहीं निकलने वाला
ये मामला सुप्रीम कोर्ट में 9 साल से लंबित है. 2010 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने विवादित जगह पर प्राचीन हिंदू मंदिर होने की बात स्वीकार की थी. लेकिन जमीन को तीन हिस्सों में बांट दिया था. दो तिहाई हिस्सा हिंदू पक्ष को मिला था. जबकि एक तिहाई हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया गया था.
अयोध्या: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि मंदिर-मस्जिद मामला सुलझाने में मध्यस्थता के प्रयास सफल नहीं हो सके. वह जानते थे कि इससे हल नहीं निकलने वाला. योगी ने शनिवार को अयोध्या पहुंचकर भगवान राम की प्रतिमा के लिए प्रस्तावित स्थापना स्थल का निरीक्षण किया. इस दौरान उन्होंने कहा, "न्यायालय ने मध्यस्थता के लिए जो टीम गठित की, वो विफल रही. हम जानते थे कि इससे हल नहीं निकलने वाला. अब 6 अगस्त से प्रतिदिन सुनवाई होनी है."
उन्होंने कहा, "मुझे उम्मीद है कि हाईकोर्ट के निर्णय के परिमार्जन में सुप्रीम कोर्ट जन भावनाओं का सम्मान करेगा. अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण का रास्ता साफ हो, हर भारतीय की यही इच्छा है, लेकिन बड़े काम के लिए भूमिका भी बड़ी होनी चाहिए."
योगी ने राम मंदिर आंदोलन से जुड़े संत दिवंगत रामचंद्र दास के नाम से दिगंबर अखाड़ा के परिसर में निर्मित बहुउद्देश्यीय हॉल का उद्घाटन किया.
मुख्यमंत्री ने कहा, "अयोध्या जैसा इतिहास किसी का नहीं है. अयोध्या में त्योहारों में साफ-सफाई नहीं होती थी, लेकिन जब से हमारी सरकार आई और दीपोत्सव कार्यक्रम की शुरुआत की, तब लोगों ने हमें धन्यवाद दिया."
उन्होंने कहा, "अयोध्या को हम पर्यटन के शिखर पर ले जाना चाहते हैं. इसकी योजना पर प्रदेश सरकार काम कर रही है. कुछ दिनों के बाद बड़ी योजनाएं जमीन पर दिखेंगी. दीपोत्सव को सारे विश्व में सराहना मिली. अब त्रेतायुग को पहचान अयोध्या में रिक्रिएट करके रामायण काल के म्यूजियम को अंतिम रूप दिए जाने की योजना पर काम हो रहा है."
योगी ने कहा कि अयोध्या में एक नई पहल शुरू होने वाली है. पर्यटन को लेकर यूपी सरकार बहुत काम कर रही है.
उन्होंने कहा, "परमहंस रामचंद्र दास के प्रति विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं. परमहंस जी का जीवन समाज के लिए समर्पित रहा है. राम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन में परमहंस जी ने अग्रणी भूमिका निभाई. परमहंस जी आजीवन राम के मूल्यों को स्थापित करने का प्रयास करते रहे. लाखों कारसेवकों ने इस आंदोलन के प्रति अपना जीवन समर्पित कर दिया. हमारे दादा गुरु दिग्विजयनाथ महाराज सन् 1934 से ही मंदिर आंदोलन से जुड़े रहे."