नई दिल्ली: स्मारक घोटाले को लेकर ईडी की टीमें यूपी में 7 जगह छापेमारी कर रही है ये स्मारक मायावती के कार्यकाल में बने थे. 1400 करोड़ के इस घोटाले की जांच विजलेंस और ईडी की टीमें कर रही हैं. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मायावती राज में हुए स्मारक घोटाले को लेकर बेहद सख्त रुख अपनाते हुए इस मामले में चल रही विजलेंस जांच की स्टेटस रिपोर्ट तलब की थी.
हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने इस मामले में सुनवाई के दौरान तल्ख़ टिप्पणी करते हुए कहा था कि जनता के धन का दुरूपयोग करने का कोई भी दोषी बचना नहीं चाहिए. दोषी कितना भी रसूखदार हो, उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी ही चाहिए. अदालत ने विजलेंस जांच की धीमी रफ़्तार पर भी सवाल उठाए थे और यूपी सरकार से पूछा है कि क्यों न इस मामले की जांच सीबीआई या एसआईटी को सौंप दी जाए.
14 अरब, 10 करोड़, 83 लाख, 43 हजार के घोटाले का आरोप
गौरतलब है कि मायावती ने 2007 से 2012 तक के अपने कार्यकाल में लखनऊ-नोएडा में अम्बेडकर स्मारक परिवर्तन स्थल, मान्यवर कांशीराम स्मारक स्थल, गौतमबुद्ध उपवन, ईको पार्क, नोएडा का अम्बेडकर पार्क, रमाबाई अम्बेडकर मैदान और स्मृति उपवन समेत पत्थरों के कई स्मारक तैयार कराए थे. इन स्मारकों पर सरकारी खजाने से 41 अरब 48 करोड़ रूपये खर्च किये गए थे. आरोप लगा था कि इन स्मारकों के निर्माण में बड़े पैमाने पर घपला कर सरकारी रकम का दुरूपयोग किया गया है. सत्ता परिवर्तन के बाद इस मामले की जांच यूपी के तत्कालीन लोकायुक्त एनके मेहरोत्रा को सौंपी गई थी. लोकायुक्त ने 20 मई 2013 को सौंपी गई अपनी रिपोर्ट में 14 अरब, 10 करोड़, 83 लाख, 43 हजार का घोटाला होने की बात कही.
लोकायुक्त की जांच रिपोर्ट में कुल 199 लोग आरोपी
लोकायुक्त की रिपोर्ट में कहा गया था कि सबसे बड़ा घोटाला पत्थर ढोने और उन्हें तराशने के काम में हुआ है. जांच में कई ट्रकों के नंबर दो पहिया वाहनों के निकले थे. इसके अलावा फर्जी कंपनियों के नाम पर भी करोड़ों रूपये डकारे गए. लोकायुक्त ने 14 अरब 10 करोड़ रूपये से ज़्यादा की सरकारी रकम का दुरूपयोग पाए जाने की बात कहते हुए डिटेल्स जांच सीबीआई या एसआईटी से कराए जाने की सिफारिश की थी. सीबीआई या एसआईटी से जांच कराए जाने की सिफारिश के साथ ही बारह अन्य संस्तुतियां भी की गईं थीं. लोकायुक्त की जांच रिपोर्ट में कुल 199 लोगों को आरोपी माना गया था. इनमे मायावती सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे नसीमुद्दीन सिद्दीकी और बाबू सिंह कुशवाहा के साथ ही कई विधायक और तमाम विभागों के बड़े अफसर शामिल थे.
पूर्व की अखिलेश सरकार ने लोकायुक्त द्वारा इस मामले में सीबीआई या एसआईटी जांच कराए जाने की सिफारिश को नजरअंदाज करते हुए जांच सूबे के विजिलेंस डिपार्टमेंट को सौंप दी थी. विजिलेंस ने एक जनवरी साल 2014 को गोमती नगर थाने में नसीमुद्दीन सिद्दीकी और बाबू सिंह कुशवाहा समेत उन्नीस नामजद व अन्य अज्ञात के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर अपनी जांच शुरू की. क्राइम नंबर 1/2014 पर दर्ज हुई एफआईआर में आईपीसी की धारा 120 B और 409 के तहत केस दर्ज कर जांच शुरू की गई. तकरीबन पौने पांच साल का वक्त बीतने के बाद भी अभी तक न तो इस मामले में चार्जशीट दाखिल हो सकी है और न ही विजिलेंस अपनी जांच पूरी कर पाई है.
अदालत ने कहा था- अरबों के घोटाले का कोई भी दोषी कतई बचना नहीं चाहिए
भावेश पांडेय की पीआईएल में विजिलेंस द्वारा राजनीतिक दबाव में जांच को लटकाए जाने और इस मामले में लीपापोती किये जाने के आरोप लगाए गए थे. पीआईएल के जरिये लोकायुक्त की सिफारिश के तहत पूरा मामला सीबीआई को ट्रांसफर किये जाने की अपील भी की गई है. अर्जी में यह भी कहा गया है कि मामले में चूंकि तमाम हाई प्रोफ़ाइल लोग आरोपी हैं, इसलिए इसमें लीपापोती की जा रही है. याचिकाकर्ता ने सीधे तौर पर मायावती का नाम लिए बिना यह आशंका जताई है कि अगर सीबीआई या एसआईटी इस मामले में जांच करती है तो कई और चौंकाने वाले हाई प्रोफ़ाइल लोगों की मिलीभगत भी सामने आ सकती है. अदालत ने इस मामले में सख्त रवैया अपनाते हुए विजिलेंस जांच की स्टेटस रिपोर्ट एक हफ्ते में तलब कर ली और टिप्पणी की कि अरबों के घोटाले का कोई भी दोषी कतई बचना नहीं चाहिए, भले ही वह कितना भी रसूखदार क्यों न हो.