नई दिल्ली/साहिबाबाद: उत्तर प्रदेश का चुनावी बिगुल बज चुका है. कल यानी 11 फरवरी को पहले चरण का मतदान होना है. पहले चरण में 836 राजनीतिक धुरंधर सियासत के अखाड़े में अपने-अपने दांव चल चुके हैं, जिनके भाग्य शनिवार को ईवीएम मशीन में कैद हो जाएंगे. इस पहले चरण में पश्चिमी उत्तरप्रदेश की जिन 73 सीटों के लिए मतदान होना है उनमें एक ऐसी सीट की साख भी दांव पर है जो मतदाताओं के लिहाज़ से देश की सभी बड़ी विधानसभा सीट है.
जी हां, हम बात कर रहे हैं एक ऐसी सीट की जहां दिल्ली में चलने वाली डीटीसी की बस भी पहुंचती है और जहां सड़क पार करने पर आप दिल्ली में प्रवेश कर जाते हैं. हम बात कर रहे हैं उत्तरप्रदेश के एनसीआर इलाके में मौजूद साहिबाबाद विधानसभा सीट के खोड़ा कॉलोनी इलाके की. दिल्ली, नोएडा और नेशनल हाइवे से सटे होने के बावजूद पिछड़ापन और गंदगी यहां की मुख्य समस्या है.
इंडस्ट्रियल एरिए के लिए जानी जाने वाली साहिबाबाद विधानसभा क्षेत्र का ये वो इलाका है जहां दिल्ली-एनसीआर में रोजगार की तलाश में आए बिहार, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, झारखंड के मजदूरों की भारी जनसंख्या रहती है. ये इलाका साहिबाबाद सीट की हार और जीत तय करने का बड़ा माद्दा रखता है. आइये अब जानते हैं कि इस सीट का समीकरण क्या है.
जानें क्या है साहिबाबाद विधानसभा सीट का गुणा-भाग?
साहिबाबाद विधानसभा सीट में कुल 8.81 लाख वोटर हैं. जिनमें से लगभग 1 लाख 81 हज़ार वोटर सिर्फ खोड़ा कॉलोनी इलाके में अपने मत का इस्तेमाल करते हैं. जो कि इस सीट पर हार-जीत का फैसला करने में बहुत अहम है. इस सीट से मौजूदा विधायक बहुजन समाज पार्टी के पं. अमरपाल शर्मा हैं जिन्होंने इस बार अपनी पार्टी बदलकर कांग्रेस का हाथ थाम लिया है. पिछली बार इस सीट पर अमरपाल शर्मा को खोड़ा इलाके से 49 हज़ार वोट मिले थे और बीजेपी के सुनील शर्मा इस सीट से महज़ 26 हजार वोटों के अंतर से हार गई थी.
इस बार भी बीजेपी ने साहिबाबाद विधानसभा से सुनील कुमाल शर्मा को ही अपना उम्मीदवार बनाया है. जबकि बीएसपी ने इस सीट पर मुस्लिम कैंडिडेट जलालउद्दीन को टिकट दिया है. बीजेपी के लिए इस सीट पर प्रचार करने के लिए खुद केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी भी यहां पहुंची और रैली में उन्होंने इस विधानसभा को साल 2011 में मिले 300 करोड़ के पैकेज का भी ज़िक्र किया. अब आप समझ गए होंगे कि इस सीट का पूरा समीकरण क्या है.
देश की सबसे बड़ी विधानसभा सीट की अहमियत को ध्यान में रखते हुए एबीपी न्यूज़ की टीम ने खोड़ा कॉलोनी इलाके में हर वर्ग से उनके चुनावी मुद्दे और राय जानने की कोशिश की. जिनमें दिहाड़ी मजदूर से लेकर मध्यम वर्ग के दुकानदार तक शामिल रहे. अब एक नज़र डालते हैं इस सीट पर किस वर्ग पर किस पार्टी की पकड़ आती है नज़र.
रेहड़ी-पटरी वालों की राय:
खोड़ा कॉलोनी में बड़ी तादाद में छोटे व्यापारी रहते हैं. जिनसे बात करने पर उन्होंने अपने मन की बात की. रेहड़ी पटरी वाले व्यापारी इलाके के मौजूदा विधायक अमरपाल शर्मा से निराश नज़र आए और इलाके में मौजूद ना रहने की बात कबूली. वहीं कुछ छोटे रेहड़ी वालों ने इस बात पर भी सहमति जताई कि विधायक जी के चुने जाने के बाद इलाके में बिजली का समस्या का समाधान हुआ है. लेकिन बाकी हालात जस के तस हैं.
पीएम नरेन्द्र मोदी के नोटबंदी के सवाल पर रेहड़ी-पटरी, चाय वालों में एकता दिखी और उन्होंने इस फैसले को देशहित में बताया. जबकि परेशानी हुई इस बात से भी इंकार नहीं किया. कुछ लोगों का मानना हैं कि अब परेशानी खत्म हो गई है और देशहित में ये एक सही फैसला साबित होगा. खोड़ा कॉलोनी में समाज के इस तबके में इस सीट से कांग्रेस प्रत्याशी और बीजेपी प्रत्याशी के बीच टक्कर देखी जा रही है.
मध्यमवर्ग के दुकानदारों का मत:
इलाके के अंदर हार्डवेयर और प्लास्टिक के दरवाज़ें बनाने वाले दुकनदारों से भी उनकी राय जानने की कोशिश की जिन्होंने क्षेत्र के विधायक के पक्ष में बात कही लेकिन केंद्र सरकार के काम को भी अच्छा बताया. मध्यक्रम दुकनदारों में ज्यादातर दुकानदार लहर के साथ बहने की बात करते नज़र आए, इन्होंने चुनाव से ठीक पहले अपना मन बनाने की बात कही. वहीं अमरपाल शर्मा की पार्टी बदलने के बावजूद इलाके में अच्छी पकड़ देखी जा सकती है.
अल्पसंख्यक इलाके का मिजाज़:
खोड़ा कॉलोनी हिन्दू और मुस्लमानों की मिली-जुली आबादी वाला इलाका है. जहां पर बुलंदशहर से आने वाला बहुत बड़ा तबका निवास करता है. अल्पसंख्यक इलाके की ओर बढ़ने पर वहां के लोगों से रायशुमारी करने पर मुस्लिम समाज भी कॉंग्रेस और बहुजन समाज पार्टी के दो धड़ों में बंटा दिखा. इलाके के बुज़ुर्गों ने खुलकर अपनी बात रखते हुए बीएसपी उम्मीदवार जलालउद्दीन के समर्थन में जाने की बात कही. वहीं सपा के राज में उत्तर-प्रदेश में बिगड़ती हुई कानून व्यवस्था को बड़ा मुद्दा बताया. इलाके के बुज़ुर्गों के मुताबिक बहन जी के कार्यकाल में बहुत से काम हुए और प्रदेश में कानून व्यवस्था में भी सुधार हुआ. वहीं पीएम मोदी के नोटबंदी के फैसले को इस इलाके की जनता ने हवाहवाई करार दिया.
इस इलाके में युवा अल्पसंख्यक वर्ग अपने बुज़ुर्गों से थोड़ा बंटा हुआ नज़र आता है. इमरान नाम के एक नौकरीपेशा वोटर बताते हैं कि 'इस बार साहिबाबाद सीट कॉंग्रेस के खाते में जाएगी क्योंकि अमरपाल शर्मा ने इस सीट पर बहुत काम किया है.'
दलित इलाके का मूड:
मध्यम वर्ग और अल्पसंख्यक वर्ग की तरह से इस इलाके में दलित आबादी भी रहती है. जहां पहुंचने पर लोगों के बीच कॉंग्रेस के पक्ष में रुझान दिखा. यहां के लोगों ने कहा कि अब तक सबको आजमाया है. इस बार कॉंग्रेस-सपा गठबंधन को आजमाएंगे. जबकि एक दुकानदार ने पीएम मोदी के नोटबंदी के फैसले पर सवाल उठाते हुए बताया कि इस फैसले की वजह से उनकी कबाड़े की दुकान बंद हो गई और उन्होंने रेहड़ी पर सब्ज़ी बेचने को मजबूर होना पड़ा.
इलाके के समीकरण को भांप पाना बहुत ही मुश्किल है क्योंकि इस इलाके में कांग्रेस और बीजेपी के साथ ही बीएसपी भी मुकाबले में नज़र आ रही है लेकिन देश की सबसे बड़ी विधानसभा होने के नाते हमें इस सीट के मिजाज़ को जानना ज़रूरी है. इस इलाके में ज्यादातर वो वर्ग रहता है जो चुनावों में पोलिंग बूथ तक जाकर वोट डालता है और अपनी किस्मत को तय करने की कोशिश करता है. अब 11 मार्च को आने वाले नतीज़ों में उत्तरप्रदेश की सबसे बड़ी विधानसभा सीट का नतीजा जानना दिलचस्प रहेगा.