जानें कैसे बने अखिलेश नए 'नेताजी'
यूपी: अखिलेश हॉफ सीएम हैं. ये सुनते सुनते अखिलेश इतने पक गए कि उन्होंने सरकार और अपनी छवि का कायाकल्प कर दिया. पिता के खिलाफ बगावत और पार्टी पर कब्जे से भी नहीं चूकने वाले अखिलेश आज इतने आगे निकल गए कि यूपी में आज खुद ब्रैंड बन गए हैं. पार्टी और परिवार उनकी जेब में हैं.
रविवार को लखनऊ में जनेश्वर मिश्रा पार्क में समाजवादी पार्टी अखिलेश के विशेष अधिवेशन में नेताजी नहीं आए, लेकिन इस अधिवेशन में वो हुआ उससे मिलती जुलती कहानियां इतिहास की किताबों में हैं लेकिन देश की राजनीति में नहीं. जिस पिता ने बेटे को राजनीति की विरासत सौंपी थी उसी बेटे ने पिता को अपदस्थ करके खुद को सुप्रीमो घोषित कर दिया.
जिस समाजवादी पार्टी और यादव परिवार में नेताजी के इशारे के बिना पत्ता नहीं हिलता था. उस पार्टी और परिवार में अखिलेश यादव सबसे बड़ा नायक बन चुके हैं. उनकी एक पुकार पर सुनामी आ चुकी है. बेटा कसमें खा रहा है कि नेताजी पिता हैं और पिता ही रहेंगे लेकिन पिता भविष्यवाणी कर रहे हैं कि बेटा बर्बाद हो गया.
नायक के एक यलगार पर पार्टी बंट चुकी है. परिवार बंट चुका है. अब आखिरी लड़ाई चल रही है. साइकिल पर कब्जे की. अखिलेश स्वयंभू समाजवादी पार्टी अध्यक्ष घोषित करने के बाद समाजवादी पार्टी के चुनाव निशान साइकिल पर दावा ठोंक रहे हैं. अखिलेश यादव ने क्या किया, क्यों किया, कैसे किया? राजनीतिक पंडित ऐसे सवालों के जवाब ढूंढने लगे हैं और मुलायम सिंह बेटे से पार्टी को बचाने के लिए फिर से दंगल में उतर चुके हैं.
राजनीति की एबीसीडी अखिलेश यादव ने तब ही सीखी जब मुलायम सिंह यादव ने बेटा होने के नाते गिफ्ट में राजनीतिक विरासत सौंपी. समाजवादी पार्टी जब स्थापित हो चुकी थी, जब सत्ता का सुख भोग चुकी थी तब अखिलेश यादव समाजवादी साइकिल पर सवार हुए. सीधे लोकसभा के दो-दो बार सांसद बने और फिर सीधे उत्तर प्रदेश के सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री.
अखिलेश यादव ने जिस पार्टी और परिवार पर कब्जे की लड़ाई छेड़ी है उसमें उनका अपना कुछ नहीं है. जो दिया है वो पिता का दिया है. पिता से एक बड़ी चूक हुई 2012 में. देश का प्रधानमंत्री बनने की ललक में उन्होंने दिल्ली की राजनीति करने के लिए खुद को यूपी की राजनीति से अलग किया था. बेटे अखिलेश को राजनीतिक विरासत सौंपी थी. अखिलेश को सीएम प्रोजेक्ट करके चुनाव लड़ा और जीत गए.
यहां तक तो वैसा ही हुआ जैसा मुलायम चाहते थे लेकिन इसके आगे की कहानी अखिलेश ने खुद से लिखनी शुरू कर दी. 2012 में अखिलेश सीएम प्रोजेक्ट हुए तो अखिलेश ने नेताजी को जीत का तोहफा देने का कोडवर्ड निकाला लैपटॉप से. मुलायम दिल से माने नहीं लेकिन अखिलेश की पहली जिद्द पर चुप रहे. मुलायम की तब की चुप्पी ने कमाल किया. अखिलेश ने प्रचंड बहुमत से अकेले दम पर समाजवादी पार्टी की सरकार बनवा दी. 2012 में लैपटॉप के सहारे समाजवादी पार्टी की जीत मुलायम की पहली हार थी.