नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश में 14 साल वनवास के बाद 'अच्छे दिन' का सपना संजोए बीजेपी आज सूबे में सत्ता के शिखर पर पहुंच गई. अब यह कहने में किसी को संदेह नहीं होना चाहिए कि इस देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही मुद्दा हैं. पीएम मोदी के मैजिक से ही यूपी का बनवास समाप्त हुआ. यह जादू 2014 से लगातार आम लोगों के सिर चढ़कर बोल रहा है. इसी मोदी मैजिक का असर है कि देश की करीब 58 प्रतिशत आबादी पर आज भगवाराज है.

गांव में कहावत है कि भेष से ही भीख भी मिलती है. प्रतीक की राजनीति के चलन को महात्मा से लेकर महात्मा गांधी तक ने बखूबी समझा. वर्तमान परिवेश में प्रतीकों की राजनीति के मामले में बीजेपी के नये नायक से प्रधानमंत्री बने नरेंद्र मोदी ने बाजी मार ली है. हिन्दुत्व के चेहरे के साथ ही साथ विकास और ब्रांड की इमेज के सहारे नरेंद्र मोदी पीएम पद पर आसीन हो गए.

उत्तर प्रदेश के चुनाव में विजय के कीर्तिमान का जो गुलाल अबीर बीजेपी के लिए राम लहर में नहीं उड़ पाया तो वो मोदी के काम और नाम पर जनता ने उड़वा दिया. 14 साल बाद बीजेपी उत्तर प्रदेश की सत्ता मिल गई. राम लहर में जो बीजेपी 1991 में 221 सीट जीत पाई थी. उस बीजेपी ने मोदी लहर में यूपी में 300 से ज्यादा सीटें जीत इतिहास रच दिया.

इसीलिए पूरी पार्टी नरेंद्र भाई और अमित शाह के नाम जीत का सेहरा बांधने में जुट गई. मोदी के खिलाफ नोटबंदी का डर दिखाया जा रहा था. तो मोदी यूपी में बिजली का मुद्दा उठा रहे थे. मायावती 100 मुस्लिमों को मैदान में उतारकर नया फॉर्मूला चल रही थीं. अखिलेश और राहुल यूपी के लड़के बनकर मोदी को बाहरी बताने में जुटे थे. मोदी यूपी का गोद लिया बेटा बनकर उतर पड़े थे. लेकिन विरोधियों के सारे समीकरणों-चक्रव्यूहों को तोड़कर नरेंद्र मोदी ने कैसे लखनऊ की लड़ाई जीती. अब ये देखिए.

मोदी का नाम, मोदी का काम यूपी में विरोधियों का काम तमाम

मोदी ने 22 रैलियां की. जिनमें उत्तर प्रदेश की 132 सीटें कवर कीं. इनमें से 113 सीटों पर बीजेपी ने जीत हासिल की. अमित शाह की परिवर्तन रैली सभी 403 सीटों पर हुई. अमित शाह ने 8 हजार किलोमीटर की यात्रा यूपी में की. और 50 लाख लोगों से बात की.

कार्यकर्ताओं की फौज ने कराई यूपी में मौज

यूपी के मोदीमय होने की दूसरी वजह है मोदी के नाम पर अमित शाह का कार्यकर्ताओं की फौज खड़ी करना. कैसे ये देखिए.

उत्तर प्रदेश में बीजेपी ने एक करोड़ 80 लाख कार्यकर्ता बनाए. जिनमें 67 हजार बीजेपी के सक्रिय कार्यकर्ता रहे. 90 हजार कार्यकर्ताओं को बीजेपी ने ट्रेनिंग दी. एक लाख 47 हजार बूथों के लिए 13 लाख 50 हजार कार्यकर्ता तैनात किए.

कमजोर सीटों पर मजबूती से ध्यान

लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी उत्तर प्रदेश में 328 सीटों पर आगे थी. उसी के बाद से अमित शाह ने उन साठ सीटों पर सबसे ज्यादा ध्यान दिया. जहां बीजेपी कमजोर थी.

बागियों और बाहरियों पर कंट्रोल

याद करिए जब काशी विश्वनाथ का दर्शन करने पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नाराज चल रहे पुराने नेता श्यामदेव नारायण का खुद हाथ पकड़कर आगे बढ़े थे. बताते हैं कि टिकट बंटवारे के बाद से ही पार्टी में इस बात ध्यान रखा जा रहा था कि जो नाराज हैं, उन्हें कैसे मनाना है.

छोटी पार्टियों और जातियों का महागठबंधन

उत्तर प्रदेश में बीजेपी कुर्मी वोट बैंक पर मजबूत पकड़ रखने वाली अपना दल और पिछड़ों में पैठ बना रही सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी से गठबंधन किया. सहयोगी पार्टियों को बीजेपी ने 19 सीट दी थी. जिनमें 70 फीसदी सीटों पर सहयोगियों ने भी जीत दिला दी. स्वामी प्रसाद मौर्य से पिछड़े वर्ग के नेताओं को पार्टी में लाकर जाति समीकरण दुरुस्त किया.

नोटबंदी से श्मशान तक सर्जिकल स्ट्राइक से बिजली तक

अखिलेश यादव, मायावती लाख नोटबंदी के मुद्दे पर मोदी को घेरते रहे. लेकिन प्रधानमंत्री ये बताने में सफल रहे कि नोटबंदी जनता के भले के लिए की थी. इससे उन्हीं का फायदा है.

मोदी को माइक की ताकत का एहसास है. मोदी जमीन से जुड़े राजनेता हैं. उन्हें आम लोगों की तालियां बटोरने का हुनर पता है. याद करें कुछ साल पहले राहुल गांधी दलितों के घर खाने पर जाते थे. मिट्टी से भरी टोकरी कंधे पर ढोते देखे गए. उस वक्त भी पूरा देश देख रहा था लेकिन राहुल गांधी इस हुनर को बरकरार नहीं रख पाए. बस कुछ वक्त के लिए पोस्टर ब्वॉय बन कर रह गए. आम लोगों ने भी इसे महज तस्वीर की सियासत समझा. राहुल भावनात्मक लगाव बनाने में असफल रहे. इसकी कई वजह हैं. लेकिन मुझे लगता है यदि सारी वजहों को समेटकर कहें तो एक तरफ परिवार की राजनीति है(कांग्रेस), दूसरी तरफ परिवार छोड़कर राजनीति है(मोदी). इस अंतर को समझना होगा . अंतर सिर्फ जप और तप का है. एक चहारदीवारी में रहा व्यक्ति है जो राजकुमार की तरह रहा है दूसरा समाज के थपेड़ों के सहारे सफल होता है. मोदी सियासत के हर चरण में सफलता के हुनर को जानते हैं.

मोदी के भाषणों के शब्दों में भी प्रतीक की राजनीति की झलक दिखती है. धुव्रीकरण की गुंजाइश दिखती है, तो विकास और ब्रांड का इमेज भी बरकरार रहता है. आप गौर करें तो अपने विरोधियों पर हमला करते हुए उनके शब्दों का चयन कैसा होता है. इसमें कोई संदेह नहीं है कि मोदी शहर से लेकर गांव तक के युवाओं के बीच काफी लोकप्रिय हैं. आम लोगों के बीच नरेंद्र मोदी ऐसे भारतीय नेता के प्रतीक बन गए हैं जो आया है तो सब ठीक कर देगा.

मोदी मैजिक का असर

मोदी लहर में क्या क्या हुआ ?
यूपी में 14 साल का वनवास समाप्त, सीटों की संख्या तिहरा शतक से आगे
उत्तराखंड में भी भारी बहुमत
मणिपुर में भी बहुमत के करीब
गोवा में सरकार बचा सकती है
हरियाणा-झारखंड में अपने दम पर सरकार बनाई
महाराष्ट्र में शिवसेना से अलग होकर लड़े, सरकार बनाई
जम्मू-कश्मीर में बीजेपी जीती, गठबंधन सरकार बनाई
असम में बीजेपी ने ऐतिहासिक जीत हासिल की
केरल में पहली बार खाता खोला, 10% वोट मिले
2014 के बाद सिर्फ दिल्ली-बिहार हारे, आज पंजाब