लखनऊ: काम बोलता है मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का नया नारा है. लेकिन उत्तर प्रदेश में जीत हार का फैसला सिर्फ काम से नहीं होता.  देश के सबसे बड़े राज्य में धर्म और जातियों का गणित चुनाव में काफी अहम हो जाता है, तभी समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच गठबंधन के बाद कहा गया कि ये गठबंधन उत्तर प्रदेश में मुस्लिम वोटों को बंटने से रोकने की कोशिश है. लेकिन क्या अखिलेश और राहुल की जोड़ी ऐसा करने में कामयाब हो पाएगी या फिर मुस्लिम वोटों पर मायावती की भी दावेदारी रहेगी ?


पश्चिमी यूपी में मुस्लिम किसके साथ ?


मायावती ने जब खुलेआम इस तरह से मुस्लिम वोटरों को बीएसपी के लिए वोट करने को कहा तो ये सिर्फ एक चुनावी दांव नहीं था बल्कि मायावती की सोची समझी रणनीति का हिस्सा था. उत्तर प्रदेश में मुस्लिम वोट किधर जाएगा ये अखिलेश और मायावती दोनों के लिए काफी अहम है. खास तौर से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जहां पहले और दूसरे चरण के लिए 11 और 15 फरवरी को वोटिंग है.


पश्चिमी यूपी में मुस्लिमों की आबादी 26% है


पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या सबसे ज्यादा यानी करीब 26 फीसदी है. रामपुर, मुरादाबाद, अमरोहा, सहारनपुर और बिजनौर में मुस्लिमों की आबादी अच्छी खासी है.मेरठ औऱ उसके आसपास के इलाकों में मुस्लिम आबादी 35 से 45 प्रतिशत तक है. इसी समीकरण को ध्यान में रखते हुए पश्चिमी यूपी की कुल 140 विधानसभा सीटों पर बीएसपी ने 50 उम्मीदवार उतारे हैं. तो एसपी-कांग्रेस गठबंधन भी 42 मुस्लिम उम्मीदवारों के साथ यहां के चुनावी मैदान में है.


मजेदार बात ये है कि पश्चिमी यूपी की कुल 140 में से 26 सीटें ऐसी हैं, जहां एसपी और बीएसपी दोनी की तरफ से ही मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया गया है. सवाल ये है कि क्या इन सीटों पर मुस्लिम वोट पार्टी के हिसाब से पड़ेंगे या उम्मीदवार को देखकर.


बागपत सीट की ग्राउंड रिपोर्ट क्या है


बागपत सीट पर बीएसपी ने एक मुस्लिम उम्मीदवार हमीद अहमद को उतारा है तो सपा कांग्रेस गठबंधन की तरफ से गैर मुस्लिम उम्मीदवार है. गांव के रहने वाले असलम नाम के एक शख्स से सवाल किया गया-


सवाल – आप वोट किसको देंगे?


जवाब – हाथी को देंगे


सवाल – क्यों ?


जवाब – हमारे पड़ोस के हैं नवाब साब इसीलिए ?


सवाल – क्यों समाजवादी पार्टी को क्यों नहीं ?


जवाब – उसके भी वोट हैं, कुछ लोग करते हैं उसे


सवाल – कुछ मुसलमान उनको भी दे रहे हैं वोट ?


जवाब – हां जी, कुछ हाथी को भी दे रहे हैं


सवाल – तो आपको लगता है मुसलमान वोट बंट रहा है ?


जवाब – हां जी बंट रह है


असलम की बातों से साफ है कि इस इलाके का मुस्लिम वोट किसी एक पार्टी को नहीं मिल रहा है यानी राहुल और अखिलेश की जोड़ी यहां के सारे मुसलमानों को अपनी तरफ नहीं खींच पा रही है. इसी गांव के नसीम खां भी कुछ ऐसा ही बता रहे हैं.


गांव के एक और शख्स नसीम साइकिल पर गांव गांव जाकर रेडिमेड कपड़े बेचते हैं.  गांव के लोगों के मूड जानते और समझते हैं. मजेदार बात ये है कि वो खुद अखिलेश के काम की भी तारीफ करते हैं और मोदी सरकार के नोटबंदी के फैसले को भी सही मानते हैं लेकिन जब वोट देने की बात आती है तो वह मायावती को वोट करते हैं.


नसीम और असलम के परिवार में कुल मिलाकर करीब 15 वोट हैं.  अगर इन दोनों ने जो कहा उसे सही माना जाए तो ये सभी मुस्लिम वोट मायावती की झोली में जा रहे हैं. यहां से बीएसपी के उम्मीदवार हामिद अहमद का दावा है कि जो यहां हो रहा है, वही पूरे प्रदेश में होगा और दलित-मुस्लिम वोटों का समीकरण अखिलेश का खेल खराब करेगा.


ये कहानी उस सीट की है जहां सिर्फ एक पार्टी का मुस्लिम उम्मीदवार है. इसके बावजूद भी सारे मुस्लिम वोट एक तरफ जाते नहीं दिख रहे. ऐसे में उन सीटों पर क्या होगा जहां मायावती और अखिलेश दोनो ने ही मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं.


गाजियाबाद की लोनी सीट की ग्राउंड रिपोर्ट क्या है


पश्चिमी यूपी में ऐसी 26 सीटें हैं. इन्हीं में से एक है गाजियाबाद की लोनी सीट. जहां कांग्रेस, बीएसपी और आरएलडी तीनों के ही मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में हैं. सवाल है कि यहां के मुस्लिम मतदाता किसके साथ जाएंगे.


लोनी में गैराज चलाने वाले एक शख्स का कहना है, ‘’अभी तो कुछ दिखाई नहीं दे रहा है, न किसी का बोलबाला है न किसी की चर्चा हो रही है कि भई इसको दो या उसको दो.’’


लोनी में गैराज चलाने वाले फैयाज की ये बात काफी अहम है. क्योंकि चुनाव के सिर्फ 3 दिन बाकी हैं और अगर अब तक वो और उनके जैसे कई मुस्लिम वोटर ये तय नहीं कर पाए हैं कि वो किसको वोट देंगे तो ये इशारा है कि आखिरी वक्त पर किसी का भी खेल पलट सकता है.


सरधना सीट की ग्राउंड रिपोर्ट क्या है


इसके बाद हम पहुंचे सरधना सीट पर. यहां बीएसपी की तरफ से हाफिज इमरान याकूब तो सपा की तरफ से अतुल प्रधान चुनाव लड़ रहे हैं. जबकि बीजेपी ने यहां से दंगो के दौरान चर्चा में रहे संगीत सोम को मैदान में उतारा है. यानी इस सीट पर हिंदू-मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण की संभावना मानी जा रही है.


जब संवाददाता ने सामान ढोने वाले मोहम्मद शहजाद से बात की तो उन्होंने बताया, ‘’हमें तो मायावती से फायदा मिला था. कच्चा मकान था हमारा अब पक्का बन गया है. देखो जी हमें जिससे फायदा हुआ हम तो उसी को वोट देंगे.


शहजाद खुलकर मायावती के पक्ष में वोट डालने की बात कर रहे हैं, लेकिन वो और उनके साथ बैठे महबूब नाम के शख्स ने इस बात से भी इंकार नहीं किया यहां भी मुस्लिम वोटों का बंटवारा होगा.


सवाल- तो मायावती को मुस्लिम और दलित वोट जाएगा ?


जवाब  बहुत ज्यादा


सवाल समाजवादी पार्टी को लगता है कांग्रेस उनके साथ है इसलिए मुस्लिम एक साथ उनको मिलेंगे ?


जवाब– नहीं, सब नहीं मिलेंगे-बंटेंगे


सवाल- उत्तर प्रदेश में किसी एक पार्टी को क्या मुस्लिम वोट एकमुश्त जाएगा, समाजवादी पार्टी को लगता है कि कांग्रेस के साथ आने से मुस्लिम वोट बटेगा नहीं, दूसरी तरफ मायावती ने 97 मुस्लिम उम्मीदवार देकर मुस्लिम कार्ड खेला है, क्या ये दांव चल जाएगा या, फिर दोनों की लड़ाई में कोई तीसरा बाजी मार ले जाएगा ?


मोहम्मद शहजाद- हकीकत ये है कि इन दोनो के चक्कर में संगीत सोम निकल जाएंगे, मतलब बीजेपी को फायदा होगा.


दरअसल बड़ी तस्वीर यही है. अखिलेश ने एकतरफा मुस्लिम वोट पाने के मकसद से राहुल का हाथ थामा लेकिन पश्चिमी यूपी के मुस्लिम वोटर मायावती के साथ भी खड़े दिख रहे हैं. और बीजेपी इस उम्मीद में है कि मुस्लिम वोटों के इस बंटवारे का फायदा उसे ही मिलेगा.