यहां जानें- उत्तर प्रदेश में क्या है मुस्लिम वोटों का समीकरण ?
नई दिल्ली: पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आज सबसे बड़ा प्रश्न है कि अखिलेश यादव और राहुल गांधी गठबंधन का मुस्लिम वोटों पर क्या असर पड़ेगा. आजकल वहां राजनैतिक गहमा गहमी अपने चरम पर है. मुस्लिम वोटों को लुभाने के लिए बीएसपी ने बड़ी संख्या में मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं. राज्य में करीब 20 फीसदी मुस्लिम वोट हैं. मुस्लिम वोट बंटने पर सबसे ज्यादा फायदा बीजेपी को ही होता है.
मायावती ने करीब 100 सीटों पर दिया मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट
यूपी की कुल 403 विधानसभा सीटों में से 143 सीटें मुस्लिम प्रभावित मानी जाती हैं. यही वजह है कि मायावती ने करीब 100 सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार खड़े किए हैं. सपा-कांग्रेस गठबंधन भी कुल मिलाकर लगभग इतनी ही सीटें मुसलमानों के लिए छोड़ सकता है. उधर बीजेपी ने एक भी मुस्लिम को टिकट नहीं दिया है. उसे वोटों के बंटने पर होने वाले फायदे का आसरा है.
सुप्रीम कोर्ट भले ही कह चुका हो कि जाति और धर्म के नाम पर वोट राजनीतिक पार्टियां नहीं मांग सकती, लेकिन उत्तर प्रदेश में मुस्लिम वोटों की गुहार जमकर खुले आम की जा रही है.
आखिर क्यों इतने जरुरी हो गये हैं मुस्लिम वोट
दरअसल यूपी की 143 सीटों पर मुस्लिम अपना असर रखते हैं. इनमें से 70 सीटों पर मुस्लिम आबादी बीस से तीस फीसद के बीच है. 73 सीटें ऐसी हैं जहां मुसलमान तीस फीसद से ज्यादा है.
पिछले विधानसभा चुनावों में 20 से तीस फीसद वाली 70 मुस्लिम सीटों में से सपा को 37 और बसपा को 13 सीटें मिली थी. कांग्रेस और राष्ट्रीय लोकदल के हिस्से 8 सीटें आई थी. इसी तरह 30 फीसद से ज्यादा मुसलमानों वाली 73 सीटों में से 35 पर सपा, 13 पर बसपा और छह पर कांग्रेस राष्टीय लोक दल गठबंधन जीता था.
इस बार सपा और कांग्रेस के एक हो कर चुनाव लड़ने से क्या मायावती के दलित-मुस्लिम गठजोड़ को झटका लगेगा ?
एक वर्ग का कहना है कि मुस्लिम चुनाव से दो तीन पहले तय करेंगे और जो भी दल बीजेपी को हरा सकने की क्षमता रखता है उसे एकमुश्त वोट देंगे.
चौंकाने वाली बात है कि पिछले तीन विधान सभा चुनावों में बीजेपी को पांच फीसद से भी कम मुसलमानों ने वोट दिया, लेकिन मुस्लिम बहुल सीटों पर बीजेपी का प्रदर्शन मायावती और राहुल गांधी की पार्टियों से अच्छा रहा है. इससे साफ है कि मुस्लिम वोट बंटने पर सबसे ज्यादा फायदा बीजेपी को ही होता है. इस बार भी वो उसी रणनीति पर चल रही है.
मुस्लिम वोट बंटने पर बीजेपी की झोली में गिरती हैं ज्यादा सीटें!
2012 के विधान सभा चुनावों में बीजेपी को इन 143 में से 26 पर जीत हासिल हुई थी. मायावती को मिली कुल सीटों के बराबर है. कांग्रेस-राष्ट्रीय लोकदल के गठबंधन के हिस्से कुल 14 सीटें आई थी. बीजेपी को कुल 403 सीटों में से 47 सीटें मिली थी. मुस्लिम बहुल 143 सीटों में से 26 और गैर मुस्लिम बहुल 260 सीटों में से सिर्फ 21 पर वो जीती थी. साफ है कि मुस्लिम वोट बंटने पर बीजेपी की झोली में ज्यादा सीटें गिरती हैं.
समाजवादी पार्टी और कांग्रेस को खान, पठान, शेख, सईद और सिद्दीकी जैसे उंची जाति के मुस्लिम वोट देते रहे हैं. उधर मायावती के हिस्से पसमांदा मुस्लिम ही आया है जिसका फारसी भाषा में मतलब जो हाशिए पर छोड़ दिए गये हैं. इसमें अंसारी, मसूंरी जैसे वर्ग आते हैं. शिया और सुन्नियों का बहुत छोटा सा वर्ग बीजेपी की तरफ रुझान दिखाता रहा है, लेकिन बीजेपी ने एक भी मुस्लिम को टिकट नहीं देकर साफ कर दिया है कि उसे 19 फीसद वोटों की न तो फिक्र है और न ही जरुरत.
तीन तलाक के मुद्दे को भुनाने की कोशिश में बीजेपी
यूपी में 19 फीसद मुस्लिम वोटर हैं. यानि करीब तीन करोड़ 80 लाख वोटर. इनमें से दो करोड़ पुरुष और एक करोड़ अस्सी लाख महिला वोटर हैं. बीजेपी ने भले ही किसी भी मुस्लिम को टिकट नहीं दिया हो लेकिन वो तीन तलाक का मुद्दा उठा मुस्लिम महिला वोटरों के बीच अपनी पैठ बनाने की कोशिशों में लगी है.
2002 में मुस्लिम प्रभावित 143 सीटों में से सपा को 37 फीसद, बसपा को 16 फीसद, कांग्रेस को छह और अन्य को 18 फीसद सीटें मिली थी. तब बीजेपी को 23 फीसद सीटों में सफलता हासिल हुई थी, जो मायावती और कांग्रेस की मिलाकर सफलता से भी ज्यादा है.
इसी तरह 2007 में इन 143 सीटों में से सपा को 26 , बसपा को 44 प्रतिशत, कांग्रेस को तीन और अन्य को 8 फीसद सीटों पर सफलता हासिल हुई था. तब भी बीजेपी को इन सीटों में से 19 पर जीती थी जो कांग्रेस से छह गुना ज्यादा है. पिछले विधान सभा चुनाव में इन 143 सीटों में से सपा ने 48 फीसद सीटें जीती थी. तब बसपा को 18 और कांग्रेस को 8 फीसद सीटों पर जीत हासिल हुई था. तब बीजेपी 23 प्रतिशत सीटों पर जीती थी.
74 फीसद मुस्लिम मतदाता को सपा-कांग्रेस गठबंधन पसंद- सर्वे
इस बार का एबीपी न्यूज सीएसडीएस का सर्वे बताता है कि 74 फीसद मुस्लिम मतदाता समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के गठबंधन को पसंद कर रहा है. मायावती को मिलने वाले संभावित 11 फीसद वोटों से करीब सात गुना ज्यादा है.
हैरानी की बात है कि लगभग सौ मुस्लिमों को टिकट देने वाली मायावती को भी 11 फीसद मुस्लिम वोट मिल रहे हैं और एक भी मुस्लिम को टिकट नहीं देने वाली बीजेपी को भी ठीक 11 प्रतिशत मुस्लिम वोट मिल रहे हैं.
यूपी में 2007 में 56 और 2012 में 63 मुस्लिम विधायक जीते लेकिन 2014 के लोकसभा चुनावों में एक भी मुसिलम संसद नहीं पहुंच सका. जानकार बता रहे हैं कि अपने प्रतिनिधित्व को लेकर मुस्लिम इस बार ज्यादा सचेत हैं और उसके बंटने के आसार कम ही दिखते हैं.
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