लखनऊ: यूपी चुनाव में जीत के लिए प्रदेश की चारों बड़ी पार्टियां जी-जान लगाए हुए हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी और बीएसपी सुप्रीमो मायावती के लिए ये चुनाव बेहद अहम है.


पीएम मोदी के लिए क्यों अहम है ये चुनाव ?


आज मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में भी वोटिंग है. आखिरी चरण की 40 सीटों के लिए मोदी ने सबसे ज्यादा मेहनत की और तीन दिन तक वाराणसी में प्रचार किया. फैसले की घड़ी आ चुकी है और सबसे ज्यादा अगर किसी की साख दांव पर है तो वो हैं पीएम मोदी.


तीन दिन तक मोदी वाराणसी में जमे रहे, बाबा विश्वनाथ के दर्शन, जनता दर्शन और फिर गोमाता की सेवा, ये पूरी मेहनत इसलिए क्योंकि पीएम मोदी वाराणसी से सांसद हैं और चुनाव में उनकी साख का सवाल है.


मोदी के लिए नोटबंदी का भी रियलिटी टेस्ट


इस चुनाव में मोदी के सामने 2014 के करिश्मे को दोहराने की बड़ी चुनौती है. लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 80 में से 71 सीटें जीती थी. नोटबंदी के बाद पहला बड़ा चुनाव है इसलिए इस चुनाव में नोटबंदी का भी रियलिटी टेस्ट है. जीत से पीएम मोदी का कद और बढ़ेगा जिससे 2019 के लोकसभा चुनाव की राह आसान होगी, लेकिन हारे तो मोदी की लोकप्रियता पर सवाल उठेंगे. हार के बाद सवाल इसलिए उठेंगे क्योंकि यूपी का ये चुनाव भी मोदी के चेहरे पर ही लड़ा जा रहा है.


सीएम अखिलेश के लिए क्यों अहम है ये चुनाव ?


यूपी के चुनाव में अगर सबसे बड़ी परीक्षा किसी की हो रही है तो वो हैं यूपी के सीएम अखिलेश यादव. इस बार का चुनाव अखिलेश के लिए सबसे बड़ी परीक्षा है. अखिलेश जीते तो पार्टी पर पूरी तरह पकड़ बनेगी अगर हार गए तो पार्टी और परिवार में चल रहा विवाद और बढ़ेगा. यही नहीं इस चुनाव में अखिलेश के बड़े राजनीतिक फैसले का भी टेस्ट हो रहा है. चुनाव के नतीजे बताएंगे कि राहुल गांधी से दोस्ती का फैसला सही था या गलत.


राहुल गांधी के लिए क्यों अहम है ये चुनाव ?


कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी यूपी में कांग्रेस की खोई राजनीतिक जमीन तलाश रहे है. राहुल गांधी के लिए ये चुनाव करो या मरो का सवाल है. अगर राहुल अगर इस बार कोई करिश्मा नहीं कर पाते हैं तो उनकी आगे की राजनीति की राह मुश्किल हो जाएगी. राहुल के नेतृत्व पर भी सवाल उठेंगे.


चुनाव में जीत से कांग्रेस का मनोबल बढ़ेगा और 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए नई उम्मीद जगेगी. अगर राहुल कोई कमाल नहीं दिखा पाते हैं तो अखिलेश के साथ गठबंधन के उनके फैसले पर भी सवाल उठेंगे.


मायावती के लिए ये चुनवा अहम क्यों ?


दलित-मुस्लिम समीकरण के जरिये मायावती एक बार फिर यूपी की  गद्दी हासिल करने में जुटी हैं और इसके लिए उन्होंने दागी मुख्तार अंसारी तक से दोस्ती कर ली. मुख्तार को पार्टी में शामिल करने का फैसला सही था या गलत अब चुनाव में इसका टेस्ट हो रहा है. अगर दलित-मुस्लिम गठजोड़ का फॉर्मूला चला तो मायावती बाजी पलट सकती हैं.


मायावती के लिए दोबारा यूपी की सत्ता हासिल करने का मौका है, लेकिन चुनौती बड़ी है. अगर मायावती की पार्टी जीतती है तो जाहिर है उनका कद बढ़ेगा लेकिन अगर हार हुई तो पार्टी के भविष्य पर संकट के बादल मंडराने लगेंगे.