यूपी: गरीबों की मसीहा रही हैं पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, विदेश में मौत के बाद मंत्रालय के खर्च पर गांव भिजवाया शख्स का शव
विदेश में फंसे किसी शख्स की घर वापसी किसी से नए जीवन से कम नहीं होती. पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने अपने कार्यकाल में ऐसे कितने ही लोगों की मदद कर उन्हें नया जीवन दिया और परिवारों को उजड़ने से बचाया.
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कुशीनगर: पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की मौत की खबर सुनने के बाद कुछ ऐसे भी गरीब परिवार हैं, जिनके आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे हैं. उनका भले ही सुषमा स्वराज से कोई नाता नहीं रहा है. लेकिन वह दिल की गहराइयों से उन परिवार से जुड़ी रही हैं. ऐसे गरीब परिवार के लोग न तो कभी सुषमा स्वराज से मिल हैं और ना ही उनसे कभी बात की. लेकिन, परिवार के मुखिया की विदेश में मौत के बाद जब उनका पार्थिव शरीर भारत नहीं आ पाया, तो उस वक्त विदेश मंत्री रहीं सुषमा स्वराज ने पहल कर मंत्रालय के खर्च पर पार्थिव शरीर को गांव भिजवाने में उन परिवार की मदद कर उनके दिलों में बस गईं. यही वजह है कि जब उनके निधन की खबर परिवारवालों तक पहुंचीं तो वे फूट-फूटकर रोने लगे.
कुशीनगर जनपद के रामकोला थाना क्षेत्र के कुसम्ही गांव के रहने वाले बिग्गु प्रसाद की मौत तीन साल पूर्व मस्कट में हो गई थी. 14.01.2016 को परिवार की रोजी रोटी के लिए ओमान के मस्कट शहर गए थे लेकिन सिर्फ पांच माह बाद 14 जून को वह कंपनी में एक हादसे के शिकार हो गए और इलाज के दौरान 15 जून को उनकी मौत हो गई. जब ट्विटर पर इसकी जानकारी तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज जी को हुई तो वे तत्काल विदेश मंत्रालय के अधिकारियों के माध्यम से बिग्गु के परिवार वालों से बात की.बातचीत में जब उनको यह पता चला कि बिग्गु के परिवार के लोग बहुत गरीब हैं तो सुषमा जी ने सरकारी खर्चे से पांच दिन बाद उनका शव गांव भेजवाया.
सुषमा स्वराज की संवेदनशीलता की वजह से मरने के बाद बिग्गु को उसके गांव की दो गज जमीन नसीब हो पाई. यह बात बताते हुए उनके परिवार के लोगों की आंखे डबडबा गईं. इनका कहना था कि इस एक घटना ने सुषमा स्वराज से बिना मिले ही आत्मीयता लगा दी थी. उनकी मौत की सूचना मिलने पर लग रहा है कि हमने अपने परिवार का एक सदस्य खो दिया.
इसी कुसम्ही गांव में एक और मामला ऐसा हुआ कि चार साल से सऊदी अरब के दमाम शहर में फंसे पवन की सकुशल घर वापसी कराई. इस गांव के पवन सिंह फरवरी 2008 में सऊदी अरब के दमाम में रोजी की जुगाड़ में गए थे. वह वहां एमएनसी कंपनी में काम करते थे. 2008 से 2012 तक सब कुछ ठीक चला और पवन इन चार सालों में छुट्टी लेकर तीन बार घर भी आए थे. अचानक 2012 में उनकी कंपनी बंद हो गई और पवन वही फंस गए.
पवन का पासपोर्ट कंपनी में ही फंस गया था और पास में इतना पैसा नहीं था कि वह टिकट कटवा कर घर आ सकें जिसकी वजह से वह घर नहीं आ पा रहे थे. इसी बीच उनकी पत्नी रमावती देवी की दोनो किडनी फेल हो गई. पत्नी की बीमारी की सूचना मिलते ही पवन व्याकुल हो गए लेकिन कोई रास्ता नहीं बन पाया. अगस्त 2016 में ट्विटर के माध्यम से इसकी जानकारी जब सुषमा स्वराज को हुई तो उन्होंने आने अधिकारियों को उनको वहां से सकुशल वापस लाने के लिए निर्देश दिया.
विदेश मंत्रालय के अधिकारियों ने तत्काल ग्राम प्रधान से सम्पर्क करके पूरी जानकारी हासिल की. उसके एक सप्ताह बाद फिर फोन आया कि पवन सिंह को घर भेजा जा रहा है. इन दोनों घटनाओं से इन दोनों परिवारों के सुषमा स्वराज से बिना मिले ही एक लगाव हो गया. जैसे इनके निधन की सूचना इनके परिवार को लगी वह फूट-फूट कर रोने लगे.
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