यूपी: यूपी चुनाव से पहले यूपी के सीएम अखिलेश यादव ने आज फिर से जातियों को लुभाने का पुराना कार्ड खेला है. अखिलेश यादव ने यूपी 17 पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने का प्रस्ताव कैबिनेट में पास कर दिया. अगर केंद्र ने अब इन सभी जातियों को मंजूरी दे देती है तो फिर इन्हें अनूसूचित जातियों में शामिल कर लिया जाएगा. ये 17 जातियां हैं कहार, कश्यप, केवट, मल्लाह, निषाद, कुम्हार, प्रजापति, धीवर, धीमर, बिंद, भर, राजभर, बाथम, तुरहा, गोंड, मांझी और मछुआरा
किसे कितना आरक्षण मिलता है?
पिछड़ी जाति से अनुसूचित जाति में नाम डालने के पीछे की राजनीति जानने से पहले ये जानना जरूरी है कि फिलहाल देश में आरक्षण की स्थिति क्या है.
देश में शिक्षण संस्थानों और नौकरियों में 22.5% अनुसूचित जाति यानि दलित और अनुसूचित जनजाति यानि आदिवासियों को आरक्षण मिलता है. इस 22.5% को और तोड़े तो अनुसूचित जातियों का 15% और अनुसूचित जनजातियों का 7.5% कोटा है. इसके अलावा ओबीसी यानि पिछड़ी जातियों के लिए अतिरिक्त 27% आरक्षण हैं. यानि केंद्र के हिसाब से कुल आरक्षण 49.5 % है.
अनूसूचित जाति में आने से आखिर इन जातियों को क्या फायदा मिलेगा. ये जानना काफी अहम है.
ओबीसी की जगह अनुसूचित जाति में आने से बड़ा फायदा ये है कि इसमें प्रतिस्पर्धा कम है. अनुसूचित जाति में सामाजिक रूप से मजबूत माने जाने वाली जातियां कम हैं. अनुसूचित जाति में आने से SC-ST एक्ट के तहत विशेष सुरक्षा मिलती है. यूपी में फिलहाल अनुसूचित जातियों की संख्या 66 हैं. केंद्र की सूची के मुताबिक उत्तर प्रदेश में फिलहाल ओबीसी लिस्ट में 75 जातियां हैं. अखिलेश जिन जातियों की बात कर रहे हैं हैं उनमें से कई जातियां इस 75 की लिस्ट में शामिल हैं.
अखिलेश यादव के लिए इन 17 जातियों की अहमियत क्या है इसे समझना बहुत जरूरी है.
यूपी में इन 17 जातियां को वोटरों के हिसाब से देखा जाए तो ये करीब 5 फीसदी होंगे. ऐसा माना जा रहा है कि 2014 के लोकसभा चुनावों में इन जातियों ने बीजेपी के पक्ष में वोट दिया था. समाजवादी पार्टी इन जातियों के वोट पाना चाहती है ताकि विधानसभा चुनाव में फायदा मिले. अखिलेश की राजनीति ये है कि मायावती इसका विरोध खुलकर नही कर पाएंगी क्योंकि अगर विरोध करेंगी तो इससे ये 17 जातियां नाराज हो सकती हैं. बीजेपी की केंद्र में सरकार है और बीजेपी ने अगर इस पर रोक लगाने की कोशिश की तो ये 17 जातियां नाराज हो सकती हैं.
समाजवादी पार्टी ये मान कर चलती रही है कि उसे दलित वोट नहीं करते हैं. ऐसे में इस कदम से अगर यादव और मुस्लिम के अलावा दलित वोट उनके पास आ जाएं तो उन्हें विधानसभा चुनाव में बड़ा फायदा हो सकता है. हालांकि अखिलेश के लिए मुश्किल ये है कि 17 नई जातियों के शामिल होने से अनुसूचित जाति के तहत मिलने वाला कोटा अब ज्यादा जातियों में बंट जाएगा जिससे एक वर्ग गुस्सा हो सकता है.
समाजवादी पार्टी की ये मांग पुरानी है. 2005 में सीएम रहे मुलायम सिंह यादव ने भी इन जातियों को अनुसूचित जातियों में शामिल करने का प्रस्ताव भेजा था जिसे केंद्र ने नामंजूर कर दिया था. मायावती भी ये मांग पहले उठा चुकी हैं लेकिन उनकी भी मांग ठुकराई जा चुकी है.