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Uttar Pradesh: अब Female Teachers सजाएंगी दुल्हन और Engineers पकड़ेंगे गाय-बैल !
अब दुल्हनों को कौन सजाएगा, नहीं पता. आवारा जानवरों को कौन पकड़ेगा नहीं पता. लेकिन शिक्षक और इंजीनियर तो यही कह रहे होंगे कि जान बची तो लाखों पाए, लौट के बुद्धू घर को आए
राम चंद्र कह गए सिया से ऐसा कलियुग आएगा, हंस चुनेगा दाना-दुनका, कौवा मोती खाएगा. बचपन में खूब सुना है इन लाइनों को. मतलब तो तब भी समझ में आ रहा था, लेकिन जब से उत्तर प्रदेश सरकार के दो फैसलों पर नज़र पड़ी है. इसका मतलब और भी साफ हो गया है. मतलब कि जिसका काम उसी को साजे, और करे तो बुद्धू बाजे. नहीं समझे...चलिए समझाने की कोशिश करते हैं. उत्तर प्रदेश सरकार में एक कार्यक्रम होता है. मुख्यमंत्री सामूहिक विवाह समारोह. इसके तहत सरकार की ओर से सामूहिक विवाह का आयोजन करवाया जाता है. 28 जनवरी को उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर में एक सामूहिक विवाह का कार्यक्रम था. इसमें कुल 184 लड़कियों की शादी होनी थी. इसके लिए खंड शिक्षा अधिकारी ध्रुव प्रसाद की ओर से आदेश आया कि इन 184 दुल्हनों को सजाने की जिम्मेदारी उन महिला शिक्षकों की होगी, जिनका काम बच्चों को पढ़ाना है. इनमें प्रिंसिपल से लेकर शिक्षा मित्रों तक का नाम था. कुल 20 टीचर लगाए गए थे. मामला उत्तर प्रदेश के बेसिक शिक्षा मंत्री सतीश चंद्र द्विवेदी के जिले का था, तो वायरल हो गया. और फिर सोशल मीडिया पर बैठे लोगों को मौका मिल गया. उन्होंने अपना फेवरेट काम शुरू कर दिया. यूपी के सीएम और अधिकारी ट्रोल होने लगे. तब जाकर बेसिक शिक्षा अधिकारी डॉ. सूर्यकांत त्रिपाठी ने इस आदेश को रद्द कर दिया.
अभी ये मामला शांत होता कि एक और सरकारी फरमान आ गया. ये सरकारी फरमान मिर्जापुर जिले में जारी हुआ था. 29 जनवरी को सीएम योगी आदित्यनाथ को गंगा यात्रा के लिए मिर्जापुर जाना था. रास्ते में कई बार आवारा गाय-बैल-सांड परेशान करते रहते हैं. इनकी वजह से सीएम योगी के काफिले को दिक्कत न हो, इसलिए मिर्जापुर के डीएम ने एक आदेश जारी किया. कहा कि कुल 9 इंजीनियर अपने गैंग के साथ 8-10 रस्सियां लेकर मुख्यमंत्री की यात्रा वाले रास्ते पर तैनात रहें. अगर उन्हें कोई भी आवारा जानवर दिखता है, तो उसे रस्सियों के जरिए खूंटे से बांध दें, ताकि सीएम के काफिले को दिक्कत न हो. अब आदेश सरकारी था. मुलाजिम सरकारी थे, तो आदेश मानना ही था. वो मानते भी, लेकिन उनके असोशिएसन ने पीडब्लयूडी को एक लेटर लिखा. कहा कि इंजीनियर आवारा जानवर पकड़ने के लिए ट्रेंड नहीं हैं, लिहाजा अगर जानवरों को पकड़ने के दौरान किसी को चोट लग जाएगी, तो जिम्मेदारी उनकी नहीं होगी. उनकी बात भी सही थी. वो तो इंजीनियर हैं. सड़कें बनाते हैं, पुल बनाते हैं, घर बनाते हैं, उनके पास जानवर पकड़ने की ट्रेनिंग कहां से होगी. लेकिन सरकारी आदेश था, तो मानना ही था. लेकिन ये रायता भी सोशल मीडिया पर फैल गया. और फिर डीएम ने इस आदेश को वापस ले लिया.
अब दुल्हनों को कौन सजाएगा, नहीं पता. आवारा जानवरों को कौन पकड़ेगा नहीं पता. लेकिन शिक्षक और इंजीनियर तो यही कह रहे होंगे कि जान बची तो लाखों पाए, लौट के बुद्धू घर को आए. अब हम भी अपने घर चलते हैं. आप देखते रहिए एबीपी अनकट.
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राजेश शांडिल्यसंपादक, विश्व संवाद केन्द्र हरियाणा
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