(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
लखनऊ: 'मनौतियों के राजा' भगवान गणेश को बोरे भर-भर के भक्तों से मिल रहे हैं पत्र
बप्पा के भक्त इस उम्मीद से उन्हें पत्र निखते हैं कि भगवान उनकी भक्तों की प्रार्थना भगवान सुनेंगे और मनोकामना पूरा करेंगे. भक्तों द्वारा लिखे गए पत्रों को बकायदा गणपति की मूर्ति के सामने पढ़ा जाता है.
लखनऊ: तेजी से बदलते दौर में डाक विभाग के पत्रों में काफी कमी आई है, लेकिन भगवान गणेश को इन दिनों अपने भक्तों से पत्रों से भरे बोरे मिल रहे हैं. लखनऊ में लगभग आधा दर्जन गणेश पंडालों में, गणपति को 'मनौतियों के राजा' के रूप में जाना जाता है और भक्त अपनी समस्याओं का समाधान करने की प्रार्थना करते हुए भगवान को पत्र लिखते हैं और एक बॉक्स में डालते हैं.
झूलेलाल पार्क पंडाल के आयोजकों में से एक अरविंद कुशवाहा ने कहा, "हमने इस साल 'मनौतियों के राजा' पंडाल को शुरू किया है और हमें हर दिन दो से तीन बोरी पत्र मिल रहे हैं. यहां तक कि हम भक्तों को कलम और कागज भी उपलब्ध कराते हैं, ताकि वे पंडाल में ही अपने पत्र लिख सकें."
पुजारियों द्वारा गणपति की मूर्ति के सामने पत्र पढ़ा जाता है और उम्मीद की जाती है कि भक्तों की प्रार्थना भगवान सुनेंगे और मनोकामना पूरा करेंगे.
आयोजन टीम के एक सदस्य राजीव खन्ना ने कहा, "लोगों का यह विश्वास भगवान गणेश में है. हमें मुकदमों को सुलझाने के लिए, नौकरियों के लिए और अच्छा जीवन साथी मिलने की प्रार्थना वाले पत्र मिल रहे हैं, हमें ऐसे लोगों के भी पत्र मिले हैं जो कश्मीर में रहने वाले अपने दोस्तों के लिए चिंतित हैं. कुछ लोगों ने पदोन्नति के लिए प्रार्थना की है और कुछ आयकर की समस्याओं से राहत चाहते हैं. ऐसे मामले हैं जो तार्किक रूप से अदालत में जाने चाहिए लेकिन यहां केवल गणेश ही हैं जो मायने रखते हैं."
भले ही राज्य की राजधानी में बड़ी तादाद में मराठी आबादी नहीं है, लेकिन गणपति उत्सव अब लखनऊ में बड़े पैमाने पर मनाया जा रहा है.
हर गुजरते साल के साथ शहर में गणपति उत्सव की धूम बढ़ती ही जा रही है. अब लगभग हर कॉलोनी में अब एक गणपति पंडाल है.
एक मूर्तिकार अतुल प्रजापति ने कहा, "इस साल, हमने उन छोटी मूर्तियों को बेचा है, जिन्हें लोग अपने घरों में ले जाते हैं."
बाल गणेश के प्रति लोगों की विशेष श्रद्धा इस साल भी बड़े पैमाने पर देखने को मिला है.
अतुल ने कहा, "घर में स्थापना के लिए लोग बाल गणेश की प्रतिमा पसंद करते हैं, जबकि पंडाल बड़ी मूर्तियों को पसंद करते हैं."
गोमती नदी में मूर्तियों के 'विसर्जन' के दौरान जिला प्रशासन भी एक बड़ी समस्या का सामना कर रहा है. जिले के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, "हमने नहीं सोचा था कि इस साल इतनी बड़ी भीड़ होगी. हमने केवल झूलेलाल घाट को विसर्जन के लिए तय किया है और भीड़ को संभालने की हरसंभव कोशिश कर रहे हैं."