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यूपी: आदित्यनाथ के स्कैनर से दूर रहने में भलाई समझ रहे हैं माफिया, शांत हो गई हैं बंदूकें

योगी सरकार के मूड को नई पीढ़ी के गिरोह अच्छी तरह समझ चुके हैं और वे आदित्यनाथ के स्कैनर से दूर रहने में ही अपनी भलाई समझ रहे हैं. योगी आदित्यनाथ ने संगठित अपराधों का नेटवर्क कमजोर कर दिया है.

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में अस्सी के दशक से ही संगठित अपराध फलता-फूलता रहा है. तब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृहनगर गोरखपुर को राज्य की अपराध राजधानी के रूप में जाना जाता था. बीते दो सालों में जब से योगी आदित्यनाथ राज्य के मुख्यमंत्री बने हैं, तब से संगठित अपराधों का असर कम हो गया है, वहीं गिरोह अलग-थलग पड़ गए हैं.

राज्य का सबसे वरिष्ठ माफिया डॉन हरि शंकर तिवारी, अब अस्सी साल का बुजुर्ग बन चुका है, जबकि उसके घोर विरोधी वीरेंद्र प्रताप शाही दुनिया को अलविदा कह चुके हैं.

गोरखपुर में अब बंदूकें शांत हो गई हैं.

माफिया गिरोहों के सरगना मुख्तार अंसारी, बृजेश सिंह और अतीक अहमद जेल में कैद हैं, जबकि अभय सिंह और धनंजय सिंह जैसे अन्य लोग बिल्कुल चुप बैठ गए हैं.

सबसे शक्तिशाली माफिया डोन में से एक मुख्तार अंसारी, जो कि पांच बार विधायक रह चुके हैं, वह 2005 में भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की हत्या के आरोप में जेल में बंद हैं.हाल ही में वह इस मामले से बरी हो गए हैं, लेकिन अन्य मामलों में जेल में बंद हैं.

पूर्वी उत्तर प्रदेश में मुख्तार अंसारी के दबदबे का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने जेल के अंदर से ही 2007, 2012 और 2017 के विधानसभा चुनाव जीते.

समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के शासन में मुख्तार अंसारी को विधानसभा सत्रों में भाग लेने और राज्य की राजधानी में अधिकारियों और समर्थकों से मिलने का सौभाग्य भी मिला. यहां तक कि उन्होंने विधान भवन के केंद्रीय कक्ष से अपना मोबाइल कार्यालय भी चलाया.

हालांकि आदित्यनाथ की राज्य सरकार ने अदालत में विधानसभा सत्रों में भाग लेने पर मुख्तार अंसारी की याचिका का विरोध किया, जिससे माफिया डॉन को अब वैधानिक कार्यवाही में भाग लेने की अनुमति नहीं मिली.

ऐसे में मुख्तार अंसारी का गिरोह भी बिखरने लगा है. उनके करीबी सहयोगी मुन्ना बजरंगी की पिछले साल जुलाई में बागपत जेल के अंदर गोली मारकर हत्या कर दी गई थी और हाल ही में बसपा के टिकट पर लोकसभा के लिए चयनित उनका शार्प शूटर अतुल राय भी दुष्कर्म के आरोप में जेल में हैं.

हालांकि मुख्तार अंसारी के कट्टर प्रतिद्वंदी बृजेश सिंह को उम्मीद थी कि योगी के शासनकाल में उनका अच्छा वक्त आएगा, लेकिन उन्हें भी वैधानिक कार्यवाही में शामिल होने की अनुमति नहीं मिली.

करीब एक दशक तक फरार रहने के बाद आखिरकार 2008 में बृजेश सिंह को ओडिशा से गिरफ्तार किया गया था. कथित तौर पर उनकी गिरफ्तारी के समय उनपर 100 मामले दर्ज थे और वहीं अब वह राज्य विधान परिषद के सदस्य हैं. इनके भतीजे सुशील सिंह भाजपा के विधायक हैं.

बृजेश सिंह अब वाराणसी के जेल में हैं और अपना प्रभाव खो चुके हैं.

योगी सरकार ने माफिया डॉन अतीक अहमद के साम्राज्य को भी 'बर्बाद' कर दिया. अतीक इस समय अहमदाबाद की साबरमती जेल बंद हैं. हाल ही में उनके सहयोगियों पर सीबीआई द्वारा छापा मारा गया है और उनके वित्तीय लेनदेन और बेनामी संपत्ति संदेह के घेरे में हैं. वित्तीय तौर पर वह पहले ही कमजोर हो चुके हैं. ऐसे में उनके सहयोगियों का कहना है कि उनके लिए अपना साम्राज्य वापस पाना मुश्किल होगा.

इसके अलावा माफिया गिरोह का संचालन करने वाले अभय सिंह और धनंजय सिंह भी योगी सरकार में शांत बैठे हैं.  दोनों नेताओं ने हाल में हुए चुनाव में हिस्सा नहीं लिया और विवादों से दूर रहे.

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