लखनऊ: मायावती फिर से बीएसपी की राष्ट्रीय अध्यक्ष चुन ली गईं हैं. लखनऊ में पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में इसका एलान हुआ. इस घोषणा के बाद मीटिंग में मौजूद लोगों ने तालियां बजा कर इसका स्वागत किया. पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने अपनी बहन जी को फूल माला से लाद दिया. पार्टी के महासचिव सतीश चंद्र मिश्र ने ज़रूरी क़ानूनी कार्रवाई पूरी की. 1984 में कांशीराम ने एक पार्टी के रूप में बीएसपी का गठन किया था. वैसे मायावती का अध्यक्ष चुना जाना एक खानापूर्ति ही है.
बीएसपी का अध्यक्ष चुने जाने के बाद मायावती ने घंटे भर का भाषण दिया. सबसे पहले उन्होंने 370 पर अपने मन की बात की. उनकी पार्टी ने कश्मीर के मुद्दे पर संसद में मोदी सरकार का समर्थन क्यों किया? एक-एक कर मायावती ने इसकी वजहें बताईं. उन्होंने कहा कि ये बाबा साहेब अंबेडकर का सपना था. वे कश्मीर को अलग से विशेष राज्य का दर्जा देने के पक्ष में नहीं थे.
मायावती ने कहा कि 70 सालों से ये व्यवस्था चली आ रही थी. बहिन जी ने बताया कि अंबेडकर के आदर्शों पर चलते हुए ही हमने केन्द्र सरकार का साथ दिया. राहुल गांधी समेत विपक्ष के कुछ नेताओं के कश्मीर जाने के फैसले को भी मायावती ने ग़लत बताया. उन्होंने कहा कि उनके वहां जाने से अगर हालात ख़राब हो जाते तो फिर विपक्ष के नेताओं पर ही आरोप लगते. फिर बीजेपी इसका फ़ायदा उठा लेती. इसीलिए उन्होंने इसका विरोध किया था.
बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने क़रीब दस मिनट तक कांग्रेस को ख़ूब भरा बुला कहा. उन्होंने कांग्रेस पार्टी को दलित, पिछड़ों और आदिवासियों का विरोधी बताया. उन्होंने कांशीराम की मौत पर राष्ट्रीय शोक न घोषित किए जाने का मुद्दा फिर से उठाया. तब केन्द्र में कांग्रेस की सरकार थी. मायावती इसी बहाने अलग-अलग मंचों से कांग्रेस को कोसती रही हैं.
बीएसपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में मायावती ने कहा कि हम यूपी में विधानसभा का उपचुनाव मज़बूती से लड़ेंगे. दस सालों बाद पार्टी ने उपचुनाव लड़ने का फ़ैसला किया है. इससे पहले बीएसपी ने उपचुनाव से तौबा कर ली थी. उन दिनों यूपी में मायावती की सरकार थी. पार्टी महाराष्ट्र, झारखंड और हरियाणा में विधानसभा का चुनाव लड़ेगी. दिल्ली में भी पार्टी ने चुनाव लड़ने का फ़ैसला किया है. लेकिन बैठक में मायावती ने न तो समाजवादी पार्टी का, न ही अखिलेश यादव का ज़िक्र किया.
18 सितम्बर 2003 को पहली बार पार्टी अध्यक्ष बनीं थीं मायावती
मायावती ने 18 सितम्बर 2003 को बसपा संस्थापक कांशीराम की तबीयत खराब होने के बाद पहली बार पार्टी अध्यक्ष पद सम्भाला था. उसके बाद 27 अगस्त 2006 वह दोबारा पार्टी अध्यक्ष चुनी गयी थीं.
मायावती ने सर्वसम्मति से अध्यक्ष चुने जाने के बाद सभी पार्टीजन का शुक्रिया अदा करते हुए कहा कि वह बहुजन आंदोलन के लिये पूरी तरह समर्पित हैं और इसके हित में वह ना तो कभी रुकेंगी और ना ही झुकेंगी.
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