गोरखपुर: उत्तर प्रदेश की राजनीति पहले से ही जातिगत ध्रुवीकरण और जातिगत दलों के लिए जानी जाती रही है. इस बार पूर्वांचल में निषाद जाति का जोरदार उदय देखने को मिला है 2018 के गोरखपुर उप-चुनाव में बीजेपी उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सीट पर हार गई जिसके बाद निषाद वोटों की शक्ति और संगठन का अंदाजा लगा.
इस चुनाव में निषाद वोटरों को साधने के लिए बीजेपी ने निषाद पार्टी से गठबंधन किया है और अभिनेता रविकिशन को उम्मीदवार बनाया है. वहीं गठबंधन की तरफ से उम्मीदवार समाजवादी पार्टी से रामभुआल निषाद है.
गोरखपुर के 3.50 लाख से ज्यादा निषाद वोटर हैं इस वक़्त सबसे मौजू सवाल है कि निषाद वोटर अपनी पारंपरिक पार्टी के असर से बीजेपी के साथ जाएगा या अपने सजातीय सपा-बसपा गठबंधन उम्मीदवार को चुनेगा?
ऐतिहासिक तौर से पूर्वांचल की बड़ी,छोटी नदियों से भरपूर धरा पर निषाद वोटरों की बहुलता रही है. इन नदियों के आसपास ही पुराने काल से ही बड़े पैमाने पर निषाद समुदाय के गांव कस्बे बसते रहे हैं. प्राचीन काल से ही इसके आसपास के इलाके में कई निषादराज भी रहे हैं. हिंदू मान्यता के अनुसार, केवट ने राम, सीता और लक्ष्मण को अपनी नाव में बैठाकर गंगा पार कराई थी. वहीं केवट जिन्हें निषाद समाज के लोग आराध्य मानते हैं और उन्हें 'निषादराज केवट' कहते हैं.
निषाद राज केवट को इस समुदाय के लोग अपना देवता मानते हैं उनकी आरती उतारते हैं पूजा करते है. कुशीनगर महाराजगंज सलेमपुर मऊ बलिया समेत कई इलाकों में इस समुदाय का जोरदार असर है. पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की जमीन गोरखपुर में 3.50 लाख से ज्यादा वोटरों की तादाद के चलते इनका असर जोरदार माना जाता रहा है.
गोरखपुर में जमुना निषाद रामभुआल निषाद जैसे बड़े निषाद नेता रहे हैं जो योगी आदित्यनाथ को टक्कर देते रहे हैं. पिछले 5 सालों में इस समुदाय में बड़ा आंदोलन हुआ और बड़े पैमाने पर संगठित होकर इस समुदाय ने एक राजनीतिक शक्ति का रूप अख्तियार कर लिया है.
इस लोकसभा चुनाव में सवाल यही है कि क्या निषाद पार्टी अपने वोट को बीजेपी में शिफ्ट करा पाएगी. रामभुआल निषाद अपनी छवि और अपनी बात के हिसाब से निषादों का भरोसा जीतने में सफल होंगे. चुनाव परिणाम जो भी आएंगे पर उस पर निषाद समुदाय के समर्थन या असमर्थन का असर साफ तौर पर दिखेगा.
बीजेपी का गढ़ रही है गोरखपुर लोकसभा सीट
सालों तक गोरखपुर लोकसभा बीजेपी का गढ़ रही और योगी आदित्यनाथ बड़े पैमाने पर निषाद वोट पाकर लाखों के अंतर से जीत ते रहे पर उपचुनाव में समीकरण बदल गए. निषाद पार्टी और गठबंधन के संयुक्त उम्मीदवार प्रवीण निषाद ने बीजेपी के उम्मीदवार को हराकर निषाद की शक्ति बता दी जिसके बाद माना जाने लगा कि निषादों ने बीजेपी का साथ छोड़ दिया है पर फिर समीकरण बदले और निषाद पार्टी ने बीजेपी से गठबंधन करके यह चुनाव लड़ने का निर्णय लिया.
संजय निषाद ने कहा- महाप्रसाद मिला है
निषाद पार्टी एक अलग पार्टी और एक अलग झंडे के बैनर तले उन्होंने निषादों की राजनीतिक चेतना को एक स्वतंत्र रूप देने की कोशिश की और इसका प्रसार बिंद, धीमर, मल्लाह और साहनी उपनाम वाली जातियों तक किया. अपनी गोरखपुर की रैली में समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव निषाद पार्टी पर मठ से प्रसाद लेकर मौका परस्ती का आरोप लगाया जिसके जवाब में निषाद पार्टी के संस्थापक संजय निषाद ने कहा कि उन्हें महाप्रसाद मिला है अपने समुदाय की मांग को लेकर बीजेपी ने उन्हें आरक्षण, भगवान निषाद की 80 फुट ऊंची प्रतिमा, किले का जिरोधार और अलग से मत्स्य विभाग बनाने की बात कही है.
संजय यह तक कह जाते हैं कि यह चुनाव मोदी का चुनाव है और उनकी जीत सुनिश्चित है. निषाद पार्टी के समर्थन से बीजेपी के उम्मीदवार रवि किशन भी अपनी जीत का दावा करते हैं और कहते हैं कि निषाद लाखों की तादाद में बीजेपी के साथ हैं. संजय निषाद बीजेपी से गठबंधन पर कहते हैं यह स्वाभाविक गठबंधन है रामराज्य और निषाद राज के बीच मित्रता थी आज उनके मानने वालों के बीच दोस्ती है.
रामभुआल निषाद ने क्या कहा
रामभुआल निषाद कहते हैं कि वह हर गांव में सैकड़ों लोगों को जानते हैं और निषादों की सालों से आवाज रहे हैं. निषाद उनके पक्ष में लामबंद हैं महाराजगंज में निषाद पार्टी के नेता और बीजेपी के लोकसभा उम्मीदवार प्रवीण निषाद का कैम्पेन करने के बाद अब निषाद पार्टी के कार्यकर्ता लाव लश्कर के साथ गोरखपुर में बीजेपी के प्रचार में लग गए हैं.
क्या है लोगों का कहना
गोरखपुर के निषाद बहुल रूस्तमपुर-मिर्ज़ापुर इलाक़े में एक निषाद मंदिर है जहां वर्तमान निषाद सामाजिक आंदोलन और निषाद पार्टी से जुड़े कई लोग हमें अपना राजनीतिक विचार बताने लगे. लाखों की तादाद में गोरखपुर में रहने वाले कुछ निषादों से जब हमने बात की तो वह भी बेरोजगारी शिक्षा सामाजिक न्याय जैसे मुद्दों की बात करने लगे. बड़े पैमाने पर निषाद समुदाय के लोग कहते हैं कि वह अपने समाज से ही आने वाले राम भुवाल निषाद को ही हर कीमत पर वोट देंगे, वहीं कुछ लोग यह कहते हैं कि वह अपनी निषाद पार्टी को ही चुनेंगे, निषाद पार्टी ने बीजेपी से गठबंधन किया है तो इस बार कमल के निशान पर वोट देंगे.
बड़े पैमाने पर लोग अभी भी रवि किशन को पहचानने से इनकार करते हैं. निषाद पार्टी के बीजेपी के गठबंधन में लोगों की शिकायत है कि जिन मांगों को लेकर इसी बीजेपी सरकार से निषाद पार्टी के लोगों ने लाठियां खाई थीं आज उसके घाव भी नहीं भरे और यह बीजेपी के संग बैठ गए हैं.
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