इलाहाबाद: यूपी में पूर्वांचल के अंसारी ब्रदर्स को पार्टी में शामिल कराना और उन्हें बेगुनाह साबित करने की दलील पेश करना बीएसपी सुप्रीमो मायावती को फिर से कानूनी मुसीबत में डाल सकता है. बाहुबली मुख्तार अंसारी और उनके परिवार के खिलाफ दर्ज क्रिमिनल केसेज को लेकर मायावती ने फिर वही बयान दिया है, जिसकी वजह से पिछली बार उन्हें कानूनी पेचीदगियों का सामना करना पड़ा था.



अंसारी ब्रदर्स पर कृष्णानंद राय के कत्ल का आरोप


अंसारी ब्रदर्स पर बीजेपी के जिस तत्कालीन विधायक कृष्णानंद राय के कत्ल का आरोप है, उनकी पत्नी अलका राय और गवाहों के परिवार वालों ने मायावती को कानूनी नोटिस देकर उनके खिलाफ हाईकोर्ट में केस करने का फैसला किया है. मायावती के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में यह अर्जी 30 जनवरी को दाखिल किये जाने की तैयारी है.


अर्जी में कहा जाएगा कि जिस कृष्णानंद राय मर्डर केस का ट्रायल दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट में चल रहा है, उस मामले में आरोपी अंसारी ब्रदर्स को बेगुनाह बताकर उन्हें अपनी तरफ से क्लीन चिट देने की कोशिश कर मायावती ने अदालत की अवमानना की है, इसलिए उनके खिलाफ क्रिमिनल कंटेम्प्ट के तहत कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए.


अंसारी ब्रदर्स के खिलाफ ज़्यादातर मुक़दमे सियासी बदले की भावना से


गौरतलब है कि बुधवार को मायावती ने मुख्तार अंसारी समेत उनके बेटे व भाई को न सिर्फ अपनी पार्टी में शामिल किया, बल्कि तीनो को बीएसपी का टिकट भी दिया. मायावती ने इस दौरान प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि अंसारी ब्रदर्स के खिलाफ ज़्यादातर मुक़दमे सियासी बदले की भावना से दर्ज कराए गए हैं और बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय मर्डर केस में इनके खिलाफ कोई सबूत नहीं हैं.


मायावती ने अपनी दलीलों से अंसारी ब्रदर्स को बेगुनाह साबित करने की भी कोशिश की. अंसारी परिवार इससे पहले भी एक बार साल 2007 में बीएसपी में शामिल हो चुका है. 2009 में मुख्तार अंसारी के समर्थन में की गई बनारस की रैली में भी मायावती इसी तरह का बयान देकर कानूनी पचड़े में फंस चुकी हैं. उस वक्त भी कृष्णानंद राय की विधवा अलका राय ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में उनके खिलाफ क्रिमिनल कंटेम्प्ट की अर्जी फ़ाइल की थी.



मायावती के खिलाफ केस चलाने के लिए एडवोकेट जनरल से परमिशन


अलका राय की उस अर्जी पर हाईकोर्ट ने मायावती के खिलाफ केस चलाने के लिए एडवोकेट जनरल से परमिशन मांगी थी, लेकिन परमीशन न मिलने और अदालत का फैसला आने से पहले ही अंसारी ब्रदर्स को बीएसपी से बाहर कर दिए जाने की वजह से मायावती के खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई नही हो सकी है.

साल 2009 के मामले में सीएम होने की वजह से एडवोकेट जनरल की परमीशन नहीं मिलने की वजह से हाईकोर्ट ने कंटेम्प पेटीशन को खारिज तो कर दिया था, लेकिन मायावती के बयान पर गहरी नाराज़गी जताते हुए यह टिप्पणी की थी कि जनता द्वारा चुने हुए प्रतिनिधियों व ज़िम्मेदार पदों पर बैठे हुए लोगों को इस तरह के बयान नहीं देना चाहिए. अदालत ने मायावती समेत दूसरे लोगों को इस तरह के बयान से बचने की नसीहत दी थी.


कृष्णानंद राय मर्डर केस में अंसारी ब्रदर्स के खिलाफ कोई सबूत नहीं


बुधवार की प्रेस कांफ्रेंस में भी मायावती ने साल 2009 की ही बातों को दोहराते हुए अंसारी ब्रदर्स के खिलाफ दर्ज मुकदमों को सियासी बदले की भावना बताया तो साथ ही फिर से यह दोहराया कि कृष्णानंद राय मर्डर केस में उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं है. मायावती की इस दलील से नाराज़ होकर कृष्णानंद राय की पत्नी अलका राय और गवाहों के परिवार वालों ने मायावती के खिलाफ हाईकोर्ट में फिर से क्रिमिनल कंटेम्प्ट का केस दाखिल करने की बात कही है.


परिवार वालों ने इस बारे में हाईकोर्ट के वकील दुर्गेश कुमार से कानूनी सलाह ली है और तीस जनवरी को अर्जी दाखिल करने की बात कही है. अगर हाईकोर्ट में अर्जी दाखिल होती है तो मायावती पर इस बार कानूनी शिकंजा कस सकता है और वह मुसीबत में पड़ सकती हैं.