नई दिल्ली: यूपी के सियासी अखाड़े में तमाम दलों के राजनीतिक धुरंधर पहले चरण के मुकाबले में अपनी-अपनी किस्मत आजमाने के लिए तैयार हैं. दो दिन बाद यानी 11 फरवरी को पहले चरण का मतदान होने वाला है. जिसके चलते चुनाव प्रचार थम गया है. लेकिन अब भी उत्तर प्रदेश की राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले लोगों के लिए ये मुद्दा कौतुहल का विषय बना हुआ है कि पश्चिमी यूपी में आखिर किसकी तरफ जाएंगे जाट?
खेती पर निर्भर है यहां की बड़ी आबादी
पश्चिमी यूपी यानी वो इलाका जिसे जाट लैंड भी कहा जाता है. उत्तर प्रदेश के इस इलाके में गन्ने का सबसे ज्यादा उत्पादन होता है. यहां की बड़ी आबादी खेती पर निर्भर है. यहां के किसानों के बारे में कहा जाता है कि सीजन की शुरूआत में उन्हें भले ही ये तय करने में वक्त लग जाए कि वो कौन सी फसल लगाएंगे लेकिन ये पहले से तय होता है कि कौन सी फसल नहीं लगानी है. इस बार यहां के किसान खेती के इसी फॉर्मूले को वोटिंग में भी इस्तेमाल करने का मन बना रहे हैं. यानी वोट किसे देना है ये भले ही तय न हो पर किसे नहीं देना है इसका मन बना चुके हैं.
51 सीटें सीधे तौर पर प्रभावित करने का दम रखते हैं जाट मतदाता
आपको बता दें कि पहले चरण के तहत 15 जिलों की 73 सीटों पर चुनाव होना है. इनमें से 51 सीटें सीधे तौर पर जाट मतदाता प्रभावित करने का दम रखते हैं. इन सभी सीटों पर 22 हजार से लेकर एक लाख 28 हजार तक मतदाता हैं. लेकिन कांग्रेस और एसपी के बीच गठबंधन के कारण इन इलाकों में जीत हासिल करने का दबाव भी काफी बढ़ जाएगा.
उत्तर प्रदेश में चुनाव का पहला चरण पश्चिम उत्तर प्रदेश में है. यहां सीटों का ज्यादातर गणित निर्भर होता है, जाट और मुसलमान वोटो पर. मुसलमान यहाँ करीब 26 प्रतिशत है औऱ जाट वोट करीब 17 फीसदी. पश्चिमी यूपी में चुनाव प्रचार अब खत्म हो गया है, वोटिंग में बस दो दिन ही बचे हैं. हर पार्टी का उम्मीदवार उम्मीदों के रथ पर सवार जनता के बीच है. लेकिन जनता क्या सोच रही है.
पश्चिमी यूपी की जनता के मन की बात दिखाने से पहले आपको बताते हैं यहां का चुनावी गणित...
- पश्चिमी यूपी में कुल 77 विधानसभा सीटें हैं
- इनमें से 15 जिलों की 73 सीटों पर 11 फरवरी को वोटिंग है.
- इन सीटों पर 17% जाट वोट और 33 प्रतिशत मुस्लिम हैं
- यानी यहां जीत का गणित जाट और मुस्लिम तय करते हैं
- इसमें से भी करीब 60 सीटें ऐसी हैं जहां जाटों की आबादी 40 प्रतिशत तक है
- ऐसे में यहां किसी उम्मीदवार की हार जीत में जाटों की बड़ी भूमिका होती है
हैरानी में डालने वाला है BJP के खिलाफ जाटों में गुस्सा
यूपी के बागपत जिले में बीजेपी के खिलाफ जाटों में गुस्सा हैरानी में डालने वाला है. क्योंकि इन्हीं जाटों ने 2014 के चुनाव में बीजेपी को झोली भरकर वोट दिए थे लेकिन अब इनका कहना है कि उस वक्त गलती हो गई थी. आखिर 3 सालों में ऐसा क्या हुआ कि बीजेपी के पक्ष में खड़े होने वाले जाट आज बीजेपी के खिलाफ हो गए हैं.
इन दिनों पश्चिमी यूपी में डेरा डाले बैठे जाट आरक्षण संघर्ष समिति के अध्यक्ष यशपाल मलिक के मुताबिक, हमारा मुद्दा है जाट आरक्षण. इस पर पीएम ने मार्च 2015 में घर बुलाकर वादा किया कि 5-6 महीने में करा दूंगा. इसके बाद हरियाणा में गोलियां चलवा दीं.
आरक्षण की मांग को लेकर जाटों ने किया था पिछले साल आंदोलन
नौकरी और शिक्षा संस्थानों में आरक्षण की मांग को लेकर जाटों ने पिछले साल हरियाणा में आंदोलन किया. जाटों की मांग है कि उन्हें पिछड़ा वर्ग में शामिल किया जाए. वो आंदोलन इतना हिंसक हो गया कि उसमें करीब 30 लोगों की मौत हो गई, इनमें से 18 जाट थे. इससे जाटों का गुस्सा और भड़क गया और उसी का नतीजा है कि हरियाणा और दिल्ली के जाट अब यूपी के जाटों को एकजुट करने में लगे हैं.
बीजेपी को भी जाटों के इस गुस्से का अंदाजा है. यही वजह है कि बीजेपी ने इस बार यहां 16 जाट उम्मीदवार उतारे हैं. बड़ौत से बीजेपी के उम्मीदवार के पी मलिक जोर शोर से चुनाव प्रचार में लगे हैं. हर उम्मीदवार की तरह उन्हें भी जीत की उम्मीद है. हमने जब उनसे बीजेपी के खिलाफ जाटों की अपील के बारे में सवाल किया तो उन्होने इसे सिरे से खारिज कर दिया.
किसानों के इर्द-गिर्द घुमती है RLD की राजनीति
दूसरे दलों की बात की जाए तो समाजवादी पार्टी से भी यहां का जाट समुदाय ज्यादा खुश नजर नहीं आ रहा है. ऐसे में माना जा रहा है कि चौधरी अजित सिंह के राष्ट्रीय लोक दल के लिए इस बार अच्छा मौका है.
आरएलडी की राजनीति किसानों के इर्द-गिर्द घुमती है, और जाट वोट आर एल डी के परंपरागत वोट माने जाते है, लेकिन 2014 के चुनाव में ये वोट खिसक गए थे.
बड़ौत से राष्ट्रीय लोक दल के उम्मीदवार साहेब सिंह कुछ समय पहले तक समाजवादी पार्टी में हुआ करते थे लेकिन अब चौधरी अजित सिंह के गुण गा रहे हैं यही नहीं वो ये दावा कर रहे हैं कि उनकी तरह जाट वोटर भी अजित सिंह के साथ आ गया है.
दावे तो सब कर रहे हैं लेकिन जाट किसके साथ खड़े होंगे और किसका खेल बिगाड़ेंगे ये नतीजों से ही तय होगा.