वाराणसी: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2014 में कहा था कि उन्हें माँ गंगा ने बुलाया है. लेकिन ढाई साल के अंतराल के बाद विधानसभा चुनाव से पहले यही काशी बीजेपी के लिए सिरदर्द बन गई है. वजह है काशी ना सिर्फ बीजेपी के लिए बल्कि खासतौर पर मोदी के लिए इन चुनावों में प्रतिष्ठा का मुद्दा है. वाराणसी ज़िले में कुल 8 सीटें हैं, जिसमे 5 विधानसभा सीटें मोदी की संसदीय सीट वाराणसी लोकसभा के अंतर्गत आती हैं. इन पांच में से बीजेपी ने 2012 में 3 सीटों पर जीत हासिल की थी. इस बार जिस तरह से टिकट बंटवारे के बाद बीजेपी में खुलकर बगावत सामने आयी है, उससे बीजेपी की पेशानी में बल ज़रूर पड़ गया है.
बगावत को लेकर बीजेपी नेतृत्व खासा चिंतित
बीजेपी को ये बात ठीक से पता है कि तमाम कोशिशों के बाद अगर वो यूपी में जीत हासिल कर भी लेती है तो भी अगर वो वाराणसी में अपनी प्रतिष्ठा नहीं बचा पाई तो जीतने पर भी उसकी भद्द पिटनी तय है. बीजेपी अगर यूपी हार भी जाए, तो भी काशी के नतीजों का श्रेय मोदी के सिर पर ही जाना है. यानी जीत हो या हार, काशी का महत्व मोदी के लिए बहुत खास है. शायद इसीलिए टिकट बंटवारे के बाद खुलकर सामने आयी बगावत को लेकर बीजेपी नेतृत्व खासा चिंतित है.
वाराणसी में मतदान की तिथि 8 मार्च है. यानी अंतिम चरण में वाराणसी में वोट डाले जायेंगे. लेकिन फिर भी पार्टी किसी तरह यहाँ ढिलाई नहीं बरतनी चाहती. विरोध के स्वर फूटते ही सबसे पहले प्रदेश प्रभारी ओम माथुर और प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्या वाराणसी पहुंचे. उसके बाद केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा और महेंद्र पांडेय ने 3 दिन तक काशी में डेरा डालकर विरोध करने वालों को समझाने की कोशिश करते रहे.
मेल-मुलाकात कर मामले को ठीक करने में लगे हुए हैं BJP नेता
यही नहीं, बीजेपी सूत्रों की माने तो संघ और बीजेपी में सामंजस्य बनाने की ज़िम्मेदारी सँभालने वाले रामलाल भी वाराणसी आकर यहां हालात का जायज़ा लेकर गए हैं. इसके साथ ही केंद्रीय मंत्री और अपना दल के एक गुट की अगुवाई करने वाली अनुप्रिया पटेल भी काशी आकर अपने कार्यकर्ताओं को चुनाव में जी-जान से लगने का मन्त्र देकर गयी हैं. काशी क्षेत्र के अध्यक्ष लक्ष्मण आचार्य भी लगातार मेल-मुलाकात कर मामले को ठीक करने में लगे हुए हैं.
बताया जा रहा है कि पार्टी का शीर्ष नेतृत्व लगातार काशी के हालात की रिपोर्ट ले रही है. बताया जा रहा है कि ओम माथुर और केशव मौर्या के साथ साथ संघ के नेताओं ने भी काशी के हालात पर अपनी रिपोर्ट बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व को दी है, जिसकी पार्टी समीक्षा कर रही है. अभी मतदान में एक महीने से ज्यादा समय बचा हुआ है. बीजेपी चाहती है कि किसी भी तरह वाराणसी में विरोध की आवाज़ को बंद कर माहौल बीजेपी के पक्ष में किया जाये, क्योंकि काशी की जीत का महत्व यूपी की जीत से कम नहीं.
7 बार से वाराणसी की दक्षिण सीट से जीत दर्ज करने वाले श्यामदेव रॉय चौधरी का टिकट कटा
वाराणसी में बीजेपी जिन तीन सीटों पर 2012 में जीती थी, वो तीनों सीटें बीजेपी का मज़बूत गढ़ मानी जाती थीं. लेकिन इस बार इन्ही तीनों सीटों में टिकट बंटवारे ने बीजेपी के लिए मुश्किल खड़ी कर दी है. सात बार से वाराणसी की दक्षिण सीट से जीत दर्ज करने वाले श्यामदेव रॉय चौधरी का टिकट काटकर बार काउंसिल के अध्यक्ष रहे नीलकंठ तिवारी को उम्मीदवार बनाये जाने से तो नाराजगी थी ही. इसके साथ साथ शहर उत्तरी और कैंट सीट के टिकट बंटवारे ने भी विवाद खड़ा किया है.
उत्तरी सीट से मौजूदा विधायक रविंद्र जैसवाल पर पार्टी ने एक बार फिर विश्वास जताया है. लेकिन यहाँ किसान मोर्चा के प्रदेश मंत्री ने बगावत पर जैसवाल के अपराधी होने के कई सबूत सोशल मीडिया पर डालने शुरू कर दिए हैं. वहीँ कैंट सीट पर पार्टी ने मौजूदा विधायक ज्योत्स्ना श्रीवास्तव के बेटे सौरभ श्रीवास्तव को उम्मीदवार बनाया है. यहाँ भी बीजेपी में खुलकर सौरभ का विरोध किया जा रहा है. ज़िले की शिवपुर सीट पर सुरेंद्र सिंह ओढ़े को उम्मीदवार बनाये जाने पर भी पार्टी में कार्यकर्ताओं ने विरोध दर्ज कराया है.
काशी ने बीजेपी के लिए चुनाव से पहले बढ़ा दी है परेशानी
ऐसे में कहा जा सकता है कि काशी ने बीजेपी के लिए चुनाव से पहले परेशानी ज़रूर बढ़ा दी है. देखना होगा पार्टी इस विरोध को किस तरह कुंद कर जनता के बीच मोदी के नाम पर एक बार फिर लोकसभा चुनावों वाला असर विधानसभा चुनाव में दोहराने की योजना रचना करती है और उसमें कितनी सफल होती है. काशी की जीत मोदी की स्वीकार्यता तय करेगी वहीँ यहाँ की हार मोदी के प्रदर्शन पर सवालिया निशान छोड़ देगी, जो शायद 2019 के चुनावों में भी बीजेपी और मोदी का पीछा नहीं छोड़ेगी.