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यूपी चुनाव: 7 बार MLA रह चुके भगवती सिंह के पास ना ही अपना कोई घर और ना ही कोई गाड़ी
![यूपी चुनाव: 7 बार MLA रह चुके भगवती सिंह के पास ना ही अपना कोई घर और ना ही कोई गाड़ी Up Polls This 97 Year Old 7 Time Mla From Uttar Pradesh Has An Advice For Party High Command यूपी चुनाव: 7 बार MLA रह चुके भगवती सिंह के पास ना ही अपना कोई घर और ना ही कोई गाड़ी](https://static.abplive.com/wp-content/uploads/sites/2/2017/02/10000027/Bhagwati-Singh-Visharad.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=1200&height=675)
लखनऊ: जब कभी करोड़पति प्रत्यशियों की आप चर्चा सुनते होगें तो एक सवाल आपके मन में जरूर आता होगा कि क्या धनप्रतिनिधि ही जनप्रतिनिधि बन सकते हैं ? यूपी के चुनावी माहौल में सात बार एमएलए रहे इस शख्स की कहानी आपको हैरान कर देगी. दो फिट चौड़े इस बिस्तर पर लेटे इस शख्स का नाम भगवती सिंह है. यूपी के उन्नाव जिले में एक गरीब परिवार में जन्मे 97 साल के भगवती सिंह सात बार विधायक रह चुके हैं. लेकिन ना तो इनके पास अपना कोई घर है और ना ही कोई गाड़ी.
11 साल की उम्र में कपड़ा मार्केट में लिखापढ़ी का काम कानपूर के धनकुट्टी इलाके में इस पुराने मकान से भगवती सिंह का करीब सत्तर साल पुराना नाता है, इनके पांच बेटे और एक बेटी की का जन्म यही हुआ. उनाव में पांच तक की पढ़ाई करने के बाद भगवती सिंह कानपुर अपने पिता के पास आ गए. यहीं से उन्होंने मिडिल की पढ़ाई और ग्यारह साल की उम्र से यहाँ की कपड़ा मार्केट में लिखापढ़ी का काम करने लगे. काम के दौरान मज़दूरों के लिए आंदोलन करते रहे और पढ़ाई भी. कानपुर से ही उन्होंने हिंदी में विशारद किया और इनका नाम हो गया भगवती सिंह विशारद.
1962 में कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार से हार गए चुनाव साल 1952 में जय प्रकाश नारायण ने खुद इन्हें दिल्ली बुलाकर कानपुर की जनरलगंज से टिकट दिया, लेकिन वो चुनाव हार गए. बाद साल 1957 में पीएसपी पार्टी से उनाव के बारासगवर सीट से चुनाव लड़े और जीत गए. साल 1962 में कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार से चुनाव हार गए. साल 1967 में कांग्रेस से चुनाव लाडे और जीत हासिल की. 1991 तक सात बार विधायक बने भगवती सिंह विशारद.
कानपुर ही नहीं दिल्ली तक मशहूर थी भगवती सिंह की सादगी भगवती सिंह की सादगी सिर्फ उन्नाव या कानपुर ही नहीं दिल्ली तक मशहूर थी. वो साइकिल से क्षेत्र में भर्मण करते थे. लोगों का दुःख दर्द समजहने के लिए पांच पांच दिन तक क्षेत्र में रहते थे. घर क्यों नहीं बना पाए तो कहते हैं पहले लोग जनसेवा के लिए राजनीति करते थे. अगर घर बनाता तो सात बार चुनाव न जीत पाता आजकल लोग अपने लिए राजनीति करते हैं,यही दो पैर गाडी है. पांच बेटे में सबसे छोटे की मौत हो गयी बाकी बाहर रहते हैं एक बेटा और एक भतीजा मेरे पास रहता है. परिवार को मलाल रहता है की घर नहीं बन पाया आज भी किराये पर है , लेकिन उन्हें कोई अफ़सोस नहीं है.
'परिवार से ज्यादा जनता का ख्याल रखते थे बाबूजी' उनके साथ रह रहे बेटे दिनेश सिंह के मुताबिक़ बाबूजी परिवार से ज्यादा जनता का ख्याल रखते थे. हम लोग रात में सोते समय जान पाते थे की बाबूजी आ गए हैं. इस चीज का अफ़सोस तो रहता है की कुछ किया नहीं न ही घर बना पाया, लेकिन लोग समाज इज्जत की निगाह से देखते है तो सारा मालाल दूर हो जाता है. कोई कांग्रेस का नेता पूछने नहीं आता है, कभी श्रीप्रकाश जायसवाल मिलते हैं तो बाबूजी का हाल पूंछ लेते हैं. भगवती सिंह के बड़े बेटे और एक नाती कई बार कांग्रेस से टिकट मांग चुके हैं. लेकिन कांग्रेस ने उन्हें मौका नहीं दिया.
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