यूपी चुनाव: आजादी के बाद पहली बार चुने जाएंगे आदिवासी जन प्रतिनिधि
सोनभद्र: उत्तर प्रदेश में जनजातियों की आबादी साढ़े पांच लाख से ज्यादा होने के बावजूद भी अभी तक कोई सीट इस विशेष जाति के लिए आरक्षित नहीं थी लेकिन इस बार यूपी विधानसभा चुनाव में सोनभ्रद जिले की दो ऐसी सीटें हैं, जहां आजादी के बाद पहली बार आदिवासी समुदाय का ही जनप्रतिनिधि जीतकर विधानसभा पहुंचेगा.
पहली बार जनजातीय समुदाय के लिए आरक्षित हुई यह सीट
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद चुनाव आयोग ने पहली बार सोनभ्रद जिले की दुद्धी और ओबरा विधानसभा सीट को जनजातीय समुदाय के लिए आरक्षित किया है. आदिवासी नेता विजय सिंह गोंड ने बताया कि वह इस लड़ाई को सुप्रीम कोर्ट तक ले गए थे. गोंड इस जीत को आदिवासियों की असली जीत बताते हैं.
विजय गोंड कहते हैं, "जनजातीय बहुल इस जिले की गोंड, धुरिया, नायक, ओझा, पठारी, राजगोड, खरवार, परहिया, बैगा, पंखा, पनिका, अगरिया, चेरो और भुइंया जातियां अपना जनप्रतिनिध चुनेगीं."
दरअसल यूपी में छह वर्ष पहले हुए परिसीमन के बाद दुद्धी और ओबरा की विधानसभाएं अस्तित्व में आई थीं. जनजातीय के लिए इस सीट को आरक्षित किए जाने के फैसले से यहां का जनजातिय समुदाय भी काफी खुश है.
चुनाव आयोग के आदेश के बाद दुद्धी और ओबरा सीट हुई आरक्षित
2012 के विधानसभा चुनाव में जिले की चार विधानसभा सीटें थीं. इसमें राबर्टसगंज, घोरावल ओर ओबरा सामान्य वर्ग एवं दुद्घी सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित थी. आयोग के आदेश के बाद अब दुद्धी और ओबरा को जनजाति के लिए आरक्षित कर दिया गया है.
दरअसल जिले को नजदीक से जानने वाले लोग बताते हैं कि सोनांचल में आदिवासियों की अनदेखी कई सालों से हो रही थी. वर्ष 2002 में गोंड सहित कई अन्य जातियों को अनुसूचित जाति से जनजाति में शामिल कर लिया गया था. इसके तहत जिन जातियों को यह लाभ मिला था, वे इस सीट पर चुनाव लड़ने से वंचित हो गई थीं.
साल 2005 और 2010 के त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव हुए तो आदिवासी केवल मतदाता ही बनकर रह गए थे. पहली बार साल 2015 में हुए पंचायत चुनाव में जनजातियों को चुनाव लड़ने का मौका मिला था. पहली बार आदिवासियों को दो सीट देकर उनको और मजबूत करने का काम किया गया है.
संवैधानिक अधिकारों से वंचित रहे आदिवासी समुदाय
जिल के एक वरिष्ठ समााजिक चिंतक अवधेश नारायण मिश्र कहते हैं, "दो सीट जनजातियों के लिए आरक्षित होने से सामाजिक चेतना और विस्तार की एक नई उम्मीद इस इलाके में पैदा हुई है. लंबे समय से अपने संवैधानिक अधिकारों से वंचित रहे आदिवासी समुदाय के साथ शासन का व्यवहार सौतेला ही रहा है. इसका उदाहरण यह है कि जिले का शायद ही कोई ऐसा जनजातिय परिवार होगा जिस पर वन संपदा को नुकसान पहुंचाने का मामला दर्ज नहीं होगा."
सोनभद्र जिले की दोनों विधानसभा सीटों पर सभी राजनीतिक दलों ने आदिवासी समुदाय के लोगों को उम्मीदवार बनाया है. दुद्घी विधानसभा सीट से कांग्रेस-एसपी गठबंधन के प्रत्याशी के तौर पर अनिल कुमार मैदान में हैं तो बीएसपी ने विजय गोंड को यहां से टिकट दिया है. बीजेपी और अपना दल के गठबंधन के प्रत्याशी के तौर पर सोनेलाल अपनी किस्मत आजमा रहे हैं.
वैसे तो इस विधानसभा सीट पर कुल आठ प्रत्याशी मैदान में हैं. इस सीट पर मतदाताओं की कुल संख्या 3,07,691 है. इन मतदाताओं में 31 प्रतिशत ओबीसी, लगभग 50 फीसदी अनुसूचित जाति एवं जनजाति तथा 5.12 फीसदी मुस्लिम हैं.
इस सीट पर कुल 3,07,704 मतदाता
दुद्धी विधानसभा के अलावा ओबरा सीट से एसपी-कांग्रेस गठबंधन से रवि गोंड मैदान में हैं. बीएसपी ने वीरेंद्र गोंड और बीजेपी ने यहां से संजय गोंड को अपना उम्मीदवार बनाया है. इस सीट पर कुल 3,07,704 मतदाता हैं. इस सीट पर ओबीसी मतदाताओं की संख्या 35 फीसदी है. इसके बाद अनुसूचित जाति एवं जनजाति के 34.72 फीसदी मतदाता हैं. समान्य वर्ग के भी लगभग 25 फीसदी मतदाता हैं.
अवधेश मिश्र कहते हैं, "सोनभद्र में कई ऐसे गांव हैं जिनमें जनजातियों की संख्या 99 फीसदी तक है. वर्ष 2001 की जनगणना के आधार पर अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्ग के लिये आरक्षित ग्राम प्रधान और ग्राम पंचायत सदस्य के पदों पर योग्य उम्मीदवारों की दावेदारी नहीं हो पाती थी. इससे ग्राम पंचायत सदस्यों की दो तिहाई सीटें खाली रह जाती थीं. लेकिन अब इस इलाके में बदलाव आना तय माना जा रहा है."