लखनऊ: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2017 का शंखनाद हो चुका है. इस बार भी राज्य में चुनाव की शुरुआत पश्चिमी यूपी से होने जा रही है. सियासी फसल के लिए 'खाद-पानी' देने वाला यह क्षेत्र राजनीति का नया मक्का बन चुका है.


वोटों के ध्रुवीकरण की प्रयोगशाला तैयार


साल 2014 में इसी जमीन पर वोटों के ध्रुवीकरण की प्रयोगशाला तैयार हुई थी और यहीं से जीत की राह निकली थी. मुमकिन है कि इस बार विधानसभा चुनाव में भी जीत का पहला द्वार यहीं से खुलेगा.


यूपी विधानसभा चुनाव के लिए 17 जनवरी को 15 जिलों की 73 सीटों के लिए नामांकन शुरू होने के साथ ही पूरे प्रदेश में चुनावी संग्राम शुरू हो गया है. ऐसा देखा गया है कि पहले चरण में पड़ने वाले वोटों से ही काफी कुछ तय हो जाता है. सीटों के लिहाज से भी सबसे ज्यादा 73 सीटें पहले चरण में ही हैं और यही वजह है कि पश्चिमी यूपी सभी के लिए अहम बन गया है.


पश्चिमी यूपी ने ही सबसे ज्यादा झेला है सांप्रदायिक दंगों का दंश


पश्चिमी उत्तर प्रदेश में यूं तो कई मुद्दे हैं. मसलन महिलाओं के प्रति अपराधों का आंकड़ा यहां पूरे प्रदेश में सबसे ज्यादा है, तो सांप्रदायिक दंगों का दंश भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश ने ही सबसे ज्यादा झेला है.


मुजफ्फरनगर दंगे ने यूपी की सियासत का रुख पलट दिया था और 2014 में इसी लहर के बूते केंद्र में बीजेपी की सरकार बनी थी. दंगों को लेकर हुई सियासत को आज भी यहां ताजा रखने की कवायद चल रही है.


2007 में केवल पांच सीटों पर ही सिमट गई थी समाजवादी पार्टी


पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बीएसपी की सियासी जमीन खासा मजबूत रही है, लेकिन 2012 के चुनाव में यहां समाजवादी पार्टी ने भी अपने पंख फैलाए हैं. 2012 में दोनों ही पार्टियों को इन 73 सीटों में से 24-24 सीटें हासिल हुईं थीं, जबकि एसपी 2007 में केवल पांच सीटों पर ही सिमट गई थी.


इससे पूर्व 2007 में यहां बीएसपी ने ढाई दर्जन से भी ज्यादा सीटें हासिल की थीं और यूपी में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी. इस बार भी बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने यूपी में ज्यादातर सीटें मुस्लिम समुदाय को दी हैं. मायावती ने हमेशा यह बात दोहराई है कि मुसलमानों के लिए सबसे भरोसेमंद पार्टी बीएसपी ही है. आरएलडी के लिए भी यह चरण अहम है, क्योंकि उसने कांग्रेस के गठबंधन के बाद 2012 के चुनाव में जो कुल नौ सीटें जीती हैं, वे इसी क्षेत्र में हैं.


चुनाव में कैराना पलायन, लव जेहाद, गोवध और मुजफ्फरनगर दंगे का असर


बीबीसी के पूर्व पत्रकार और वर्तमान में एनबीएसबी (नार्थ ब्लॉक-साउथ ब्लॉक वेबसाइट) के संपादक दुर्गेश उपाध्याय ने कहा कि बहुत मुमकिन है कि इस बार विधानसभा चुनाव में कैराना पलायन, लव जेहाद, गोवध और मुजफ्फरनगर दंगे का असर दिखाई दे. इन मुद्दों को लेकर ही पश्चिमी यूपी की सियासत हमेशा घूमती रही है. इन मुद्दों को एक बार फिर से हवा देने की कोशिश की जा सकती है.


उन्होंने कहा, "पश्चिमी यूपी में गन्ना किसानों के बकाए का मुद्दा भी अहम साबित होगा. किसानों के मन में नोटबंदी को लेकर भी काफी भ्रम की स्थिति है. नोटबंदी से समाज के हर तबके को परेशानी हुई है, लिहाजा मतदान के दौरान इसका असर भी दिख सकता है."