प्रयागराज: धार्मिक और सियासी तौर पर देश भर में अपनी अलग व ख़ास पहचान रखने वाले इलाहाबाद शहर का नाम बदलकर प्रयागराज किये जाने के योगी सरकार के फैसले को आज एक साल पूरा हो गया है. एक साल के प्रयागराज की आज पहली सालगिरह है. हालांकि इस नये नाम ने साल भर के छोटे से सफर में ही अपने खाते में न सिर्फ तमाम उपलब्धियां बटोर ली हैं, बल्कि इस तारीखी शहर को नई पहचान भी मुहैया कराई है.


कुंभ के वैभव से लेकर स्मार्ट सिटी तक का सफर प्रयागराज को साल भर में ही इतराने का मौका देने के लिए काफी है. हालांकि नाम बदले जाने पर पिछले साल शुरू हुई सियासत पहली सालगिरह पर भी जारी है. यूपी सरकार जहां अपने फैसले को ऐतिहासिक बताते हुए साल भर में विकास की गंगा के सहारे इस शहर को बहुत कुछ मिलने के दावे कर रही है, वहीं विपक्षी पार्टियां फिर से यह राग अलाप रही हैं कि नाम बदलने का सियासी फायदा लेने के सिवाय हकीकत में कुछ भी नहीं हुआ है. सियासी दावों से अलग प्रयागराज की जनता तो मान रही है कि साल भर में काफी कुछ मिला, हालांकि लोग अभी बहुत कुछ और पाने की आस लगाए बैठे हैं.


 कुंभ मेले के दौरान दुनिया ने देखा प्रयागराज का वैभव


पहले ही साल प्रयागराज में हुए कुंभ मेले के दौरान देश ही नहीं बल्कि समूची दुनिया ने इस शहर के वैभव को देखा तो साथ ही यहां की संस्कृति व संदेश से भी रूबरू हुए. इक्यावन दिन के कुंभ के आयोजन में दुनिया भर के तकरीबन पौने दो सौ देशों के बाइस करोड़ से ज़्यादा श्रद्धालुओं ने संगम की रेती पर आस्था की डुबकी लगाई. कुंभ के लिए प्रयागराज शहर ही नहीं बल्कि पूरे जिले को दुल्हन की तरह ख़ूबसूरती से सजाया गया. यहां पुलों का जाल बिछाया गया. सड़कें चौड़ी की गईं. खूबसूरत चौराहे बनाए गए. पूरे शहर में पेंटिंग की गई तो साथ ही बिजली की आकर्षक रोशनी में शहर जगमगा उठा. राष्ट्रपति से लेकर प्रधानमंत्री तक ने भी कुंभ के वैभव को देखा. यह शहर इस तरह चमका और विकसित हुआ, जिसे देखकर लोग दांतों तले उंगलियां दबाने पर मजबूर होते हैं. कुंभ ख़त्म होते ही प्रयागराज को स्मार्ट सिटी के तौर पर विकसित करने का काम भी शुरू हो गया है.


इन सबसे अलग हटकर यहां के ज़्यादातर लोग प्रयागराज नाम सुनकर गौरवान्वित व आनंदित भी हो रहे हैं. लोगों का मानना है कि नाम बदलना मुग़ल बादशाह अकबर द्वारा 445 साल पहले की गई भूल को सुधार करने का बड़ा मौका था. जानकारों के मुताबिक़ इलाहाबाद का पुराना नाम प्रयाग ही रहा है. पुराणों से लेकर तमाम धार्मिक ग्रंथों व इतिहास के पन्नों में भी इस शहर का नाम प्रयाग के तौर पर ही है. ऐसे में यूपी सरकार के कैबिनेट मंत्री व प्रवक्ता सिद्धार्थनाथ सिंह का कहना है कि इलाहाबाद का नाम बदला नहीं गया, बल्कि उसका पुराना नाम उसे वापस किया गया है. वह साल भर के सफर में कुंभ और विकास के साथ ही तमाम उपलब्धियों को दावे के साथ गिनाते हैं.


विपक्ष लगा रहा है सवालिया निशान 


दूसरी तरफ विपक्ष का कहना है कि नाम बदलने के बावजूद इस शहर को कुछ भी हासिल नहीं हुआ. विकास के कामों पर भी वह सवालिया निशान खड़े कर रहा है तो साथ ही सत्ता पक्ष पर इस मसले पर सियासत करने का गंभीर आरोप भी लगाया जा रहा है. वहीं इन सबसे अलग हटकर आम नागरिक तो यह मान रहे हैं प्रयागराज नामकरण के बाद इस शहर को सांस्कृतिक पहचान तो मिली ही है,साथ ही विकास के मायने में भी इसका कायाकल्प हुआ है। लोगों को उम्मीद है कि आने वाले दिनों में प्रयागराज और यहां के लोगों को काफी कुछ और भी मिल सकता है.


1574 में तब बदल गई थी प्रयागराज की पहचान


धर्म और अध्यात्म के नगर प्रयागराज की पहचान 1574 में तब बदल गई थी, जब मुगल बादशाह अकबर ने यमुना के तट पर एक शानदार किले का निर्माण कराया और प्रयाग का नाम बदलकर अल्लाहाबाद कर दिया. गुलामी के इस नाम के साथ प्रयाग का वास्ता 444 सालों तक बना रहा. अंग्रेजी राज के दौरान यह शहर कई सालों तक संयुक्त प्रान्त की राजधानी के तौर पर भी जाना जाता रहा. 1857 की पहली आजादी की क्रान्ति में यह चौदह दिनों तक अंग्रेजों की गुलामी से आजाद रहा और इस दौरान इसकी छाती पर आजादी का झंडा लहराता रहा. देश की आज़ादी के बाद यह शहर सियासत के फलक पर खूब चमका और इसने देश को कई प्रधानमंत्री व दूसरे बड़े नेता दिए.


लोगों में अभी बाकी है ये टीस


444 साल की गुलामी को तोड़कर 18 अक्टूबर 2018 को प्रयाग का पुनर्जन्म हुआ. बीते एक साल में इस शहर ने कई उतार-चढ़ाव देखें. इलाहाबाद रहते हुए इसे जो पहचान मिली थी, उससे कहीं ज़्यादा शोहरत पुराना नाम वापस लौटने पर मिल रही है. प्रयागराज की नयी पहचान अब लोगों को उनके धर्म, संस्कृति और परम्पराओं का बोध करा रही है. हांलाकि यहां के नागरिकों के मन में थोड़ी टीस अभी बची हुई है.यह टीस इस बात की है कि यूपी सरकार ने प्रयाग को उसका पुराना गौरव तो वापस दिला दिया है, लेकिन केंद्र सरकार के रिकार्ड में प्रयाग आज भी इलाहाबाद ही है. इसके चलते हाईकोर्ट-युनिवर्सिटी और जंक्शन के साथ अब भी इलाहाबाद ही जुड़ा हुआ है. लोगों को इसका मलाल तो है, लेकिन यह उम्मीद बरकरार है कि प्रयाग जल्द ही पूरी तरह प्रयागराज हो जाएगा.


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