लखनऊ/संभल: कहते हैं अगर इंसान कुछ करने की ठान ले तो क्या नहीं कर सकता. उत्तर प्रदेश में सूखाग्रस्त एक जिला संभल भी है, जहां प्रदेश सरकार ने किसानों को मुआवजा भी दिया था. इस स्थिति में यहां पर कोई स्ट्रॉबेरी की फसल उगाने के बारे में सोचेगा भी नहीं. लेकिन मौसम के बिल्कुल विपरीत जाकर ऐसा किया है यहां के एक किसान तंजीम ने. तंजीम ने पहले मध्य प्रदेश से स्ट्रॉबेरी के पौधे लाकर डेढ़ एकड़ कृषि भूमि में फसल लगाई. इसमें पहली बार में ही उन्हें अच्छा फायदा हुआ. इससे वह फसल की बुआई के रकबे को बढ़ाते चले गए और इस बार आठ एकड़ से ज्यादा जमीन में स्ट्राबेरी की फसल है.


उन्होंने बताया कि स्ट्राबेरी की फसल लगाई है, जिसकी आपूर्ति लखनऊ, दिल्ली के साथ पहाड़ी क्षेत्र नैनीताल, शिमला व मसूरी में भी की जाती है. इसके साथ ही पड़ोसी देश नेपाल में भी स्ट्रॉबेरी की आपूर्ति की जाती है. फसल के लिए उपयोगी तापमान लाने के लिए काली पन्नी (पॉलीथिन) लगाई जाती है. उन्होंने बताया कि स्ट्रॉबेरी के खेत में फल की तुड़वाई, ढुलवाई, पैकिंग भी की जाती है.


तंजीम के मुताबिक, वह स्ट्राबेरी का पौधा पूना और हिमाचल प्रदेश से लाते हैं, जिसे 25 सितंबर से अक्टूबर तक के बीच लगाया जाता है. पौधा लगाने के लगभग 60 दिनों बाद फल आ जाता है, जो लगभग 40 दिन में पक जाता है. ठंड के मौसम में फल पकने में ज्यादा समय लगता है. यह बहुत नाजुक फल होता है, इसलिए फल को मिट्टी में गिरने से बचाने के लिए पौधे की जड़ में पॉलीथीन बिछाई जाती है। इसकी खेती को एक बच्चे की तरह पालना पड़ता है.


उन्होंने बताया, "यहां पर पैदा होने वाली स्ट्राबेरी को सबसे ज्यादा नैनीताल भेजा जा रहा है. सिंघाड़े के आकार वाले इस फल की मांग पहाड़ों पर बढ़ रही है, जो क्षेत्र के लोगों के लिए रोजगार का साधन बन गया है. ऐसे में यह गरीबी उन्मूलन के क्षेत्र में काफी कारगर सिद्ध हो रही है. लेकिन इस मंहगाई में फसल की लागत ज्यादा है."


मुरादाबाद जोन के आयुक्त यशवंत राय संभल स्ट्राबेरी की खेती देखने पहुंचे. खेती देख कर उन्होंने कहा कि पहाड़ की खेती मैदानी इलाकों में देख कर अच्छा लगा और इसके लिए सरकार से सहयोग दिलाएंगे और किसानों को इस खेती के लिए उत्साहित करेंगे.