यूपी: इलाहाबाद विश्वविद्यालय में नए शैक्षणिक सत्र से लागू होगा छात्र परिषद मॉडल
बता दें कि नई व्यवस्था में अब छात्र सीधे पदाधिकारी नहीं चुन सकेंगे, बल्कि छात्र कक्षा प्रतिनिधि का चुनाव करेंगे और कक्षा प्रतिनिधि छात्र परिषद के पदाधिकारियों को चुनेंगे.
प्रयागराज: पूर्वाचल का ऑक्सफोर्ड कहे जाने वाले इलाहाबाद विश्वविद्यालय में छात्रसंघ की जगह छात्र परिषद लागू कर दिया गया. कार्य परिषद ने इस मामले पर विस्तृत चर्चा के बाद सर्वसम्मति से अंतिम स्वीकृति दी. कार्य परिषद के निर्णय के बाद इलाहाबाद विश्वविद्यालय में नए शैक्षणिक सत्र 2019-20 से छात्र परिषद चुनाव का मॉडल लागू हो जाएगा. विवि के रजिस्ट्रार प्रो़ एनके शुक्ला ने इस संबंध में निर्देश जारी कर दिया है. नई व्यवस्था में अब छात्र सीधे पदाधिकारी नहीं चुन सकेंगे, बल्कि छात्र कक्षा प्रतिनिधि का चुनाव करेंगे और कक्षा प्रतिनिधि छात्र परिषद के पदाधिकारियों को चुनेंगे.
विवि के जनसंपर्क अधिकारी चित्तरंजन कुमार सिंह ने कहा कि विवि में छात्र परिषद के गठन का निर्णय लेकर लिंगदोह कमेटी के निर्देशों का अनुपालन किया गया है. लिंगदोह समिति की सिफारिशों के अनुसार सिर्फ जेएनयू और हैदराबाद जैसे छोटे कैंपस और कम छात्र संख्या वाले परिसर में ही प्रत्यक्ष मतदान द्वारा छात्रसंघ का गठन होगा, जबकि अधिक छात्रसंख्या और कई परिसर वाले विश्वविद्यालय में अनिवार्य रूप से छात्र परिषद का गठन होगा.
अधिक छात्र संख्या वाले इलाहाबाद विवि में एक से अधिक परिसर हैं और यहां अशांति का माहौल लगातार बना हुआ है. छात्र परिषद चुनाव का मॉडल ज्यादा व्यापक और पारदर्शी है. इसमें हर संकाय से स्नातक, परास्नातक और पीएचडी के छात्र चुन कर आएंगे. ये पदाधिकारियों का चुनाव करेंगे. इस पूरी प्रक्रिया में आम छात्र ही मतदान करेंगे. इसमें हर स्तर पर अधिकतम छात्रों की भागीदारी होगी.
छात्रसंघ प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली होती है. इसमें छात्र अपने मताधिकार का प्रयोग करते हैं. वह सीधे तौर पर अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, महामंत्री, संयुक्त सचिव, सांस्कृतिक सचिव और संकाय प्रतिनिधियों का चुनाव करते हैं. छात्र परिषद अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली है. इसमें पहले कक्षावार प्रतिनिधि चुने जाएंगे. इसके बाद चुने गए कक्षा प्रतिनिधि पदाधिकारियों का चयन करेंगे.
हालांकि छात्र नेताओं का कहना है कि यह विवि प्रशासन की मनमानी है. छात्रसंघ की पूर्व अध्यक्ष ऋचा सिंह का कहना है कि लिंगदोह कमेटी के आधार पर विवि कब से चल रहा है. यह सरासर विवि की आवाज दबाने का काम हो रहा है. इस विवि ने तमाम ऐसे नेताओं को जन्म दिया है, जिनकी अंतर्राष्ट्रीय ख्याति रही है.
छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष रामाधीन सिंह ने कहा कि देश भर में छात्र संघ राजनीतिक दलों की साजिश का शिकार हो गए. उसका उदाहरण यहां भी देखने को मिल रहा है. छात्रों की अवाज दबाने का यह प्रयास ठीक नहीं है.
पूर्व अध्यक्ष श्याम पांडे ने बताया कि पूर्व पदाधिकारियों की बैठक तय की जा रही है, अगर विवि प्रशासन बात नहीं सुनता है तो राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से मिलने का समय लिया जाएगा. छात्र संघ चुनाव पर रोक नही लगनी चाहिए. परिसर को संभालने और चलाने के कई और तरीके हो सकते हैं. विवि प्रशासन को इस पर विचार करना चहिए. यहां आंदोलन का बड़ा इतिहास रहा है, आंदोलन के बल पर तमाम बड़ी जीत मिली है.
इलाहाबाद विश्वविद्यालय में छात्र संघ की स्थापना 1921 में हुई. विवि के पहले अध्यक्ष 1923 में शिव गोपाल तिवारी निर्वाचित हुए. आजाद भारत की बात करें तो पहले अध्यक्ष नारायण दत्त तिवारी चुने गए थे.
बोस, नेहरू, लोहिया और बाजपेयी का नाता-
देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू भले ही विश्वविद्यालय के छात्र नहीं रहे लेकिन उनको छात्र संघ ने मानद सदस्य सम्मान दिया था. नेताजी सुभाष चंद्र बोस छात्रसंघ भवन से मानद सदस्य रहे. आगे चल कर डा. राम मनोहर लोहिया और अटल विहारी बाजपेयी को भी छात्र संघ का मानद सदस्य सम्मान दिया गया. पूर्व राष्ट्रपति शंकरदयाल शर्मा, पूर्व उपराष्ट्रपति गोपाल स्वरूप पाठक, राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन, मदन मोहन मालवीय, उप्र के पूर्व मुख्यमंत्री पंडित गोविंद वल्लभ पंत, हेमवती नंदन बहुगुणा यहां छात्र रहे. पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह, पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर, नारायण दत्त तिवारी, गुलजारी लाल नंदा, पूर्व राज्यपाल डा. राजेन्द्र कुमारी बाजपेयी, मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह, बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री सत्येन्द्र नारायण सिन्हा छात्र संघ के पदाधिकारी रहे.
इलाहाबाद विवि छात्र संघ का गौरवशाली इतिहास रहा है, ब्रिटिश काल में पहला बड़ा छात्र आंदोलन इलाहाबाद में हुआ जो आईसीएस की तैयारी करने वाले छात्रों के लिए हुआ था. पहले आईसीएस की परीक्षा देने के लिए लोगों को लंदन जाना होता था जिससे बहुत से लोग वंचित रह जाते थे. यह आंदोलन यहां से देश भर में गया जिसके कुछ समय बाद एशिया का पहला छात्रसंघ गठित हुआ.