लखनऊ: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के उत्तर प्रदेश अध्यक्ष डॉ महेंद्रनाथ पांडेय अब केंद्र सरकार में शामिल हैं. उनकी जगह पार्टी में नए अध्यक्ष को लेकर चर्चाएं शुरू हो गई हैं. एक व्यक्ति, एक पद के सिद्धांत के चलते पांडेय ज्यादा दिन तक अध्यक्ष पद पर नहीं रहेंगे. नए अध्यक्ष को खोजने के लिए बीजेपी को सारे आंकड़ों में फिट बैठने वाला व्यक्ति ही चाहिए.


माना जाता है कि उप्र की बड़ी जीत में महेंद्रनाथ पांडेय का विशेष योगदान रहा है. वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी ने केशव प्रसाद मौर्य को प्रदेश अध्यक्ष बनाया था और भाजपा का यह प्रयोग बहुत सफल हुआ था. पर, केशव प्रसाद के उपमुख्यमंत्री बनते ही मोदी सरकार में राज्यमंत्री रहे डॉ़ पांडेय को भाजपा की कमान सौंपी गई थी. 31 अगस्त, 2017 को अध्यक्ष पद पर आसीन हुए डॉ़ पांडेय को ब्राह्मण समीकरण को मजबूत करने का अवसर दिया गया था.


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी से सटे चंदौली क्षेत्र का सांसद होने का लाभ भी डॉ़ पांडेय को मिला. उन्होंने उत्तर प्रदेश की चंदौली संसदीय सीट पर लगातार दूसरी बार जीत दर्ज 21 साल का रिकार्ड तोड़ा है. उन्होंने गठबंधन से सपा प्रत्याशी संजय चौहान को 13959 मतों से हराया है. वर्ष 2014 में बीजेपी के टिकट पर चंदौली से चुनाव लड़ा और मोदी लहर में लोकसभा पहुंच गए. इस बार दोबारा चुने गए और कैबिनेट मंत्री का पद मिला. इसी के बाद से उनके उत्तराधिकारी की तलाश जारी है.


एक वरिष्ठ बीजेपी नेता ने नाम जाहिर न करने की शर्त पर बताया कि भारतीय जनता पार्टी को ऐसा नेता अध्यक्ष बनाने की फिराक में है जो सवर्ण और पिछड़ा के साथ दलित वोट बैंक को सहेजकर रखे, लेकिन ज्यादातर चांस सवर्ण नेता के ही बन रहे हैं. उन्होंने बताया कि गौतमबुद्धनगर के सांसद डॉ महेश शर्मा का नाम भी इस समय चर्चा में है. उनके पास सरकार का पांच साल का अनुभव है. वह संगठन के भी व्यक्ति माने जाते हैं.


इसी तरह उपमुख्यमंत्री डॉ दिनेश शर्मा को भी संगठन में लाकर एक प्रयोग किया जा सकता है. महामंत्री विजय बहादुर पाठक भी अध्यक्ष पद के लिए संगठन की दृष्टि से उपयुक्त माने जा रहे हैं. इसी प्रकार अगर बीजेपी पिछड़े चेहरों में दांव लगाने की सोचेगी तो सबसे पहला नाम स्वतंत्र देव सिंह का है. वह योगी सरकार में परिवहन मंत्री और मध्यप्रदेश के प्रभारी भी हैं.


चुनाव के समय भाजपा उनसे रैली और संगठन के कार्यकर्ताओं की भीड़ एकत्रित करने कार्य लेती रही है. इसके बाद अभी आगरा से सांसद एस.पी. सिंह बघेल, मंत्री दारा सिंह चौहान का नाम भी चर्चा में है. इसी प्रकार बीजेपी अगर दलित समुदाय से बनाने की सोचेगी तो प्रधानमंत्री मोदी के संसदीय क्षेत्र के एमएलसी लक्ष्मण आचार्य, प्रो़ रामशंकर कठेरिया, विद्यासागर सोनकर जैसे नाम भी चर्चा में हैं.


उत्तर प्रदेश में विधानसभा का चुनाव करीब तीन साल बाद है. लेकिन तैनाती चुनावी पृष्ठभूमि के आधार पर ही होनी तय मानी जा रही है. कुछ जानकार बताते हैं कि बीजेपी अगले विधानसभा चुनाव की तैयारी में अभी से जुट जाना चाहती है. पार्टी की मंशा यह भी है कि वह प्रदेश में गठबंधन के तिलिस्म को भी जड़ से उखाड़ फेंके. ऐसे में वह दलितों के साथ-साथ पिछड़ों को भी पूरी तरह से अपने पाले में करने के लिए जोर लगाएगी.


इस बार अध्यक्ष वर्ष 2022 में होने वाले अगले विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखकर ही बनाया जाएगा. ऐसे में यह जिम्मेदारी ऐसे किसी व्यक्ति को दी जा सकती है, जिसके नाम पर किसी प्रकार का विवाद नहीं हो और ना ही पार्टी में किसी प्रकार की गुटबंदी की शुरुआत हो.


प्रदेश प्रवक्ता हरिश्चंद्र श्रीवास्तव ने बताया, "बीजेपी अध्यक्ष तय करना केंद्रीय नेतृत्व का विषय है, जिसे नेतृत्व उपयुक्त समझेगा उसे जिम्मेदारी मिलेगी. पार्टी में बहुत सारे लोग हैं, जिनमें क्षमता और योग्यता दोनों है. उन्हीं में कोई ऐसा चेहरा बीजेपी की कमान संभलेगा.


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