अयोध्या: उत्तर प्रदेश सरकार ने अयोध्या में अस्थायी राम मंदिर के पुजारी और कर्मचारियों के भत्ते को बढ़ाने का फैसला किया है. अयोध्या के मंडलायुक्त मनोज मिश्रा ने अस्थायी मंदिर के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास को भत्तों में वृद्धि का आश्वासन दिया है. आचार्य सत्येंद्र दास हाल ही में भत्ते में अपर्याप्त वार्षिक वृद्धि पर नाराजगी व्यक्त करने के लिए मिश्रा से मिले थे.


एक अंग्रेजी वेबसाइट के अनुसार रामलला को मिलने वाला भत्ता 26200 से बढ़ाकर 30000 रुपए कर दिया गया है. यानि अब रामलला के भोग, कपड़े आदि के लिए रोज 1000 रुपए मिलेंगे.  मंदिर के मुख्य पुजारी सत्येंद्र दास को अब 13,000 रुपए हर महीने दिए जाएंगे. उपायुक्त मनोज मिश्रा के अनुसार दूसरे पुजारियों के वेतन में भी 500 रुपए की बढ़ोत्तरी की गई है. इन पुजारियों का वेतन 7500 से लेकर 10,000 के बीच है.


कमिश्नर, जो कि विवादित स्थल के रिसीवर (अधिकृत व्यक्ति) भी हैं, ने कहा कि 'प्रसाद' के लिए वार्षिक भत्ता, जो रोजाना मंदिर में पूजा अर्चना के बाद चढ़ाया जाता है, उपयुक्त रूप से बढ़ा दिया जाएगा. प्रधान पुजारी ने कहा कि आयुक्त ने इस मुद्दे पर गौर करने और भत्ता बढ़ाने का आश्वासन दिया है.

इससे पहले, उन्होंने नौ सदस्यीय कर्मचारियों के लिए वार्षिक भत्ते में अपर्याप्त बढ़ोतरी पर नाखुशी जताई थी. प्रधान पुजारी के भत्ते में 1,000 रुपये प्रति माह की बढ़ोतरी की गई थी, जबकि स्टाफ के शेष आठ सदस्यों को 500 रुपये प्रति माह की बढ़ोतरी मिली.


'भोग' (प्रसाद) के भत्ते में 800 रुपये प्रति माह की वृद्धि की गई है. उन्होंने कहा, "यह अपर्याप्त है और हमने अपने भत्ते में पर्याप्त वृद्धि की मांग की है."


बता दें कि अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई के सातवें दिन रामलला के वकील ने नक्शों, तस्वीरों और पुरातात्विक सबूतों के जरिए साबित करने की कोशिश की कि विवादित स्थान पर आज से 2 हज़ार साल पहले भी भव्य राम मंदिर था. मंदिर के ढांचे के ऊपर ही विवादित इमारत को बनाया गया. प्राचीन मंदिर के खंभों और दूसरी सामग्री का इस्तेमाल भी उसके निर्माण में किया गया. उन्होंने कहा इस तरह की इमारत शरीयत के हिसाब से मस्जिद नहीं हो सकती.


सुनवाई की शुरुआत में रामलला के वकील सी एस वैद्यनाथन ने 1950 में फैजाबाद के कोर्ट कमिश्नर की तरफ से तैयार नक्शे से की. इसमें साफ दिखाया गया था कि विवादित ढांचे के दायरे में हिंदू पूरे विधि विधान से पूजा कर रहे थे. इसके बाद उन्होंने 1990 में ली गई विवादित ढांचे की तस्वीरों को कोर्ट में रखा. उन्होंने दिखाया ढांचा जिन खंभों पर बना था; उनमें तांडव मुद्रा में शिव, हनुमान और कमल के अलावा शेरों के बीच बैठे गरुड़ की आकृति बनी थी. वैद्यनाथन ने कहा, "यह आकृतियां इस्लामिक नहीं हैं. इनकी मौजूदगी वाली इमारत को मस्जिद नहीं कहा जा सकता."