बिहार: 'सियासी खीर' के लिए उपेन्द्र कुशवाहा नहीं लेंगे यदुवंशियों का दूध, कहा- एनडीए को मजबूत करेंगे
केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा ने शनिवार को पटना में एक कार्यक्रम में महागठबंधन में शामिल होने के संकेत दे दिए. उन्होंने कहा था कि यदुवंशियों (यादवों) का दूध और कुशवंशियों (कुशवाहा समाज जिससे उपेंद्र कुशवाहा आते हैं) का चावल मिल जाए तो खीर बढ़िया होगी. और इस स्वादिष्ट व्यंजन को बनने से कोई रोक नहीं सकता
नई दिल्ली/पटना: 2019 के आम चुनाव से पहले बिहार में सियासी खीर बनाने की जुगत में भटक रहे आरएलएसपी नेता उपेंद्र कुशवाहा ने दूध की तलाश शुरू कर दी है. चावल रखने वाले कुशवाहा नेता दूध के लिए कभी यदुवंशियों को डोरे डालते हैं तो कभी मौजूदा साथी से चीनी की उम्मीद लगा बैठते हैं, लेकिन असमंजस की स्थिति ऐसी है कि दिन बदले के साथ ही बयान भी बदल जाता है.
यदुवंशियों के दूध से खीर बनाने के अपने बयान से पलटते हुए उपेंद्र कुशवाहा ने सोमवार को कहा, “ना आरजेडी से दूध ना बीजेपी से चीनी मांगा है. हमने अपनी पार्टी के लिए सभी समाज से समर्थन मांगा है. आरएलएसपी मज़बूत होगी तो एनडीए मज़बूत होगा और एनडीए मज़बूत होगा तो देश मज़बूत होगा और नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री होंगे.”
आपको बता दें कि केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा ने शनिवार को पटना में एक कार्यक्रम में महागठबंधन में शामिल होने के संकेत दे दिए. उन्होंने कहा था कि यदुवंशियों (यादवों) का दूध और कुशवंशियों (कुशवाहा समाज जिससे उपेंद्र कुशवाहा आते हैं) का चावल मिल जाए तो खीर बढ़िया होगी. और इस स्वादिष्ट व्यंजन को बनने से कोई रोक नहीं सकता है.
खास बात ये है कि उपेंद्र कुशवाहा के इस बयान को बिहार के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने हाथों हाथ लिया और ये कहने में देर नहीं लगाई कि खीर एक अच्छा व्यंजन है. हालांकि, सोमवार होते-होते उपेंद्र कुशवाहा अपने बयान से पलट गए. तेजस्वी का बयान अपनी जगह पर कायम है और ऐसे में भविष्य में कभी भी सियासी खीर बन जाए तो अचरज नहीं होगा.
दिक्कत कहां है? दरअसल, ये सारी बातें इसलिए उठ रही हैं क्योंकि जेडीयू के एनडीए में शामिल होने के बाद 2019 चुनावों के लिए बीजेपी, आरएलएसपी और एलजेपी (रामविलास पासवान की पार्टी) के बीच सीटों के बंटवारे को लेकर सहमति नहीं बन पा रही है और इसी के चलते गाहे-बगाहे उपेंद्र कुशवाहा महागठबंधन में जाने के संकेत देते रहते हैं.
बिहार में जाति की राजनीति सिर चढ़कर बोलती है, लेकिन पेंच ये है कि उपेंद्र कुशवाहा और सूबे के सीएम नीतीश कुमार समान जाति से आते हैं. उपेंद्र कुशवाहा, कुशवाहा हैं तो नीतीश कुमार कुर्मी हैं. ऐसे में नीतीश के साथ उपेंद्र कुशवाहा के लिए राजनीति चमकाने का मौका नहीं है.
सीट का पेंच क्या है? बिहार में लोकसभा की 40 सीटें हैं. इस वक्त एनडीए के पास 33 सीटें (22 बीजेपी, 6 एलजेपी, 3 आरएलएसपी, 2 जेडीयू) हैं. अब झगड़ा सीटों के बंटवारे को लेकर है. कुशवाहा को लगता है कि एनडीए में नीतीश की मौजूदगी में उनका कद बौना हो जाएगा, इसलिए वो पहले ही से बैटिंग कर रहे हैं और कभी उस डाल तो कभी उस डाल इसलिए जा रहे हैं ताकि किसी भी स्थिति में सूबे की राजनीति में अपना वजन कम नहीं हो पाए.