देश के चीनी के कटोरे के नाम से मशहूर पश्चिमी उत्तर प्रदेश का यह समूचा इलाका चुनाव प्रचार के इस मौसम में पोस्टरों, झंडों, रैलियों से पटा पड़ा है. लेकिन इस चुनाव ने कई किसानों के घाव हरे कर दिए हैं.
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ऐसा लग रहा है कि पार्टियों द्वारा किये गये वादों के पूरा नहीं होने के कारण इलाके में नोटा (इनमें से कोई नहीं) विकल्प के उपयोग के स्वर अधिक उठ रहे हैं क्योंकि यहां के किसानों का कहना है कि वे वादों से तंग आ चुके हैं और उन्हें नहीं पता कि किस पर भरोसा किया जाये.
कैराना में करीब 30 साल से गन्ने की खेती कर रहे निराश किसान ओम सिंह कहते हैं, ‘‘हमलोग नोटा का चयन करेंगे.’’ उनका कहना है कि वह अपने परिवार का भरण-पोषण तक नहीं कर पा रहे हैं.
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हर किसान को कम से कम डेढ़ लाख रुपया बकाया राशि का भुगतान होना शेष है.
कैराना, बागपत और मुजफ्फरनगर में कुल 11 चीनी मिलें हैं और ट्रकों में लदे ये गन्ने इन मिलों में जाने का इंतजार कर रहे हैं.
उपज तौले जाने के इंतजार में बागपत की रामला चीनी मिल के आगे बैठे 55 वर्षीय सत्यवीर ने कहा ‘‘पांच दशक से मेरा परिवार गन्ना उगा रहा है. हमारी आजीविका इसी से चलती है. लेकिन राजनीतिक दलों के झूठे वादों से हम तंग आ गए हैं.’’
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उन्होंने कहा कि मिल प्रबंधक हमें कहते हैं कि सरकार से उनका पैसा मिलते ही हमें बकाया मिल जाएगा. ‘‘लेकिन कब...?’’
सत्यवीर को दो लाख रूपये से अधिक की बकाया राशि मिलनी है.