नई दिल्ली/लखनऊ:  यूपी में योगी आदित्यनाथ एक ऐसी सरकार चला रहे हैं जिसे उन्हें बिना भेदभाव, बिना धर्म औऱ चेहरा देखकर चलाना है. ये वादा पीएम मोदी ने चुनाव में किया था. वादा इसलिए किया था क्योंकि अखिलेश भेदभाव की सरकार चला रहे थे. बिजली देने में हिंदू-मुस्लिम चरित्र देख रहे थे.


चुनाव के बाद एबीपी न्यूज ने बहराइच के कुछ ऐसे गांवों की पड़ताल की जहां आजादी के बाद आज तक कभी बिजली तो नहीं ही पहुंची. पिछले पाच सालों में भी बिजली इसलिए नहीं आई क्योंकि उनका मुस्लिम विधायक हिंदु बहुल गांवों को बिजली देने को राजी नहीं था.


यूपी में चुनाव के दौरान पीएम मोदी ने लगाया था भेदभाव का आरोप


यूपी में चुनाव के दौरान पीएम मोदी ने आरोप लगाया था कि हिंदू-मुस्लिम के नाम पर यूपी में बिजली की सप्लाई हो रही है. पीएम मोदी ने अखिलेश यादव की सरकार पर जब धर्म के आधार पर भेदभाव का आरोप लगाया था तब उन्होंने ये वादा भी किया कि अगर यूपी में बीजेपी की सरकार आई तो चेहरा या धर्म देखकर सरकार काम नहीं करेगी.


यूपी के नतीजों ने साबित किया कि भेदभाव पर अखिलेश यादव की सफाई को जनता ने नकार दिया और भेदभाव के मोदी के आरोपों को सही माना. चुनाव खत्म होने के एक महीने के बाद एबीपी न्यूज इस सच की पड़ताल के निकला कि बिजली पर भेदभाव के आरोप सिर्फ चुनाव में हार-जीत तक सीमित थे या सचमुच बिजली के खंभों का चरित्र हिंदू या मुस्लिम है.


एबीपी न्यूज़ की टीम ने की भेदभाव की पड़ताल


एबीपी न्यूज संवाददाता चित्रा त्रिपाठी लखनऊ से 170 किलोमीटर दूर बहराइच जिले के गांवों की ओर रवाना हुईं. रात के अंधेरे में पांच गांवों का रास्ता नापा. ये जानने के लिए कि क्या सचमुच बिजली देने में कोई भेदभाव हुआ?


बहराइच के जिन गांवों में चित्रा गईं वो अखिलेश सरकार में बिजली मंत्री यासिर शाह के चुनाव क्षेत्र में आते हैं. यासिर शाह बिजली मंत्री थे तो यकीनन गांवों का ये हक तो बनता था कि उनके गांव में बिजली पहुंचे लेकिन ये सच नहीं था. सच था भेदभाव का. क्या वाकई यूपी में ऐसे गांव हैं, जहां बिजली इसलिए नहीं पहुंचाई गई ? क्योंकि वहां किसी खास धर्म के लोग रहते हैं.


यूपी में बहराइच के बलभद्रपुर बनकटी गांव का हाल


बहराइच के बलभद्रपुर बनकटी गांव में लोगों ने आजतक बिजली की रोशनी नहीं देखी. बिन बिजली जिंदगी क्या होती है ये इस गांव की महिलाओं से बेहतर कोई और क्या बता सकता है. महिलाओं ने कहा, ‘’गांव में ना बिजली है ना शौचालय है. रात में बिना पंखे के घर में सोना पड़ता है. इस वक्त बहुत गर्मी पड़ रही है तो हालत और बुरे हैं. छत पर छोटे छोटे बच्चे ढिबरी (मिट्टी के तेल से जलने वाला दिया) की रोशनी में छत पर पढाई कर रहे हैं, वहीं पूरे गांव में अभी कुछ महीने पहले दो सोलर लाइट लगी हैं जो उजाले के लिये नाकाफी हैं.


 


गांव के लोग कहते हैं, ‘’खाली होने पर हम लोग आपस में बात करके मनोरंजन कर लेते हैं, क्योंकि इसका दूसरा कोई साधन नहीं है. कुछ लोगों के पास मोबाइल है लेकिन उसे चार्ज करने बहुत दूर जाना पड़ता है. फुल चार्ज के पांच रुपये भी देने पड़ते हैं. गांव में लोगों को इंटरनेट के बारे में नहीं पता और ना ही लोगों ने आज तक ये शब्द सुना है.


बहराइच के सिसाइनपुरवा गांव का हाल, महिलाओं ने मोदी-योगी को नहीं पहचाना


सिसाइनपुरवा गांव में महिलाओं ने मोदी और योगी को जानने और पहचानने से मना कर दिया. मोदी-योगी कभी गांव आए नहीं और टीवी पर उन्होंने कभी इनको देखा नहीं. देख इसलिए नहीं पाए क्योंकि कभी टीवी के बारे में सुना या देखा नहीं और टीवी इसलिए नहीं देखा क्योंकि कभी गांव में बिजली आई नहीं.



सिसाइनपुरवा गांव में एक ऐसे सच से सामना हुआ जिसे जानना केंद्र के मोदी और यूपी की योगी सरकार के लिए जानना जरूरी है. इस गांव में मोदी सरकार तो पहुंची, लेकिन बिजली आज तक नहीं पहुंची. महिलाओं को गैस कनेक्शन देने की पीएम मोदी की उज्ज्वला योजना का फायदा गांव की महिलाओं को मिला जिसने चूल्हे चौके का अंदाज बदल दिया.


आप सोचेंगे कि जब उज्ज्वला योजना के गैस सिलेंडर गांव में पहुंच गए तो पूरा गांव मोदी-मोदी करता होगा लेकिन ये सोच सच नहीं है. गांव के लिए आज भी मोदी और योगी दो अनजान नाम हैं.


बहराइच के महापुरवा गांव का हाल


यूपी के बहराइच जिले में ही पेरी महापुरवा गांव और भोगाजोत गांव पड़ते हैं. इन गांवों में जाने के बाद पता चला आखिर बिजली नहीं होने का दर्द क्या होता है. महापुरवा गांव में गुमटी पर मोमबत्ती जला कर एक बुजुर्ग सामान बेचते मिल गए, जिनकी जिंदगी बिना बिजली की गुजर गई.



भोगाजोत में भी बिजली नहीं


इतने सारे गांवों का दौरा करने के बाद जब एबीपी न्यूज़ भोगाजोत पहुंचा तो आजादी के 70 साल बाद भी वहां अंधेरा नजर आ रहा था. भोगाजोत के सरकारी स्कूल के बाहर खुले आसमान के नीचे बड़ी संख्या में हमें ऐसे लोग मिले जिनका कहना था कि हिन्दू होने की वजह से यहां रोशनी नहीं आई.