इलाहाबाद: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पत्नी और बेटी की बेरहमी से हत्या करने के बाद उनके शव को छिपाने के दोषी शख्स को कोई राहत देने से इंकार करते हुए उसकी फांसी की सज़ा को बरक़रार रखा है. अदालत ने इस मामले को रेयर ऑफ रेयरेस्ट माना है और अपने फैसले में कहा है कि उसकी फांसी की सज़ा को उम्रकैद में बदलना इंसाफ के खिलाफ होगा.


दोषी को उसकी ही दूसरी नाबालिग बेटी के चश्मदीद गवाह होने के आधार पर फांसी की सज़ा सुनाई गई थी. यह मामला यूपी के मैनपुरी जिले के करहल गांव का है. मैनपुरी की सेशन कोर्ट ने इस मामले में दोषी शख्स को पिछले साल पहली जनवरी को फांसी की सजा सुनाई थी और उसकी तस्दीक के लिए मामला हाईकोर्ट को रेफर कर दिया था.

दोषी शख्स ने शराब का पैसा न मिलने पर पत्नी व बारह साल की बेटी को बेरहमी से क़त्ल किया था.

यह आदेश न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल तथा न्यायमूर्ति ओम प्रकाश की खण्डपीठ ने दिया है. गौरलतब है कि रूपपुर गांव के सोबरन सिंह प्रजापति की शादी पंद्रह साल पहले ममता से हुई थी. उनके पांच बच्चे हुए. 30 जून साल 2014 को आरोपी ने शराब पीने के लिए पत्नी ममता से पैसे मांगे.

पत्नी ने पैसे देने से मना किया तो वह उत्तेजित हो गया और पत्थर व बांस से पीटकर उसकी हत्या कर दी. सोबरन ने इसके बाद बारह साल की बड़ी लड़की सपना को जमीन पर कई बार पटका और गले पर पैर रखकर मरने तक दबाये रखा. पत्नी व बेटी को मौत के घाट उतारने के बाद उसने लाश को छत पर छिपाने की कोशिश की और घर से फरार हो गया.

इस घटना में दूसरी बेटी चश्मदीद गवाह है. पत्नी ममता के मायके वालों की शिकायत अपर पुलिस ने इस मामले में एफआईआर दर्ज की. परिवार में बूढ़े माता-पिता के अलावा अब दो बेटे व इकलौती बेटी ही बची है. सत्र न्यायालय ने आरोपी को जघन्य हत्या का दोषी करार देते हुए फांसी की सजा सुनायी और जुर्माना भी लगाया.

हाईकोर्ट ने कहा कि फांसी देने के बाद जुर्माने की सजा का औचित्य नहीं है और जुर्माने की सजा रद्द कर दी. कोर्ट ने अपराध को रेयर आफ रेयरेस्ट माना और कहा कि आम तौर पर हत्या के आरोप में आजीवन कारावास की सज़ा दी जाती है, लेकिन यह मामला अलग किस्म का है.

सोबरन ने न सिर्फ पत्नी की हत्या की, बल्कि साथ ही नाबालिग बेटी के गले पर पैर रखकर मरने तक उसे दबाये रखा. हत्या में बर्बरता की गई है. सत्र न्यायालय ने एक जनवरी 2017 को फांसी की सजा सुनाई थी.