लखनऊ: सभी राजनैतिक पार्टियां जानती हैं कि यूपी के सियासत की गद्दी सलीके से नहीं बल्कि समीकरण से जीती जाती हैं और यही वजह है कि सभी पार्टियों का जोर विकास के मुद्दे पर कम जातीय समीकरण साधने पर ज्यादा है. यूपी चुनाव के दूसरे दौर के दंगल में भी सियासी तस्वीर काफी हद तक मुस्लिम मतदाता ही तय करेंगे. दूसरे चरण के 11 जिलों में करीब 36 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं. इनमें से 6 जिलों में पूरी तरह से मुस्लिम वोटरों का दबदबा है.
जातीय और धार्मिक समीकरण
आंकड़ों के मुताबिक रामपुर में 51%, मुरादाबाद में 47%, बिजनौर में 43%, सहारनपुर में 42% , अमरोहा में 41% वहीं बरेली में 35% मुसलमान हैं. एसपी-कांग्रेस गठबंधन के साथ-साथ बीएसपी की भी निगाह इन्हीं वोटरों पर है. शायद यही वजह है कि दूसरे चरण की 67 सीटों पर बीएसपी ने 26, एसपी-कांग्रेस गठबंधन ने 25 और आरएलडी ने 13 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं. जबकि 13 सीटें ऐसी हैं जहां सीधे एसपी-कांग्रेस गठबंधन और बीएसपी के मुस्लिम उम्मीदवारों की टक्कर है.
इसके इतर इस इलाके की कई सीटें ऐसी हैं जहां 50 फीसदी से ज्यादा पिछड़ी जातियां हैं. ध्रुवीकरण की धार और इन्हीं पिछड़ी जातियों के दम पर बीजेपी यूपी में जीत का दावा कर रही है. इन इलाकों में गैर यादव वोट यानि कुर्मी, लोध, सैनी, कश्यप, मौर्य ज्यादा हैं. जिन पर बीजेपी की अच्छी पकड़ मानी जाती है.
2012 के सियासी दंगल के क्या थे नतीजे ?
यूपी के सियासी रण के दूसरे दौर में 11 जिलों की 67 सीटों पर वोटिंग होनी है, उनमें पिछली बार यानि साल 2012 के विधानसभा चुनाव में 33 सीटों पर समाजवादी पार्टी, 19 पर बीएसपी और 10 सीटों पर बीजेपी ने कब्जा जमाया था. जबकि कांग्रेस के खाते 3 तो वहीं 2 सीटें अन्य के खाते में आईं थी.
जिलेवार सीटों की बात करें तो सहारनपुर की 7 सीटों में 5 पर बीएसपी, एक पर बीजेपी और एक पर समाजवादी पार्टी को जीत मिली थी. बिजनौर की 8 सीटों में से बीएसपी के खाते में 4, वहीं बीजेपी और एसपी के खाते में 2-2 सीटें आई थीं. मुरादाबाद जिले में 6 विधानसभा सीटें हैं, यहां की 4 सीटों पर समाजवादी पार्टी, एक पर बीजेपी और एक सीट पर पीस पार्टी को जीत मिली थी. संभल जिले में 4 सीटे हैं, पिछली 3 एसपी वहीं एक कांग्रेस के खाते में गई थीं.
2012 में अमरोहा ने दिल खोलकर दिया था समाजवादी पार्टी को वोट
हालांकि आजम खान के जिले रामपुर में समाजवादी पार्टी 2012 में ज्यादा बेहतर नहीं कर पाई थी, जिले की 5 सीटों में से सिर्फ 2 ही समाजवादी पार्टी जीत पाई थी, जबकि दो पर कांग्रेस और एक सीट पर बीएसपी को जीत मिली थी. लेकिन 2012 के विधानसभा चुनाव में अमरोहा जिले ने दिल खोलकर समाजवादी पार्टी को वोट दिया था, जिले की सभी 4 सीटें एसपी के खाते में गई थी. बदायूं जिले की 6 में 4 सीटों पर एसपी को जीत मिली थी, जबकि 2 सीटों पर बीएसपी ने कब्जा किया था.
दूसरे दौर के चुनाव में सबसे ज्यादा 9 सीटें बरेली जिले में है, यहां पिछली बार 3 पर बीजेपी, 3 पर एसपी, 2 पर बीएसपी जबकि एक सीट पर इत्तेहाद-ए-मिलियत को जीत मिली थी. तो वहीं पीलीभीत में भी एसपी का दबदबा रहा था, 4 में से 3 सीट पर एसपी को जीत मिली थी, वहीं सिर्फ एक सीट बीजेपी जीतने में कामयाब हो पाई थी. शाहजहांपुर जिले में 6 सीटें हैं, पिछली बार एसपी-3, बीजेपी-1, बीएसपी- 2 सीटें जीती थीं.
2007 में बजा था बीएसपी का डंका
वहीं क्षेत्रफल के लिहाज से सूबे के सबसे बड़े जिले लखीमपुर खीरी में 8 विधानसभा सीटे हैं, यहां 2012 में एसपी ने 4, बीएसपी ने 3 वहीं बीजेपी ने 1 सीट पर जीत हासिल की थी. लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव ने इन जिलों का सियासी गणित ही पलट दिया था, 11 जिलों की सभी लोकसभा सीटों पर केसरिया झंडा लहराया था. जबकि इन 67 सीटों पर 2007 में बीएसपी का डंका बजा था, 2007 के विधानसभा चुनाव में 32 सीटें जीत बीएसपी सबसे आगे रही थी.
जीत के समीकरण दूसरे दौर की 67 सीटों पर मौसम के मिजाज की तरह बदलते हैं और यही वजह कि पुराने आंकड़े चाहकर भी कयास लगाने में बहुत मददगार साबित नहीं होते. 2007 के चुनाव में बीएसपी, 2012 के चुनाव में एसपी और 2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी यहां बुलंदी देखी है. 2017 का चुनाव इन तीनों से अलग है. जानकार मानते हैं कि इस बार ध्रवीकरण की धार से बीजेपी और मुसलमानों की बीच कड़ी मेहनत से बीएसपी, एसपी का खेल बिगाड़ सकती है.