लखनऊ: उत्तर प्रदेश में जल्द ही विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. ऐसे में तमाम राजनीतिक दल अपनी-अपनी जीत के लिए अलग-अलग फॉर्मूले पर काम कर रहे हैं. ऐसे में बहुजन समाज पार्टी ने भी यूपी चुनाव में जीत दर्ज करने के लिए एक अलग दांव चला है. दरअसल बीएसपी इस बार दलित-मुस्लिम वोटों की सोशल इंजीनियरिंग के सहारे चुनाव में जीत दर्ज करने की कोशिश करेगी. इसके लिए बीएसपी ने ब्राह्मणों के टिकट काट कर इस बार मुस्लिमों को ज्यादा टिकट दिए हैं.
जाति और धर्म के आधार पर टिकटों का बंटवारा
बीएसपी सुप्रीमो मायावती आज पूरी तैयारी के साथ आई थीं. कल सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि धर्म के नाम पर वोट मांगना गैरकानूनी है और आज मायावती ने बीएसपी को जाति और धर्म से ऊपर की पार्टी बताते हुए जाति और धर्म के आधार पर टिकटों के बंटवारे का एलान कर दिया.
अगड़ी जातियों को 113 सीट पर टिकट
मायावती ने सोशल इंजीनियरिंग फॉर्मूले के तहत सभी 403 सीटों पर कैंडिडेट्स का एलान कर दिया. जिसमें दलित समाज को 87 सीट, मुस्लिम समाज को 97 सीट, 106 सीट अन्य पिछड़ा वर्ग के कैंडिडेट्स को और अगड़ी जातियों को 113 सीट पर टिकट दिया.
2016 में 97 मुस्लिमों को टिकट
आंकड़े बता रहे हैं कि इस बार मायावती ने ब्राह्मणों को किनारे कर मुस्लिमों को ज्यादा टिकट दिए हैँ. आंकड़ों के मुताबिक साल 2007 में बीएसपी ने 86 ब्राह्मणों को टिकट दिया था जबकि साल 2012 में 74 को, तो वहीं इस बार 403 में से 66 ब्राह्मणों का टिकट दिया है. तो वहीं साल 2007 में बीएसपी ने सिर्फ 28 मुस्लिमों को टिकट दिया था जबकि साल 2012 में 85 और 2016 में 97 मुस्लिमों को टिकट दिया है.
पार्टी से अगड़ी जातियों की ताकत कम करने का फैसला
2007 में जहां बीएसपी का ब्राह्मण प्रेम जागा था तो उस साल मुस्लिमों से किनारा भी किया था. इस बार भी अगड़ी जातियों खासकर ब्राह्मणों को अच्छी खासी तादाद में टिकट दिया जाना था. लेकिन दयाशंकर गालीकांड के बाद बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने अपनी रणनीति में बदलाव किया. लखनऊ में मंच से बीएसपी के प्रदर्शन के दौरान जब दयाशंकर के परिवार के खिलाफ गाली वाले नारे लग रहे थे तब पार्टी के ब्राह्मण और ठाकुर जाति के कुछ नेताओं ने इसका विरोध किया था और ये बात मायावती को चुभ गई. इसी के बाद पार्टी से अगड़ी जातियों की ताकत कम करने का फैसला किया गया.