इलाहाबाद/लखनऊ: इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने सेंटर फार सिविल लिबर्टीज की याचिका पर उत्तर प्रदेश सरकार से जवाब तलब किया. याचिका में कथित रूप से मनमाने ढंग से यश भारती सम्मान बांटे जाने पर ऐतराज किया गया है.
न्यायमूर्ति देवेन्द्र कुमार अरोडा और न्यायमूर्ति राजन राय की पीठ के समक्ष दायर याचिका में दावा किया गया है कि राज्य सरकार बतौर पुरस्कार 11 लाख रूपये और भारी भरकम मासिक पेंशन यश भारती पाने वालों को दे रही है लेकिन ये पुरस्कार मनमाने ढंग से दिये जा रहे हैं.
सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक जांच समिति
याचिकाकर्ता की वकील नूतन ठाकुर ने बताया कि सरकारी वकील ने जवाब के लिए समय मांगा. कोर्ट ने सुनवाई की अगली तारीख 23 जनवरी तय की है. याचिका में कोर्ट से आग्रह किया गया है कि हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक जांच समिति बनायी जाए ताकि 2012 से 2016 के बीच दिये गये यश भारती सम्मान का आंकलन किया जा सके. साथ ही कथित तौर पर नियम तोड़कर जिन लोगों को ये सम्मान दिया गया, उनसे वापस लिया जाए.
आपको बता दें कि यश भारती सम्मान राज्य का सर्वोच्च सम्मान है. इसकी शुरुआत तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने की थी. आने वाली समाजवादी पार्टी (एसपी) की सरकारों ने इसे जारी रखा है. विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय कार्य करने वालों को उत्तर प्रदेश सरकार यश भारती सम्मान देती है, जिसके तहत 11 लाख रूपये नकद, प्रशस्ति पत्र और 50 हजार रूपये मासिक पेंशन दी जाती है.
इस सम्मान को लेकर समाज के विभिन्न हलकों से सत्तारूढ़ पार्टी पर भाई-भतीजावाद तथा पक्षपात करने का आरोप लग चुका है. अतीत में इस सम्मान के लिए भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) अधिकारियों की पत्नियों तथा कथित तौर पर अपनी पसंद के लोगों को नामित किया जा चुका है.
इलाहाबाद का 'करोड़पति' लेखपाल
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कई राज्यों में करोड़ों की सम्पत्ति वाले इलाहाबाद में तैनात एक लेखपाल साधू शरण उपाध्याय के खिलाफ कार्यवाही की मांग में दाखिल जनहित याचिका पर राज्य सरकार से पूछा है कि इस मामले में क्या कार्यवाही की है और सरकार ऐसे मामले में क्या कदम उठायेगी. याचिका की सुनवाई बुधवार 21 दिसम्बर को भी जारी रहेगी. यह आदेश मुख्य न्यायाधीश डी.बी.भोसले तथा न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की खण्डपीठ ने सोमेश्वर राय सेवा समिति की जनहित याचिका पर दिया है.
याची का कहना है कि लेखपाल ने करोड़ों रूपये की अवैध कमाई से कई राज्यों में फ्लैट व प्लॉट खरीदे है. वर्तमान समय में वह कानूनगो है. लेखपाल की अकूत सम्पत्ति की जांच की शिकायत के बावजूद उसके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की जा रही है. लेखपाल की उत्तर प्रदेश व महाराष्ट्र में भी सम्पत्ति है. कोर्ट ने मामले की गंभीरता को देखते हुए कोर्ट में मौजूद महाधिवक्ता विजय बहादुर सिंह से इस बावत कार्यवाही की जानकारी मांगी है. याचिका की सुनवाई बुधवार को भी होगी.
प्रतीकात्मक तस्वीर
धांधली के आरोपों पर प्रमुख मुख्य वन संरक्षक से हलफनामा तलब
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने प्रदेश के वन विभाग के 70 डिवीजन में नियमित किये गये 4571 दैनिक कर्मियों का यूपी के प्रमुख मुख्य वन संरक्षक से ब्यौरे के साथ व्यक्तिगत हलफनामा मांगा है. कोर्ट ने पूछा है कि नियमित हुए कर्मियों की नियुक्ति तिथि क्या है तथा कितने समय तक काम किया है. क्या उस समय नियमितीकरण नियम लागू था और नियमित हुए कर्मी न्यूनतम अर्हता रखते थे.
कोर्ट ने यह भी पूछा है कि दैनिक कर्मी स्थायी या अस्थायी पद के विरुद्ध कार्यरत थे, इन्हें किस तिथि को नियमित किया गया. नियमितीकरण कमेटी की बैठक का मिनट तथा वरिष्ठता सूची दी जाए. कोर्ट ने प्रमुख मुख्य वन संरक्षक से अगले साल नौ जनवरी तक जवाब मांगा है. यह आदेश न्यायमूर्ति सुनीता अग्रवाल ने चन्द्रपाल सिंह की याचिका पर दिया है.
2002 से 2016 तक 4571 दैनिक कर्मियों को किया गया नियमित
मालूम हो कि पुत्ती लाल केस में सुप्रीम कोर्ट ने दैनिक कर्मियों को नियमित करने का निर्देश दिया था जिस पर ग्रुप सी और डी पद पर कार्यरत दैनिक कर्मियों को नियमित किया गया. 2002 से 2016 तक 4571 दैनिक कर्मियों को पद व धन की उपलब्धता पर नियमित किया गया है. याची अधिवक्ता का कहना था कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद 2010 में बनी वरिष्ठता सूची की अनेदखी कर मनमानी नियुक्ति की गयी है. नियमितीकरण में घोटाले की जांच याचिका में सीबीआई से कराने की मांग की गयी है.
कोर्ट ने नियमितीकरण का रिकॉर्ड मांगा था किन्तु रिकार्ड भारी होने के कारण पेश नहीं हो सका. जिस पर कोर्ट ने ने यह जानकारी मांगी है. कोर्ट ने कहा था कि नियमितीकरण नियमावली लागू होने के बाद सभी कार्यरत दैनिक कर्मियों को नियमित किया जाए. नियमितीकरण में अनियमितता की शिकायत पर कोर्ट ने सत्तर डिवीजनों के नियमित हुए कर्मियों का विस्तृत ब्यौरा मांगा है. मामले की अगली सुनवाई नौ जनवरी को होगी.
बैंकों से नोट निकासी पर प्रतिबंध हटाने की अर्जी पर हाईकोर्ट का दखल से इंकार
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बैंकों से कैश निकालने की सीमा हटाने, चौबीसों घंटे एटीएम चालू रखने, बैंकों में नयी करेंसी की पर्याप्त सप्लाई करने सहित कोआपरेटिव बैंकों को करेंसी देने की छूट की मांग में दाखिल जनहित याचिका पर हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया है.
कोर्ट ने याची को छूट दी है कि वह नोटबंदी के खिलाफ याचिकाओं की सुनवाई कर रही सुप्रीम कोर्ट की पीठ के समक्ष अर्जी दे सकता है. यह आदेश मुख्य न्यायाधीश डी.बी.भोसले तथा न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की खण्डपीठ ने हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के पूर्व वरिष्ठ उपाध्यक्ष एस.के.गर्ग की जनहित याचिका पर दिया है.
याची का कहना था कि अनुच्छेद 300 ए के तहत सम्पत्ति संवैधानिक अधिकार में शामिल है. करेंसी की आपूर्ति न होने के कारण लघु उद्योग बर्बाद हो रहे हैं. लोगों की बैंको में जमा गाढी कमाई निकालने पर प्रतिबंध लगाया गया है. अधिकांश एटीएम बंद पड़े हैं, जिसके चलते लोगों को खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.
प्रतीकात्मक तस्वीर
राबर्टसगंज फ्लाई ओवर पर चार मौतों का मामला, क्राइम ब्रांच को दो माह में जांच पूरी करने का निर्देश
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने राबर्टसगंज फ्लाई ओवर पर 25 अप्रैल 16 को चार लोगों की चोट व जलने के कारण हुई मौत की जांच कर रही क्राइम ब्रांच मिर्जापुर को दो माह में विवेचना पूरी करने का निर्देश दिया है. मृतकों के परिजनों ने आरोप लगाया है कि मारकर जला दिया गया है जबकि पुलिस इसे दुर्घटना मान रही है.
यह आदेश न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति रेखा दीक्षित की खण्डपीठ ने मृतक दीपू राठौर की मां किशोरी देवी की याचिका को निस्तारित करते हुए दिया है. मालूम हो कि 25 अप्रैल 16 की रात 2.10 बजे फ्लाईओवर पर अपाचे मोटर साइकिल स्टैण्ड पर खड़ी जल रही थी और पास ही तीन लोग जल रहे थे, चौथा व्यक्ति थोड़ी दूर पर जल रहा था. इन्हें अस्पताल लाया गया. तीन व्यक्तियों जिसमें एक लड़की थी को अस्पताल में मृत घोषित कर दिया गया. चौथा घायल 9 दिन बाद मर गया. घायल का बयान दर्ज नहीं किया गया. घटना को हत्या बताते हुए परिजनों ने अधिकारियों सहित मुख्यमंत्री तक शिकायत की. बाद में केन्द्रीय गृहमंत्री के हस्तक्षेप पर जांच पुलिस से हटाकर क्राइम ब्रांच को सौंपी गयी है.
याची का कहना है कि क्राइम ब्रांच की जांच धीमी गति से चल रही है. मृत लड़की की शिनाख्त भी नहीं हो सकी है. याचिका में पुलिस पर साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ करने का आरोप लगाया गया है. घटना की जांच सीबीआई से कराने की मांग की गयी थी. फिलहाल कोर्ट ने क्राइम ब्रांच को जांच दो माह में पूरी करने का निर्देश दिया है.
यूपी: मुख्यमंत्री आवास पर बैठने से रोकने पर हाईकोर्ट में याचिका
अपने निलंबन के खिलाफ इसी साल मार्च में मुख्यमंत्री के 5, कालिदास मार्ग स्थित सरकारी आवास के सामने बैठे जाने से पुलिसवालों द्वारा रोके जाने के मामले में आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के लखनऊ पीठ में याचिका दायर की है, जिसकी सुनवाई बुधवार को होगी. पूर्व में उन्होंने इसकी शिकायत उत्तर प्रदेश राज्य मानवाधिकार आयोग को की थी, जिसने एसएसपी लखनऊ को जांच कर चार सप्ताह में रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा था. एसएसपी ने प्रकरण की जांच सीओ हजरतगंज को दी और सीओ हजरतगंज ने एसओ गौतमपल्ली से रिपोर्ट ले कर अपनी जांच भेज दी.
अमिताभ ने इसे प्राकृतिक न्याय का सिद्धांत बताते हुए राज्य मानवाधिकार आयोग द्वारा अपने स्तर पर इस मामले की जांच किए जाने की प्रार्थना की है. मामले में सुनवाई बुधवार को होगी. अमिताभ ने शिकायत में कहा था कि उन्हें पुलिस ने धारा 144 सीआरपीसी और हाई सिक्यूरिटी जोन के नाम पर बाहरी गेट पर ही रोक दिया, जबकि वे पूरी तरह अकेले थे और उनके पास कोई भी प्रतिबंधित सामान नहीं था.