(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के 'अच्छे दिन'
2017 में यूपी में विधानसभा के चुनाव हुए तो फूलपुर से लोकसभा सांसद केशव प्रसाद मौर्य को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया. चौदह सालों से बीजेपी राज्य में सत्ता से बाहर थी. चुनाव ख़त्म होते होते मौर्य पिछड़ों के नेता बन गए.
लखनऊ: लोकसभा चुनाव करीब आते ही यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य फिर सक्रिय हो गए हैं. सरकार से लेकर संगठन तक में उनका महत्व बढ़ गया है. यूपी ही नहीं बाहर के राज्यों में भी मौर्य को राष्ट्रीय नेता के रूप में भेजा जा रहा है. वे पार्टी में पिछड़ों के नेता माने जाते हैं. बंगाल के दौरे के बाद सोमवार को वे कर्नाटक गए थे. जहां बेलागावी में पार्टी के शक्ति सम्मेलन में मौर्य मुख्य अतिथि बन कर पहुंचे. पिछले तीन बार से यहां बीजेपी ही लोकसभा चुनाव जीतती रही है. महाराष्ट्र और गोवा की सीमा वाले इस इलाक़े से सुरेश आंगडी सांसद हैं.
अब बात केशव मौर्य की. इसी महीने वे बंगाल गए थे. फिर उन्हें बीजेपी के कार्यक्रम में बिहार जाना था. लेकिन पुलवामा की घटना के बाद ये दौरा रद्द हो गया था. 18 अक्टूबर को मौर्य ने कर्नाटक के बेलागावी में बीजेपी कार्यकर्ताओं की बैठक ली. उन्होंने पार्टी के लोगों से कहा कि प्रधानमंत्री मोदी पर विश्वास करिए, वही नवयुग के निर्माता हैं. मौर्य ने बीजेपी कार्यकर्ताओं को लोगों से मिलकर विपक्ष का असली मक़सद बताने को कहा. उन्होंने कहा कि जेल जाने के डर से विपक्ष एकजुट हो रहा है. विपक्ष का गठबंधन बिना दूल्हे की बारात है.
चुनाव ख़त्म होते-होते मौर्य पिछड़ों के नेता बन गए जब 2017 में यूपी में विधानसभा के चुनाव हुए तो फूलपुर से लोकसभा सांसद केशव प्रसाद मौर्य को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया. चौदह सालों से बीजेपी राज्य में सत्ता से बाहर थी. चुनाव ख़त्म होते होते मौर्य पिछड़ों के नेता बन गए. वे यूपी के डिप्टी सीएम बनाए गए. इसी बात पर पूर्व मुख्य मंत्री अखिलेश यादव ख़ूब चुटकी लेते हैं. वे आरोप लगाते हैं कि मौर्य को दिखाकर बीजेपी ने पिछड़ों का वोट ले लिया. लेकिन जब सरकार बनी तो उन्हें नंबर दो बना दिया. इसके जवाब में मौर्य कहते हैं ''अखिलेश हमारी चिंता न करें, वे ये बतायें उन्होंने अपने पिता को किनारे क्यों कर दिया.''
2017 के चुनाव ने सारे सामाजिक समीकरण ध्वस्त कर दिए बीजेपी को यूपी में परंपरागत तौर पर अगड़ी जातियों का वोट मिलता था. लेकिन 2017 के विधानसभा चुनाव ने सारे सामाजिक समीकरण ध्वस्त कर दिए. ग़ैर पिछड़ी जातियों के समर्थन से पार्टी ने सारे रिकार्ड तोड़ दिए. 403 में से बीजेपी 325 विधानसभा सीटों पर जीत गई. कल्याण सिंह के ज़माने में पार्टी को पिछड़ी बिरादरी के लोध जाति के वोट मिलते थे. लेकिन पहली बार ग़ैर यादव पिछड़ों ने एकजुट होकर बीजेपी को जिताया. नतीजा ये रहा कि बीएसपी 19 और समाजवादी पार्टी 47 पर सिमट गई. अब दोनों पार्टियों का गठबंधन हो गया है.
पिछड़ा समाज ही पार लगा सकता है बीजेपी की चुनावी नैया मायावती और अखिलेश यादव हर हाल में नरेन्द्र मोदी को यूपी में रोक लेना चाहते हैं. उधर राहुल गांधी भी बहन प्रियंका गांधी को लेकर राजनीति में आ गए हैं. ऐसे में बीजेपी की चुनावी नैया सिर्फ़ पिछड़ा समाज ही पार लगा सकता है. इसीलिए तो राज्य के कोने कोने में पिछड़ा सम्मेलन करने का फ़ैसला हुआ है. लखनऊ में कुछ महीनों पहले हुई ऐसी बैठकें कामयाब रही थी. अगड़ी जाति के नाराज़ लोगों को दस फीसदी आरक्षण देकर मना लिया गया है.
बीजेपी सरकार ने पहले कोटे में कोटे का आरक्षण देने का मन बनाया था. इसके लिए योगी सरकार ने एक कमेटी भी बना दी थी. लेकिन मौर्य, कुशवाहा और पटेल जैसी बड़ी पिछड़ी जातियां नाराज़ न हो जायें, इसीलिए अभी इस मामले को टाल दिया गया है. जबकि कमेटी ने अपनी रिपोर्ट भी दे दी है. अब बीजेपी ने केशव प्रसाद मौर्य के चेहरे को आगे कर पिछड़ी बिरादरी को लोगों को मनाने का फ़ैसला किया है. इसीलिए उन्हें यूपी के साथ साथ दूसरे राज्यों में भी संगठन के काम में लगाया जा रहा है.
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