लखनऊ: उत्तर प्रदेश में किसानों की कर्जमाफी आरबीआई के नियमों और योगी सरकार के वायदे के बीच फंस गई है. आरबीआई का कहना है कि राज्य सरकार तय सीमा से ज्यादा कर्ज नहीं ले सकती. राज्य सरकार की मजबूरी ये है कि जो वादा किया है वो निभाना है.
अब पचास दिन बाद योगी सरकार कर्जमाफी पर धर्मसंकट में फंसी है, क्योंकि आरबीआई केंद्र सरकार की कर्ज के मुद्दे पर नहीं सुन रहा है. वजह है वो कानून जो तय करता है कि राज्य और केन्द्र सरकार अपनी गारंटी पर कितना कर्ज ले सकती हैं.
योगी सरकार ने चार अप्रैल को पहली कैबिनेट में ही एक लाख तक कर्ज लेने वाले 86 लाख किसानों की कर्ज माफी का एलान किया था. तब योगी सरकार ने बैंकों के लिए बॉन्ड जारी कर कर्ज माफी का तरीका निकाला था, लेकिन रिजर्व बैंक ने इसकी इजाजत नहीं दी.
बैंकों के लिए सरकारी बॉन्ड एक तरह की बैंक गारंटी होती है कि बैंक किसानों से कर्ज का पैसा न लें यूपी सरकार बैंक को पैसे चुकाएगी और ऐसे किसानों का कर्ज माफ होता है. लेकिन आरबीआई का कहना है कि अगर यूपी सरकार को बॉंड के बदले ज्यादा कर्ज दिया तो देश के सारे प्रदेश कर्जे की लाइन में लग जाएंगे और इससे देश का आर्थिक बजट बिगड़ जाएगा.
इस फॉर्मूले के फेल होने पर नीति आयोग के साथ बैठक करके योगी सरकार ने सरकारी खर्चों में कटौती करने का मन बनाया है, लेकिन 36 हजार करोड़ का इंतजाम कैसे हो ये बड़ी चुनौती है. चर्चा है कि योगी सरकार किसानों के कर्ज माफ करने के बदले पैसे बचाने और पैसे जुटाने का फॉर्मूला तैयार कर रही है.
खर्च में कटौती कर 12 से 15 करोड़ जुटाने की योजना है, इसके अलावा पेट्रोल-डीजल पर अतिरिक्त सेस लगाकर साढ़े सात हजार करोड़ रुपये के इंतजाम पर विचार हो रहा है.
मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, केरल जैसे राज्यों के मुकाबले उत्तर प्रदेश में पेट्रोल-डीजल पर बहुत कम टैक्स लगता है. सिर्फ दिल्ली और हरियाणा में ही यूपी से कम टैक्स है. तेल पर टैक्स बढ़ाने के अलावा यूपी भी मध्य प्रदेश और दूसरे राज्यों की तरह उत्तर प्रदेश डेवलपमेंट कॉरपोरेशन बनाने की तैयारी है जो हाईवे पर टैक्स वसूलेगी.
बड़ी तस्वीर ये है कि योगी सरकार ने मुख्य सचिव की अगुवाई में आठ सीनियर आईएएस अधिकारियों की एक कमेटी बनायी है, जो छत्तीस हज़ार करोड़ रुपयों के जुगाड़ के लिए फार्मूला बना रही है जो फिलहाल दूर की कौड़ी लग रही है.