लखनऊ: उत्तर प्रदेश में इस साल राजनीतिक सेंसेक्स में काफी उतार-चढ़ाव देखा गया. आसन्न विधानसभा चुनाव की तैयारियों के बीच बहुजन समाज पार्टी और सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी के लिए साल 2016 कटु अनुभव वाला रहा. इस साल कई विश्वासपात्रों ने जहां पूर्व मुख्यमंत्री मायावती को झटका दिया, तो वहीं एसपी में चाचा-भतीजे की राजनीतिक कुश्ती में कई दिग्गज चित-पट हुए. फिर भी, तमाम उठा-पटक के बीच ये दोनों पार्टियां अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारी में जोरशोर से जुट गई हैं.



कई कद्दावर नेताओं ने छोड़ा बहुजन समाज पार्टी का दामन


इस साल बीएसपी ने जहां अपने कई कद्दावर नेताओं को पार्टी छोड़ते देखा, वहीं नोटबंदी ने भारतीय जनता पार्टी पर सीधे निशाना साधने के लिए एक ब्रह्मास्त्र दे दिया.


पार्टी छोड़ने वाले नेताओं को भी बीएसपी ने लगातार अपने निशाने पर रखा. बीजेपी से निकाले गए नेता दयाशंकर सिंह की पत्नी और बेटी पर नसीमुद्दीन सिद्दीकी की विवादास्पद टिप्पणी से भी बीएसपी काफी चर्चित रही.


पार्टी को विश्वास है कि अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों में सत्ता में उसकी वापसी होगी. पार्टी की मुखिया मायावती का मानना है कि इस बार अल्पसंख्यक विशेषकर मुसलमान उनके साथ रहेंगे.


पार्टी को छोड़कर जाने वाले लोग स्वार्थी


बीएसपी के प्रदेश अध्यक्ष राम अचल राजभर ने आईएएनएस से कहा कि बीएसपी पूरे जोश के साथ विधानसभा चुनाव में उतरेगी. पार्टी को छोड़कर जाने वाले लोग स्वार्थी थे. ऐसे लोगों के जाने से पार्टी के अभियान पर कोई खास प्रभाव नहीं पड़ेगा.



उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने नोटबंदी कर जिस तरह आम जनता को मुश्किल में डाल दिया है, जनता उसका हिसाब विधानसभा चुनाव में जरूर लेगी. छोटे मजदूर, किसान और मध्यम वर्ग के व्यापारी काफी परेशान हैं. नोटबंदी ने पूरे देश की जनता को कतारों में खड़े रहने को मजबूर कर दिया है.



बीएसपी को इस वर्ष अलविदा कहने वाले कद्दावर नेताओं में शामिल विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य के साथ सांसद ब्रजेश पाठक व पूर्व मंत्री आरके चौधरी ने ऐन वक्त पर पार्टी छोड़ दी. मौर्य और पाठक बीजेपी में शामिल हो गए हैं.


टिकट चाहने वाले करते हैं आर्थिक सहयोग


अक्सर धन लेकर टिकट देने के आरोपों का सामना करने वाली मायावती ने कहा कि उनकी पार्टी देश में एकमात्र ऐसी पार्टी है, जिसके पास गलत तरीके से अर्जित धन नहीं है.


उन्होंने माना कि टिकट चाहने वाले आर्थिक सहयोग करते हैं और इस राशि का उपयोग पार्टी संगठन को मजबूत करने और चुनाव लड़ने में किया जाता है. नोटबंदी पर मायावती के तेवर काफी कड़े हैं. उन्होंने मोदी सरकार पर देश में अघोषित आर्थिक इमरजेंसी लगाने का आरोप लगाया.


मायावती ने कहा कि इतना बड़ा फैसला लेने से पहले गरीबों के बारे में नहीं सोचा गया. पूंजीपतियों को बड़े पैमाने पर लाभ पहुंचाया गया. बीएसपी का मानना है कि नोटबंदी का यह फैसला बीजेपी के लिए विनाशकारी साबित होगा.



साल भर मायावती के निशाने पर एक ओर केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार रही, तो दूसरी ओर उन्होंने प्रदेश की एसपी सरकार पर भी जमकर हमला बोला. कानून-व्यवस्था के मुद्दे पर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को विफल बताते हुए उन्होंने कहा कि एसपी सरकार की नीतियां ढुलमुल हैं और बीजेपी से उसकी मिलीभगत है.


मुसलमानों को आकर्षित करने की कवायद


मुसलमानों को अगले विधानसभा चुनाव में बीएसपी की ओर आकर्षित करने की कवायद में मायावती ने कहा था कि उत्तर प्रदेश के सर्वसमाज विशेषकर मुसलमानों को यह समझना बहुत जरूरी है कि एसपी में उनके हित सुरक्षित नहीं हैं.


मायावती एक ओर मुसलमानों से खुलकर वोट मांग रही हैं तो उन्हीं की पार्टी के महासचिव सतीश मिश्र भाईचारा सम्मेलनों के जरिए समाज के अन्य तबकों, खासकर ब्राह्मणों को जोड़ने की कवायद में जुटे हैं.