वाराणसी: गंगा की लहरों पर बायो-टॉयलेट बना विवाद की वजह, संतों ने बताया इसे धर्म का अपमान
गंगा महासभा और राष्ट्रीय संत समिति के महामंत्री स्वामी जीतेंद्रानंद सरस्वती इस व्यवस्था को बहुत बड़ा पाप मानते हैं. उन्होंने न केवल इस बॉयो टॉयलेट को काशी के नाम पर कलंक बताया बल्कि राज्य की हिंदूवादी सरकार को भी कठघरे में खड़ा किया.
वाराणसी: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र में स्वच्छता अभियान के नाम पर गंगा की लहरों पर खड़ा बायो टॉयलेट विवादों का कारण बन गया है. धर्म नगरी के संतों ने इसे सनातन परम्परा के खिलाफ बताते हुए इसे तुरंत हटाने की मांग की है. दिलचस्प बात यह है कि यूपी सरकार के एक मंत्री और संघ के बड़े नेता के आश्वासन दिए जाने के बाद भी यह बायो टॉयलेट गंगा नदी में ही खड़ा है.
गंगा नदी में बजड़े पर बनाकर खड़े किये गए बायोटॉयलेट से काशीवासियों में खासा नाराजगी देखने को मिल रही है. वे हर गली-नुक्कड़ पर गंगा में इस तरह मल-मूत्र त्याग करने की व्यवस्था को लेकर खासा रोष व्यक्त कर रहे हैं. सोशल मीडिया पर भी इस व्यवस्था को लेकर काफी नाराजगी देखने को मिल रही है. यही नहीं संतों ने भी इसे धर्म के नाम पर खिलवाड़ बताया है.
गंगा महासभा और राष्ट्रीय संत समिति के महामंत्री स्वामी जीतेंद्रानंद सरस्वती इस व्यवस्था को बहुत बड़ा पाप मानते हैं. उन्होंने न केवल इस बॉयो टॉयलेट को काशी के नाम पर कलंक बताया बल्कि राज्य की हिंदूवादी सरकार को भी कठघरे में खड़ा किया. उन्होंने कहा कि यह बहुत दुर्भाग्य का विषय है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सरकार की नाक के नीचे ऐसा हो रहा है. उन्होंने इसे महापाप बताते हुए कहा कि आम काशीवासी गंगा नदी के किनारे मल-मूत्र त्यागने को पाप समझता है और प्रशासन ने तो गंगा नदी के वक्ष पर ही मल-मूत्र त्यागने की व्यवस्था कर दी है. उन्होंने प्रशासन को चेतावनी देते हुए इसे तुरंत गंगा नदी से हटाने की मांग की है. उन्होंने कहा कि अगर इसे तुरंत नहीं हटाया गया तो न केवल काशी बल्कि यूपी सरकार और केंद्र सरकार की पूरी दुनिया में थू-थू हो जाएगी.
इस मामले में जो जानकारी मिली है, उसके मुताबिक़ मंगलवार को ही गंगा महासभा ने इस बायो टॉयलेट को लेकर यूपी सरकार के मंत्री और संघ के बड़े नेताओं से बात भी की थी. योगी सरकार के एक मंत्री और संघ के बड़े नेता ने इस तत्काल हटवाने का आश्वासन भी दिया था. लेकिन 24 घंटे बीत जाने के बाद भी यह बायो-टॉयलेट जस का तस गंगा नदी में खड़ा है.इस बारे में पातालपुरी मठ के पीठाधीश्वर बाबा बालक दास ने भी अपनी नाराजगी व्यक्त की है. उन्होंने कहा कि मोक्षदायिनी गंगा के जल को अमृत माना जाता है, श्रद्धालु इसका आचमन करके अपने आप को पाप-मुक्त करते हैं, यह संस्कृति सदियों से पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही हैं लेकिन इस तरह मां गंगा में बायो टॉयलेट का निर्माण करना गलत और आस्था के साथ खिलवाड़ है. इसी तरह श्रीमद भागवत कथा करने वाले आशीष कृष्ण शास्त्री ने भी इसे मां गंगा का अपमान बताया है. उन्होंने कहा कि आम जन-मानस घाट पर मां गंगा की पूजा करने जाता है. गंगा नदी में खड़ा होकर वह मंत्रोच्चार करता है और वहीं सामने मल-मूत्र त्यागने के लिए बायो टॉयलेट बना हो, यह कहां तक उचित होगा? उन्होंने प्रशासन और राज्य सरकार से तत्काल प्रभाव से हटवाने की मांग की.
बता दें कि प्रशासन की तरफ से बजड़े पर फ्लोटिंग बायोटायलेट बनवा कर दशाश्वमेध घाट पर लगी जेटी के बगल में खड़ा कर दिया गया है. इस फ्लोटिंग बायोटॉयलेट में चार पुरुषों और चार महिलाओं के लिए केबिन बने हैं. साथ ही इसमें दो चेंजिंग रूम और हाथ धोने के लिए दो बेसिन भी हैं. इस बायो-टॉयलेट का निर्माण करने वाली संस्था विजन कंस्ट्रक्शन के डायरेक्टर सुनील श्रीवास्तव के मुताबिक़ गंगा पर फ्लोटिंग शौचालय का आईडिया रेलवे की संस्था जीएफसीसीसीआईएल का और इसे संचालित करने की जिम्मेदारी उनकी संस्था की है. उनके मुताबिक़ बायो-टॉयलेट में ऐसे बैक्टीरिया डाले गए हैं जो मल को जल में बदल देंगे फिर उस मलजल को पाइप द्वारा सीवर में भेज दिया जाएगा.
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