(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
वाराणसी: 51 शक्तिपीठों में से एक है मां विशालाक्षी का अनोखा मंदिर, दर्शन मात्र से होती है सौभाग्य की प्राप्ति
इक्यावन शक्तिपीठों में से एक पीठ के रूप में माता विशालाक्षी की मान्यता है. यहां पर माता का मुख गिरा था. नवरात्रि में मां विशालाक्षी के दर्शन का बड़ा महत्व है.
वाराणसी: शारदीय नवरात्रि का आगाज हो गया है. पहले दिन माता शैलपुत्री की पूजा-अर्चना की जाती है. इस मौके पर आज हम आपको बताएंगे इक्यावन शक्तिपीठों में से एक मां भगवती विशालाक्षी शक्ति पीठ के बारे में.. भगवान विश्शेश्वर की नगरी और मंदिरों के शहर के नाम से विख्यात काशी का वेद पुराणों में महत्वपूर्ण उल्लेख है. काशी में मां भगवती विशालाक्षी शक्ति पीठ भी है. पतित पावनी मां विशालाक्षी का मंदिर मीर घाट पर स्थित है. यह स्थल सती के इक्यावन शक्तिपीठो में से एक है.
कांची की मां कृपाष्टा कामाक्षी, मदुरै की मत्स्य नेत्री मीनाक्षी की तरह मां विशालाक्षी का भी विशेष महत्त्व पुराणों में वर्णित है. काशी में स्थित नव शक्ति पीठो में मां विशालाक्षी का एक विशेष स्थान भी है. शास्त्रों में उल्लेखित है की भगवान विश्वनाथ भी यहां आकर विश्राम करते हैं. पुरे मंदिर में आकर्षक नक्काशी की कारीगरी देखने को मिलती है. वैसे तो साल भप यहां भक्तों का तांता लगा रहता है पर नवरात्रि में यहां भक्तों की भीड़ देखते ही बनती है.
देश के कोने-कोने से भक्त यहां माता के दर्शन करने आते हैं और माता की कृपा पाकर खुद को धन्य मानते हैं. मां विशालाक्षी शक्तिपीठ से जुड़ी कई मान्यताएं हैं जो इस एक विशेष स्थान दिलाती हैं.
मां विशालाक्षी मंदिर के महंत सुरेश तवारी ने बताया कि नवरात्री के पंचमी को मां विशालाक्षी गौरी का दर्शन होता है. मां विशालाक्षी का दर्शन करने से कुवारी कन्याओं का विवाह शीघ्र होता है, सौभाग्य की प्राप्ति होती है. सुख संपत्ति की प्राप्ति होती है. सारे पाप नष्ट हो जाते है. मां विशालाक्षी के स्वरूप का वर्णन करते हुए उन्होंने कहा कि काशी में मां का यह एक ही शक्तिपीठ मंदिर है. यहां माता सती का कर्ण और कुंडल गिरा था, यह शक्ति पीठ है यहां माता के मूर्ति की प्रतिष्ठा नहीं की गयी है. माता सती के कान की मणि मणिकर्णिका घाट पर गिरी हुई है.
राजा दक्ष प्रजापति पुत्री दाक्षायनी मां ने जब अपने शरीर को शती के रूप में त्यागने का निर्णय किया और भगवान शिव माता के पार्थिव शरीर को लेकर घूम रहे थे तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता के शरीर को एक-एक खंड करके गिराया था. उस समय जहां-जहां भी खंड गिरा वहा - वहां स्वयम्भू शक्तिपीठ हुआ, जहां बाद में मंदिर का निर्माण कराया गया. काशी खंड में मां सती का मुख गिरा था. मंदिर में माता की दो मुर्तिया हैं जिसमें से एक मूर्ति स्वयंभू है जो अनादिकाल से यहां विद्यमान है.
मंदिर में दर्शन करने आने वाले भक्तों की माता पर अटूट आस्था है. ऐसी मान्यता है कि माता हमेशा अपने भक्तो को हर मुसीबतों और समस्याओ से बचाती है और अपनी कृपा बरसाती है बस सच्ची आस्था होनी चाहिए. वाराणसी में यह एक मात्र शक्तिपीठ है जीनके दर्शन मात्र से सारे दुःख समाप्त होकर आत्मा को विशेष शांति मिलती है. मां विशालाक्षी का श्रृंगार आलौकिक होता है. सभी पहर माता की भव्य आरती होती है. जिसमे बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहते हैं.
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