वाराणसी: आज भले इस शहर की पहचान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र के रूप में हो. लेकिन यह शहर अपने हॉकी के ओलंपिक स्टार्स के लिए जाना जाता रहा है. मोहम्मद शाहिद और विवेक सिंह दो ऐसे प्लेयर हैं जिन्हें वाराणसी के लोग कभी भुला नहीं पाएंगे. खास बात यह है कि दोनों प्लेयर वरुणा पार इलाके के रहने वाले थे.


आज भले ही दोनों ओलंपिक स्टार्स आसमान में सितारे बनकर जगमगा रहे हों, लेकिन इन दोनों की परम्परा आज भी बदस्तूर कायम है. इस परम्परा को कायम रखने का श्रेय जाता है ओलंपियन विवेक सिंह के पिता गौरी शंकर सिंह को.

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उन्होंने अपने ओलंपियन बेटे विवेक की कैंसर से मौत के बाद, उनके हर सपने को जिन्दा रखने की कोशिश की है. उसी का नतीजा है विवेक सिंह एकेडमी, यहां से हर साल-दो साल पर निकलने वाले खिलाड़ी देश को रिप्रेजेंट कर रहे हैं.



बेटे का सपना पूरा करने के लिए खोली हॉकी एकेडमी

वाराणसी के शिवपुर के रहने वाले और पेशे से शिक्षक गौरी शंकर सिंह ने अपने ओलंपियन बेटे को कैंसर लड़ते हुए देखा है. विवेक सिंह ने अपनी मौत से पहले अपने पिता के सामने यह इच्छा जाहिर की थी कि वे घर लौट कर बच्चों के लिए हॉकी एकेडमी खोलेंगे.

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विवेक सिंह मुम्बई में कैंसर की जंग हार गए लेकिन उनके पिता ने उनका यह सपना हकीकत में बदलने की ठान ली. गौरी शंकर सिंह ने बेटे के सपने को पूरा करने के लिए 2005 में अपने पीएफ और एलआईसी के 12.50 लाख रुपयों से साढ़े छह बीघा जमीन खरीदी. इसी जमीन पर उन्होंने शुरुआत की विवेक सिंह हॉकी एकेडमी की.

फ्री ऑफ़ कास्ट मिलती है ट्रेनिंग

वे बताते हैं कि विवेक के जाने के बाद दिमाग में बस एक ही बात थी कि वह हॉकी एकेडमी खोलना चाहता था. विवेक की मौत के बाद जब वे मुंबई से लौटे तो अपने घर से करीब 6 किलोमीटर दूर करोमा गांव में जमीन खरीदी. करीब एक साल की मेहनत के बाद एकेडमी और स्टेडियम बनकर तैयार हो गया.

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अब यहां 150 से ज्यादा बच्चे हॉकी और क्रिकेट की रेगुलर कोचिंग लेते हैं. ख़ास बात यह है कि इस समय 40 से ऊपर लड़कियां भी उनसे ट्रेनिंग ले रही हैं. गौरीशंकर सिंह कोचिंग के लिए कोई फीस नहीं लेते. खास बात यह है कि उनके द्वारा ट्रेनिंग पाए नेशनल और स्टेट लेवल पर खेल चुके खिलाड़ी ही यहां नये बच्चों को फ्री ऑफ़ कास्ट ट्रेनिंग देते हैं.



ट्रेनिंग पाए बच्चे बढ़ा रहे हैं मान

गौरीशंकर सिंह को लोग सम्मान से मास्टर साहब के नाम से बुलाते हैं. उनका सपना है कि गरीब बच्चों को पूरा एक्सपोज़र देकर उन्हें सही प्लेटफार्म दिलाया जाए. उसी का नतीजा है कि आज यहां प्रैक्टिस करने वाले सुमित जूनियर, ललित उपाध्याय भारतीय टीम और चंदन, प्रशांत, विशाल जूनियर इंडियन हॉकी टीम का हिस्सा हैं.

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इनमें शामिल ललित उपाध्याय वर्ल्ड लीग में इंडियन टीम के मेम्बर थे. ललित आज बनारस के हॉकी खिलाड़ियों के रोल माडल हैं. उन्होंने एशिया कप फाइनल में गोल कर इंडिया को गोल्ड दिलाने में काफी अहम रोल निभाया था.

नहीं मिल रही कोई सरकारी मदद

गौरी शंकर सिंह कहते हैं कि अगर सरकार विवेक सिंह एकेडमी में एस्ट्रोटर्फ लगवा दे तो यहां से कहीं अधिक संख्या में नेशनल और इंटरनेशनल प्लेयर निकल सकते हैं. वे बताते हैं कि तीन साल पहले स्पोर्ट्स अथॉरटी ऑफ इंडिया के ऑफिसियल्स एकेडमी पहुंचे थे.

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उन्होंने पहली बार बिना किसी सरकारी मदद के एलक साथ इतने बच्चों को खेलते देखा. वे लोग फूडिंग, हॉस्टल की बात तो करके गए. लेकिन आज तक न उस पर कोई आगे बात बढ़ी और न ही कोई उनसे मिलने आया.



इंडियन टीम के सबसे मजबूत सेंटर हाफ थे विवेक सिंह

नब्बे के दशक में इंडियन हॉकी के सबसे मजबूत सेंटर हॉफ थे विवेक सिंह. विवेक ने इंडियन टीम को कई बड़ी जीत हासिल करने में अपनी अहम भूमिका निभाई. विवेक सिंह साल 1985 में कनाडा में खेले गए जूनियर वर्ल्ड कप से चर्चा में आए थे. उसी साल लंदन में हुई विल्सन सीरीज में विवेक को इंडियन हॉकी टीम का हिस्सा बनाया गया.

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वे 1986 से लेकर 1988 तक लगातार मलेशिया में होने वाले सुल्तान अजलान शाह हॉकी टूर्नामेंट में वह इंडियन टीम का अहम हिस्सा बने रहे. 1988 के सियोल ओलंपिक में कनाडा और कोरिया के खिलाफ भारत की जीत में सेंटर हाफ विवेक सिंह ने अपनी बड़ी भूमिका निभाई थी.

दो दशक तक छाए रहे हॉकी की दुनिया में

विवेक सिंह का जन्म आठ मार्च को 1967 को वाराणसी में हुआ था. उनके पिता गौरीशंकर सिंह भी हॉकी के नेशनल प्लेयर रहे हैं. उनके भाई राहुल सिंह ओलंपिक्स में इंडियन टीम का हिस्सा रहे हैं.

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दूसरे भाई प्रशांत सिंह भी लंबे समय तक इंडियन हॉकी टीम के मेम्बर रहे. लगभग दो दशक तक इंडियन हॉकी में अपनी एक अलग पहचान रखने और बनारस का नाम ऊंचा करने वाले विवेक सिंह कैंसर की लंबी बीमारी से लड़ते हुए दो फरवरी 2005 को इस दुनिया को अलविदा कह गए थे.