(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
विमलेंद्र मोहन प्रताप मिश्र उर्फ पप्पू भैया राम जन्मभूमि ट्रस्ट के ट्रस्टी बने, जानिए उनके बारे में
विमलेंद्र मोहन प्रताप मिश्र की नई पहचान श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के ट्रस्टी के तौर पर होगी.2009 में लोकसभा चुनाव में विमलेंद्र मोहन प्रताप मिश्र ने बसपा से चुनाव भी लड़ा था.
लखनऊ: अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए ट्रस्ट की घोषणा के बाद ट्रस्टियों के नाम सामने आए हैं. इन नामों में एक नाम विमलेंद्र मोहन प्रताप मिश्र उर्फ पप्पू भैया का है. इस नाम की बात हम इसलिए कर रहे हैं क्योंकि श्री रामजन्म भूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट में शामिल होने वाले 55 वर्षीय विमलेंद्र मोहन प्रताप मिश्र अयोध्या राजवंश के वारिस हैं. ट्रस्ट की घोषणा के कुछ घंटों बाद ही राम जन्मभूमि के रिसीवर कमिश्नर ने अपना चार्ज विमलेंद्र मोहन प्रताप मिश्र को सौंप दिया.
राज परिवार का है राम जन्मभूमि से गहरा संबंध
विमलेंद्र प्रताप मिश्र के पुरखों का राम जन्मभूमि से गहरा नाता रहा है. अयोध्या के महल में रहने वाले राजा विमलेंद्र प्रताप मिश्र अयोध्यावासियों के लिए आदरणीय व्यक्ति हैं. राजा विमलेंद्र प्रताप मिश्र सामाजिक तौर पर सक्रिय भी रहे हैं. वो अयोध्या की रामायण मेला समिति के सदस्य होने के साथ-साथ यूपी सरकार की ऐतिहासिक भवनों के संरक्षण देने वाली हेरिटेज योजना की कार्यकारिणी के भी सदस्य हैं.
1992 में राज परिवार ने निभाया था महत्वपूर्ण रोल
अयोध्या में साल 1992 में विवादित ढांचा गिराए जाने के बाद वहां पूजा कैसे शुरू हुई, इसकी बहुत रोचक कहानी है. कहते हैं इसकी कहानी भी राज परिवार से जुड़ी हुई है. विवादित ढांचा गिराए जाने के तुरंत बाद राजा विमलेंद्र मोहन प्रताप मिश्र ने अपने महल से रामलला की मूर्तियां राम जन्मभूमि परिसर में रखवा दी थीं. अयोध्या के जानकारों के मुताबिक उनके घर में पहले से एक मंदिर मौजूद था जहां रामलला की मूर्ति रखी हुई थी. यही मूर्ति आज भी टेंट में रखी हुई है. जिसका दर्शन करने लाखों लोग अयोध्या आते हैं. ये मूर्ति भगवान राम के बालरूप की है.
राजनीति में आये और फिर अलविदा भी कह दिया
रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के ट्रस्टी राजा विमलेंद्र प्रताप मिश्र अपना हाथ राजनीति में आजमा चुके हैं. साल 2009 में हुए लोकसभा चुनावों में वो कांग्रेस नेता निर्मल खत्री के खिलाफ बसपा के उम्मीदवार बने. तत्कालीन फैजाबाद सीट पर उनकी इज्जत और रुतबा होने के बावजूद राजनीति में उन्हें ऐसी मात मिली कि उन्होंने राजनीति को नमस्कार कर लिया. हालांकि अयोध्या के जानकार कहते हैं कि विमलेंद्र प्रताप मिश्र के चुनाव में उतरने के फैसले से उनकी मां विमला देवी खुश नहीं थीं.
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