नई दिल्ली: कल समाजवादी परिवार ही नहीं बंटा, मानो रिश्ते नाते सब बंट गए. पिता को हटाकर बेटे ने अध्यक्ष पद पर कब्जा किया वहीं चाचा को पार्टी से घर का रास्ता दिखा दिया गया. दिन भर राजनीतिक घटनाक्रम चलता रहा- यही वजह थी कि जब शाम हुई तो अखिलेश के चाचा की जुबान पर 'कसमें वादे प्यार वफा..' सारे रिश्ते नातों की हकीकत आ गई.



पिता मुलायम सिंह के विरोध के बाद भी रविवार को बेटे अखिलेश ने पार्टी का ना सिर्फ सम्मेलन बुलाया बल्कि उसी सम्मेलन में पिता की जगह खुद को पार्टी का सर्वेसर्वा घोषित कर दिया. उसी सम्मेलन में चाचा शिवपाल को भी पार्टी के अध्यक्ष पद से निकाल बाहर किया गया.

भले ये सब राजनीतिक घटनाएं थीं, मुमकिन है कि इन राजनीतिक जरूरी के पीछे इस बेटे की कोई मजबूरी भी रही हो लेकिन इस घटनाक्रम के तमाम किरदार किसी न किसी लहू के रिश्तों में बंधे थे. शायद यही वजह थी कि जब पिता को पार्टी अध्यक्ष के पद से बेदखल कर दिया गया. चाचा से उसके प्रदेश की कमान छीन ली गई. तब परिवार और जनमत से हार चुके चाचा की जुबान से जीवन का ये दर्शन फूट पड़ा.