नोएडा: ग्राउंड वॉटर का अधिक इस्तेमाल करने की वजह से पश्चिमी यूपी के कई इलाकों का जलस्तर लगातार घटता जा रहा है. सरकारी आंकड़े इस बात की पुष्टि करते हैं कि जमीन के नीचे जल में लगातार कमी आ रही है. केंद्रीय भूमि जल बोर्ड से प्राप्त आंकड़ों के मुताबिक ग्रेटर नोएडा, नोएडा, गाजियाबाद और बुलंदशहर के भूजल स्तर में भारी कमी आई है. साल 2013 से 2017 के बीच ग्रेटर नोएडा का ग्राउंड वॉटर तीन मीटर से ज्यादा नीचे चला गया है.


साल 2013 में ग्रेटर नोएडा में भूजल औसतन 7.50 मीटर नीचे तक था लेकिन साल 2017 में अब यह 11.11 मीटर नीचे चला गया है. वहीं नोएडा की स्थिति बहुत ही ज्यादा भयावह है. चार सालों में नोएडा का भूजल छह मीटर से ज्यादा नीचे चला गया है. जहां नोएडा में साल 2013 में भूजल स्तर औसतन 17.78 मीटर पर था वहीं साल 2017 में ये अब 24.13 मीटर तक पहुंच गया है. इतनी तेजी से जलस्तर का नीचे जाना बेहद हैरानी की बात है और आने वाली पीढ़ी के लिए बेहद दुरूह जीवन का प्रतीक है. कहते हैं कि इंसान भोजन के बगैर रह सकता है लेकिन पानी के बगैर जीना नामुमकिन है.


पश्चिमी यूपी के अन्य बड़े जिले गाजियाबाद की भी यही कहानी है. चार साल में गाजियाबाद का जलस्तर 3.25 मीटर नीचे चला गया है. साल 2013 में गाजियाबाद का जलस्तर औसतन 20.80 मीटर पर था लेकिन साल 2017 में ये 24.05 मीटर पर पहुंच गया. वहीं बुलंदशहर का भूजल स्तर 7.40 मीटर से 7.44 मीटर तक पहुंच गया है. पर्यावरण के जानकार बताते हैं साल दर साल प्राकृतिक जल स्त्रोतों को नष्ट किया जा रहा है. हम पानी जमीन से ज्यादा निकाल रहे हैं लेकिन जमीन के नीचे के पानी को रिचार्ज करने का हमारे पास कोई सिस्टम नहीं है.


नोएडा के पर्यावरणविद विक्रांत तोंगड़ ने बताया, "इन इलाकों में पानी का जबरदस्त तरीके से दोहन हो रहा है. उन्होंने कहा कि इन इलाकों में बिल्डर बेसबेंट बनाने के लिए जमीन का जल खाली करते हैं जिसकी वजह से जलस्तर में भारी कमी आ रही है. तोंगड ने कहा कि इलाके में कई सारे अवैध बोरवेल हैं और प्राकृतिक जल स्त्रोतों का अतिक्रमण किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि आधिकारिक रिकॉर्ड में गौतम बुद्ध नगर में लगभग 700 तालाब हैं लेकिन वास्तविकता में 300 तालाब भी नहीं बचे हैं. कई सारे तालाबों का अतिक्रमण कर लिया गया है." बता दें कि आज ही विक्रांत तोंगड़ की एक याचिका पर एनजीटी ने पराली जलाने के मामले में दिल्ली सरकार पर दो लाख का फाइन लगाया है और इसके लिए जल्द एक्शन प्लान दायर करने की मांग की है.

जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय के अधीन आने वाली संस्था केंद्रीय भूमि जल बोर्ड ने ग्राउंड वॉटर को रिचार्ज करने के लिए साल 2013 मास्टर प्लान बनाया था. इसके तहत देश भर में 1.11 करोड़ 'रेनवॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम' बनाए जाने थे. इस योजना के लिए कुल 79,178 करोड़ की राशि खर्च की जानी थी. लेकिन ये योजना अभी भी सही से धरातल पर उतरती दिखाई नहीं दे रही है. आलम ये है गौतम बुद्ध नगर के डीएम ऑफिस में बनाया गया 'रेनवॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम' 2010 से ही ठप पड़ा हुआ है. इसकी तस्वीर देखकर ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि सरकारी तंत्र कितनी गैरजिम्मेदारी से इसे लागू कर रही है.



85 प्रतिशत से अधिक ग्रामीण ग्राउंड वॉटर पर निर्भर


85 प्रतिशत से अधिक ग्रामीण पानी की जरूरतों के लिए भूजल पर निर्भर हैं. वहीं 50 प्रतिशत से अधिक शहरी लोग भूजल का इस्तेमाल करते हैं. देश का कृषि क्षेत्र भी भूजल पर ही निर्भर है. 50 प्रतिशत से अधिक खेतों की सिंचाई भूजल के जरिेए होती है. लेकिन बड़े पैमाने पर इसका इस्तेमाल और भूजल रिचार्ज न होने की वजह से जल स्तर में भारी कमी आ रही है. साल 1951 में कुल 3000 ट्यूबवेल थे लेकिन 2001 आते-आते ट्यूबवेल की संख्या बढ़कर 83.5 लाख हो गई. इसी तरह 1951 में 65 लाख हेक्टेयर खेतों की सिंचाई भूजल के जरिए होती थी लेकिन अब लगभग साढ़े चार करोड़ हेक्टेयर खेतों की सिंचाई भूजल से की जाती है.


कैसे बढ़ सकता है भूजल स्तर


भूजल स्तर बढ़ाने के लिए सबसे पहली जरूरत है कि बारिश का पानी सीधे जमीन के नीचे जाए. बारिश से ग्राउंड वॉटर रिचार्ज हो जाता है और उसका जलस्तर बढ़ जाता है. इसके लिए सरकार ने देश भर रेनवॉटर हारवेस्टिंग सिस्टम बनाने की योजना बनाई है. इससे बिल्डिंग की छत पर इकट्ठा होने वाला पानी सीधे जमीन के नीचे जाता है जिससे जलस्तर बढ़ता है. कई राज्यों ने इस दिशा में कानून भी बनाया है. वहीं प्राकृतिक स्त्रोत जैसे कि तालाब, वेटलैंड इन सबके जरिए भी ग्राउंड वॉटर बढ़ता है. लेकिन देश भर में तेजी से तालाब घट रहे हैं.