नई दिल्ली: मध्य प्रदेश की राजनीति से कई मिथक जुड़े हैं लेकिन जब बात कुर्सी की होती है तब कोई भी नेता रिस्क लेना नहीं चाहता. प्रदेश की एक ऐसी ही जगह इछावर है जहां सीएम पद पर रहते हुए बीजेपी और कांग्रेस के नेता जाने से डरते हैं. जो इस जगह गया है उसे अपनी कुर्सी से हाथ धोना पड़ा. फिर चाहें यहां कोई बड़ा कार्यक्रम हो या फिर कोई बैठक मुख्यमंत्री रहते हुए यहां कोई नहीं जाना चाहता.


इतिहास में ऐसी कई रोचक घटनाएं दर्ज हैं, जिससे नेताओं के डर का अंदाजा लगाया जा सकता है. हम बात कर रहे हैं ऐसे ही अंधविश्वास के बारे में जिसकी मानें तो वो कई मुख्यमंत्रियों की कुर्सी छीन चुका है.


सीएम शिवराज ने 13 सालों की सत्ता में नहीं रखा इछावर में कदम
बता दें कि अपनी 13 साल की सत्ता के दौरान सीएम शिवराज ने आज तक यहां कदम नहीं रखा है. जबकि इछावर राजधानी भोपाल से महज 57 किलोमीटर दूर है. वहां के लोगों के मुताबिक इछावर के चारों तरफ बावड़ी और शमशान घाट हैं. जिसके चलते यह किसी भी मुख्यमंत्री की कुर्सी जाने का कारण बन जाती है और यही कारण है कि कोई भी मुख्यमंत्री यहां जनसभाएं नहीं करते. जो भी मुखिया यहां किसी कार्यक्रम या सम्मेलन में पहुंचता है वह कभी दोबारा मुख्यमंत्री नहीं बन पाता.


2003 में दिग्विजय सिंह को गंवानी पड़ी थी सत्ता
इछावर के मिथक को तोड़ने का प्रयास कई मुख्यमंत्री कर चुके हैं लेकिन जितने भी मुख्यमंत्रियों ने यहां कदम रखा उन सभी को अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी. 2003 में तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह इस मिथक को तोड़ने के लिए 15 नवंबर, 2003 को आयोजित सहकारी सम्मेलन में शामिल होने इछावर आए थे. इस दौरान दिग्विजय सिंह ने अपने भाषण में कहा था कि "मैं मुख्यमंत्री के रूप में इछावर के इस मिथक को तोड़ने आया हूं" और उनकी इस यात्रा के बाद मध्य प्रदेश में हुए चुनावों में कांग्रेस को करारी हार का मुंह देखना पड़ा था.


अर्जुन सिंह की भी गई कुर्सी
इस अंधविश्वास को मानने वाले बताते हैं कि जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह थे. 1985 के दौर में सियासत ऐसी चली कि कांग्रेस पार्टी ने अर्जुन सिंह को मध्य प्रदेश से अलग कर दिया और उन्हें पंजाब का राज्यपाल बना दिया.


अशोकनगर को लेकर भी है अंधविश्वास


जब मोतीलाल वोरा को छोड़ना पड़ी कुर्सी
यह भी माना जाता है कि जब 1988 में कांग्रेस की सरकार थी और मोतीलाल वोरा मुख्यमंत्री थे. एक बार वे तत्कालीन रेल मंत्री माधवराव सिंधिया के साथ रेलवे स्टेशन के फुट ओवर ब्रिज का उद्घाटन करने अशोकनगर स्टेशन आए थे. यह ब्रिज दोनों पर ही भारी पड़ा. थोड़े दिनों बाद ही मोतीलाल वोरा को कुर्सी छोड़नी पड़ गई.


पटवा की भी कुर्सी ऐसे गई
इसके बाद मध्य प्रदेश में बीजेपी की सरकार बनी और मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा बने. इस मिथक को मानने वाले बताते हैं कि पटवा जैन समाज के पंच कल्याणक महोत्सव में शामिल होने अशोक नगर आए थे. यह वही दौर था जब अयोध्या में विवादित ढांचा ढहाया जा रहा था. चारों तरफ दंगे भड़क गए और राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया. इस दौरान पटवा की भी कुर्सी जाती रही.


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इसी उदाहरण को देखते हुए मुख्यमंत्री ने 13 साल से सीहोर जिले के इछावर में कदम नहीं रखा और अब विधानसभा चुनाव भी हैं. क्या वह अपने प्रत्याशी के लिए इछावर में प्रचार कर पाएंगे यह एक बड़ा सवाल लोगों के बीच में बना हुआ है क्योंकि पिछली बार पूर्व राज्यमंत्री करण सिंह वर्मा को कांग्रेस के शैलेंद्र पटेल के सामने हार का सामना करना पड़ा.


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