नई दिल्ली: राजस्थान में चुनाव परिणाम आ चुके हैं. कांग्रेस को बहुमत मिला है लेकिन अभी सीएम के नाम को लेकर पेंच फंसा हुआ है. दिल्ली में राहुल गांधी के घर बैठकों का दौर जारी है. आज सुबह राजस्थान से लौटे पर्यवेक्षकों ने राहुल गांधी को अपनी रिपोर्ट दी. इसके बाद अशोक गहलोत और सचिन पायलट ने जयपुर से दिल्ली आकर राहुल गांधी से मुलाकात की. इस मुलाकात के बाद दोनों नेता वापस जयपुर के लिए रवाना हो गए. सूत्रों के हवाले से खबर है कि आज शाम चार बजे जयपुर से मुख्यमंत्री के नाम का एलान हो सकता है.
राजस्थान में कांग्रेस ने प्रस्ताव पारित करके राहुल गांधी को सीएम चुनने का अधिकार भले दे दिया हो लेकिन दोनों के समर्थक लगातार नारेबाजी कर रहे हैं. जयपुर से लेकर दिल्ली तक गहलोत और सचिन पायलट समर्थकों में आपसी रस्साकसी देखने को मिली.
दोनों नेताओं के समर्थक ज़ोरदार नारेबाज़ी कर अपने अपने नेता को सीएम बनाने कि मांग कर रहे हैं. दरअसल मध्य प्रदेश की तरह ही राजस्थान में अनुभव बनाम युवा जोश की लड़ाई है. इस लड़ाई किसकी क्या ताकत है और क्या कमजोरी हम आपको बता रहे हैं.
अशोक गहलोत की ताकत
अशोक गहलोत ने गांधी परिवार की तीन पीढियों इंदिरा गांधी, सोनिया गांधी और फिर राहुल गांधी के साथ काम किया. राजस्थान में जीत के बाद गहलोत को कांग्रेस का चाणक्य भी कहा जा रहा है. लोगों ने कहना शुरू कर दिया है कि भले ही गहलोत राहुल गांधी की कोर टीम के सदस्य ना हों लेकिन वो उनके 'अहमद पटेल' साबित होंगे.
बता दें कि अहमद पटेल सोनिया गांधी के राजनतिक सलाहकार हैं. दो बार राजस्थान के मुख्यमंत्री रहे गहलोत का अनुभव भी उनके ताकत वाले कॉलम को और मजबूत बनाता है. गहलोत के पास केंद्र और राज्य दोनों ही स्तर पर सरकार और पार्टी में रहने का अनुभव है.
गहलोत की सोशल मीडिया पर भी लोकप्रियता काफी ज्यादा है. कांग्रेस में राहल गांधी के बाद फेसबुक पर सबसे ज्यादा फॉलोअर्स उन्हीं के हैं. जातीय समीकरण की बात करें तो गहलोत की पकड़ ओबीसी समुदाय पर मानी जाती है.
माना जाता है कि राहुल गांधी को 'सॉफ्ट हिंदुत्व का कार्ड खेलने का सुझाव गहलोत ने ही दिया था. राजस्थान में एक नारा प्रचलित है- 'गहलोत नहीं ये आंधी है, मेवाड़ का गांधी है.'
सचिन पायलट की ताकत
ज्योतिरादित्य सिंधिया की तरह की सचिन पायलट युवा जोश के नाव पर सवार हैं. सचिन भी राहुल गांधी के बेहद करीबी माने जाते हैं. राजस्थान में कांग्रेस का युवा चेहरा हैं. विधासभा चुनाव के लिए पूरे प्रदेश में काफी लंबे समय तक भ्रमण किया. राजस्थान कांग्रेस के अध्यक्ष हैं. लोकसभा उपचुनाव में दो सीट जीतने का फॉर्मूला भी सचिन पायलट ने ही दिया था.
पायलट की कमजोरी कहां है?
सचिन पायलट की कमजोरी की बात करें तो राजस्थान में कांग्रेस कार्यकर्ताओं के बीच उनकी स्वीकार्यता की कमी है. मुख्यमंत्री के पद पर उनके पास अनुभव ना होना उन्हें महंगा पड़ सकता है.
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