नई दिल्ली: आज पश्चिमी यूपी के 15 ज़िलों की 73 सीटों पर चुनाव है. करीब 2 करोड़ साठ लाख वोटर कुल 839 उम्मीदवारों की किस्मत का फैसला करेंगे. 73 सीटों के लिए 26,823 पोलिंग बूथ बनाए गए हैं और सुरक्षा के लिए केंद्रीय बलों की 826 कंपनियां तैनात की गई हैं. पोलिंग बूथों पर सुबह से ही भीड़ जुटने लगी है.
लेकिन यूपी के ये चुनाव पीएम नरेंद्र मोदी, अखिलेश यादव, राहुल गांधी, मायावती और अजित सिंह के लिए बेहद अहम है. आइये इस पर नज़र डालें और जानें कि आखिर इन दिग्गज़ों के लिए क्यों अहम है ये चुनाव.
सबसे पहले देखते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए चुनाव इतना अहम क्यों है?
उत्तर प्रदेश में 2014 लोकसभा चुनाव की कुल 80 सीटों में बीजेपी की 71 सीटों पर जीत मिली. ये वो आंकड़े थे जिन्होंने खुद बीजेपी को भी हैरान कर दिया था, बीजेपी ने भी नहीं सोचा था कि उत्तर प्रदेश में उन्हें इतनी बड़ी जीत मिलेगी. नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाने में यूपी की इस जीत ने बड़ी भूमिका निभायी.
इन्ही नतीजों के बाद से मोदी के लिए इस बार यूपी में विधानसभा चुनाव बेहद अहम हो गए हैं, क्योंकि नरेंद्र मोदी पर लोकसभा का नतीजा दोहराने की चुनौती है और इसके साथ ही नोटबंदी पर ये सबसे बड़ा जनमत होगा. जिसके बाद अगर जीत मिली तो 2019 लोकसभा चुनाव के लिए राह आसान होगी और अगर हार मिली तो पार्टी के भीतर से भी सवाल उठने लगेंगे.
अब आपको बताते हैं कि अखिलेश यादव के लिए ये चुनाव इतना अहम क्यों है?
साल 2012 में बीएसपी को हराकर एक बार फिर से सत्ता में वापसी की. साल 2012 में विधानसभा की कुल 403 सीटों में समाजवादी पार्टी को 224 पर जीत हासिल हुई. अखिलेश यादव के लिए ये सिर्फ आंकड़े भर नहीं हैं, बल्कि ये इस बार के विधानसभा चुनाव की चुनौतियां हैं, लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार और समाजवादी पार्टी की पारिवारिक कलह के बाद ये चुनौतियां और मुश्किल हो चुकी हैं इसीलिए अखिलेश के लिए ये चुनाव बेहद अहम हैं.
इसमें 5 साल के किए गए कामों की परीक्षा होगी और दंगों के दागों को धोना भी बड़ी चुनौती है. इसके साथ ही कांग्रेस से पहली बार दोस्ती का दम दिखाने की चुनौती है और साथ ही अगर यहां अखिलेश को जीत मिली तो पार्टी और देश की राजनीति में उनका कद बढ़ेगा लेकिन हार मिली तो पार्टी और परिवार का विवाद और ज्यादा मुखर होकर सामने आ जाएगा.
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के लिए क्यों अहम क्यों अहम है ये चुनाव?
उत्तर प्रदेश की कुल सीट 403 सीटों पर पिछले 15 साल कांग्रेस के लिए बहुत बुरे बीते हैं. जहां साल 2002 में कांग्रेस को 25 सीटें मिली, वहीं 2007 के चुनाव में पार्टी को 28 सीटों से संतोष करना पड़ा. वहीं 2012 में पार्टी सिर्फ 28 सीटों पर ही जीत पाई. उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की राह बेहद मुश्किल भरी रही है, लेकिन इस बार राहुल गांधी की अगुवाई में कांग्रेस ने यूपी में बड़ा दांव खेला है और वो दांव है समाजवादी पार्टी से गठबंधन का दांव, इसलिए राहुल गांधी के लिए ये चुनाव बेहद अहम हो गये हैं, क्योंकि लोकसभा चुनाव में बीजेपी से हार का बदला लेने का मौका है और अगर जीते तो कांग्रेस पार्टी का हौसला बुलंद होगा लेकिन अगर हार मिली तो पार्टी के भीतर राहुल को चुनौती मिलेगी. 2019 चुनाव से पहले उन्हें पार्टी अध्यक्ष बनने का रास्ता फंस सकता है.
बीएसपी सुप्रीमो मायावती के लिए अस्तित्व की लड़ाई?
पिछले चुनाव में हार कर सत्ता से बाहर होने वाली बीएसपी के लिए ये चुनाव अस्तित्व की लड़ाई है, मायावती की कोशिश है कि इस बार सत्ता में उनकी वापसी हो, इसके अलावा भी कई ऐसी बातें हैं जो मायावती के लिए इस चुनाव को बेहद अहम बनाती हैं. मायावती के लिए भी इस चुनाव में बहुत कुछ दांव पर लगा है, राज्य में अपने खोए आधार को वापस पाना, छिटक चुके वोट बैंक को फिर से अपनी ओर खींचना, पिछले 15 साल में बीएसपी के प्रदर्शन की बात करें तो 2002 में 98 सीटें जीते जिसके बाद साल 2007 में पार्टी ने शानदार प्रदर्शन करते हुए 206 सीटों के साथ सरकार बनाई और फिर 2012 में 80 सीटों के साथ बीएसपी के हाथ से सत्ता चली गई.
यानि साफ है कि मायावती पर उनके वोटरों का विश्वास पिछले चुनाव में कम हुआ, ज़ाहिर है अगर इस बार भी ऐसा हुआ तो राज्य में पार्टी के अस्तित्व पर ही खतरा मंडराने लगेगा, मायावती के लिए ये चुनाव इसलिए अहम है क्योंकि इस बार उनके मुस्लिम-दलित समीकरण की अग्निपरीक्षा होने वाली है. उनके सामने 2014 लोकसभा चुनाव की हार से निपटने की चुनौती है और अगर पार्टी जीती तो मायावती का कद फिर बढ़ेगा और अगर हारीं तो बीएसपी के भविष्य पर संकट आ सकता है.
अजित सिंह के लिए यूपी चुनाव अहम क्यों?
एक वक्त था जब यूपी की राजनीति में अजित सिंह का दबदबा था, खासकर पश्चिमी यूपी में. पिछले 15 साल में अजित सिंह की पार्टी आरएलडी यानि राष्ट्रीय लोक दल हाशिए पर ही जाती दिख रही है, लेकिन इस बार अजित सिंह को उम्मीद है कि पिछली बार से स्थिति बेहतर होगी. पिछले तीन चुनावों में आरएलडी के प्रदर्शन को देखें तो 2002 में 14 सीटें, 2007 में 10 सीटें और 2012 में 9 सीटें मिलीं यानि उनका ग्राफ लगातार नीचे ही आता गया.
इस बार अजित सिंह की पार्टी पूरे राज्य में अकेले चुनाव लड़ रही है, लेकिन उसका जनाधार पश्चिम उत्तर प्रदेश में ही मज़बूत रहा है. बीजेपी से जाट समुदायों की नाराज़गी अजित सिंह के हौसलों को बढ़ा रही है. अजित सिंह के लिए ये चुनाव इसलिए अहम है क्योंकि उनके सामने अपना खोया आधार वापस लाने की चुनौती है. जाट समुदाय के एकछत्र नेता बने रहने का दम दिखाना होगा और अगर हारे तो यूपी में उनकी राजनीति खत्म हो सकती है.