World Environment Day 2020: लॉकडाउन में मिल गया प्रकृति का खोया रूप
आज विश्व पर्यावरण दिवस है. दूसरी तरफ कोरोना का संकट काल. लेकिन कोरोना से बचने के लिये लगाये गये लॉकडाउन ने प्रकृति का रूप बदल दिया है. हवा-पानी सभी में जिस तरह की स्वच्छता देखने को मिली है, उसकी हर तरफ चर्चा हो रही है.
देहरादून. कोरोना वायरस ने भले ही पूरी दुनिया को परेशान करके रख दिया हो लेकिन सबसे बड़ा परिवर्तन प्रकृति में देखने को मिला है. इसकी तस्दीक ख़ुद प्रकृति बयां कर रही है. जहां एक ओर प्रदूषण शून्य हो गया वहीं गंगा, नदी, गदेरों का पानी भी स्वच्छता के साथ कल-कल करके बह रहा है, इसके साथ ही हिमालय की पहाड़ियों पर भी इसका सीधा असर देखने को मिल रहा है.
भू-विज्ञान संस्थान के डायरेक्टर काला चंद साई भी ये मानते हैं कि इस लॉकडाउन ने ख़राब होते पर्यावरण पर मरहम लगाने का काम किया है. यानी की लॉकडाउन में प्रकृति को अपना खोया हुआ रूप मिल गया है. वाडिया इंस्टिट्यूट का मानना है कि सड़कों पर वाहनों की आवाजाही नहीं रही, इंडस्ट्री पूरी तरह से बंद रही. इससे कई बड़े शहरों का भी प्रदूषण भी काफी कम हो गया है. लॉकडाउन होने से प्रकृति ने ये बता दिया की इसको नुकसान पहुंचाने में लोगों का ही बड़ा हाथ है.
यानि की ज़ाहिर है जो प्रकृति का रूप इस वक़्त देखने को मिल रहा है इसे नुकसान पहुंचाने वाला इंसान ही है. क्योंकि इंडस्ट्री बंद रही, लोग घरों में रहे और वाहनों का प्रदूषण शून्य रहा. यहीं नहीं सरकार की तमाम योजनाएं जो गंगा को साफ करने का काम नहीं कर पाई वो कोरोनाकाल में लॉकडाउन ने कर दिया.
सुंदरलाल बहुगुणा ने जारी किया संदेश
पर्यावरणविद भी मानते हैं कि कोरोना वायरस से अब सभी को ये समझ लेना चाहिए कि बिना प्रकृति के इंसान अपने जीवन को नहीं चला सकता. विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर 'चिपको आन्दोलन' के प्रणेता प्रख्यात पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा ने एक वीडियो संदेश भी जारी किया है. इसके जरिये उन्होंने कहा कि प्रकृति के संरक्षण के लिए तीन सूत्र बनाये रखना जरूरी है.
वहीं उत्तराखंड सरकार के प्रवक्ता मदन कौशिक ने 'विश्व पर्यावरण दिवस' की बधाई देते हुए बताया कि लॉकडाउन की वजह से गंगा नदी, शीशे की तरह साफ हो गई है. जिसकी सराहना देश दुनिया में हुई है. लेकिन अगर पर्यावरण के दृष्टिगत मापदंडों का पालन अपने रोजमर्रा की जिंदगी में करते हैं तो इससे पर्यावरण को सुरक्षित रखा जा सकता है.
तपती गर्मियों से मिली इस बार राहत से लोग ख़ुश हैं। जानकार भी मानते हैं कि इसके पीछे कोरोना वायरस की वजह से हुआ लॉकडाउन है. इस दौर में प्रकृति ने ख़ुद की मरम्मत की है। गंगा, नदी, गदेरों और हिमालय की पहाड़ियों में आया बदलाव इस बात की तस्दीक कर रहा है कि इस लॉकडाउन ने ख़राब हुए पर्यावरण की मरम्मत करने का काम भी किया है.