गोरखपुर: पूर्वांचल में बीजेपी टिकट बंटवारे के बाद से लगातार दबाव में दिख रही है. प्रधानमंत्री मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी और पांच बार से गोरखपुर से सांसद महंत आदित्यनाथ के इलाकों में भी टिकट बंटवारे ने बीजेपी के लिए चुनावों से पहले मुश्किल खड़ी कर दी है.


खुद आदित्यनाथ के संगठन हिन्दू युवा वाहिनी ने बीजेपी पर आदित्यनाथ की उपेक्षा का आरोप लगाते हुए पूर्वांचल की सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार दिए हैं. हालाँकि मौके की नजाकत को देखते हुए आदित्यनाथ ने इस विवाद से किनारा करते हुए बीजेपी का साथ देने की बात कही है. साथ ही कहा है कि बगावत करने वाले कार्यकर्ताओं के खिलाफ कार्रवाई की जायेगी.


लेकिन हिन्दू युवा वाहिनी के मैदान में उतरने से बीजेपी को कुछ सीटों पर ही सही, कुछ वोटों का नुकसान तो ज़रूर हो सकता है.


आदित्यनाथ साल 2014 से लगातार किनारे किये जाते दिख रहे हैं. मोदी सरकार बनने पर ऐसी उम्मीद जताई जा रही थी कि उन्हें केंद्र में मंत्री बनाया जायेगा. लेकिन ना 2014 में और ना ही मोदी के दुसरे मंत्रिमंडल विस्तार में उन्हें मंत्रिमंडल में शामिल किया गया.


पार्टी ने 2017 के विधानसभा चुनाव के लिए गठित प्रदेश चुनाव समिति के 29 सदस्यों में भी योगी को जगह नहीं दी. जाहिर है बीजेपी में योगी इन वजहों से हाशिये पर जाते दिखने लगे. योगी को भी पता है कि बिना बीजेपी उनका राजनीतिक वजूद बहुत ज्यादा नहीं रह जायेगा. इसलिए शायद वो 2002 की तरह इस बार बीजेपी के खिलाफ नहीं जा रहे हैं और ना ही किसी भी बीजेपी के अधिकृत प्रत्याशी का विरोध भी नहीं कर रहे हैं.


हालाँकि बीजेपी के उम्मीदवारों की लिस्ट में जिन नामों की घोषणा की गई है, उनमे खास तौर पर गोरखपुर में योगी की पसंद को तरजीह दी गई है. खुद को 'योगी सेवक' बताने वालों को कई वरिष्ठ पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं को किनारे कर प्रत्याशी बनाया गया है. ये 'योगी सेवक' कभी बीजेपी के नहीं माने गए. हालाँकि इन सबके बावजूद योगी पूर्वांचल में अपनी पसंद से टिकट बाँटना चाहते थे, लेकिन बीजेपी नेतृत्व ने उनकी पसंद को गोरखपुर तक सीमित कर उनकी मुसीबत और बढ़ा दी है.


अगर इन सीटों पर योगी ने जीत दिला भी दी, तब भी उनकी राजनीतिक कद काठी में कोई बहुत इज़ाफ़ा नहीं होगा. लेकिन योगी की पसंद वाली सीटों पर अगर बीजेपी हारी, तो इससे उनके प्रभाव पर सवालिया निशान लगाने का मौका पार्टी को मिल जायेगा.


हिन्दू युवा वाहिनी क्या है


साल 2002 के अप्रैल में राम नवमी के दिन योगी आदित्यनाथ ने गोरखपुर के राजनीतिक हालात में शहर के कुछ नवयुवकों को संगठित कर हिन्दु युवा वाहिनी की आधारशिला रखी. इस संगठन का विस्तार उत्तर प्रदेश के सभी ज़िलों में किया गया है.


साल 2002 में बीजेपी ने गोरखपुर सदर सीट से प्रदेश में मंत्री रहे तत्कालीन विधायक शिव प्रताप शुक्ला को बीजेपी का उम्मीदवार बनाया था. शुक्ला के नाम पर आदित्यनाथ को आपत्ति थी. इसलिए बीजेपी के अधिकृत उम्मीदवार के खिलाफ आदित्यनाथ ने बीजेपी में रहते हुए बगावत कर डॉ राधामोहन दास अग्रवाल को अपना उम्मीदवार बनाया और बीजेपी को हराकर अपना वर्चस्व शहर में कायम कर लिया. इसी बगावती तेवर की वजह से आदित्यनाथ ने हिन्दू युवा वाहिनी का गठन किया गया.


ये संगठन गोरखपुर समेत पूर्वांचल में हिंदुओं के मुद्दों को लेकर काफी सक्रिय रहा है. संगठन के युवा कार्यकर्त्ता छोटी मोटी मारपीट से लेकर 'लव जिहाद' और 'घर वापसी' जैसे मुद्दों पर हिंदुओं के पक्ष में मुखर होकर सड़क पर उतरने को लेकर चर्चित रहा है.


साल 2007 के दंगों में भी युवा वाहिनी के कई कार्यकर्ताओं पर नामजद मुक़दमे तक दायर हो चुके हैं. ऐसे में अब हिन्दू युवा वाहिनी का खुलकर विरोध करना समाज के छोटे ही सही लेकिन उस वर्ग को बीजेपी से विमुख ज़रूर कर सकता है, जो कट्टर हिन्दू सोच रखते हैं. ये संगठन भले ही कहीं जीतने की स्थिति में ना हो लेकिन कम अंतर से जीत हार वाली सीटों पर ये 'खेल' ज़रूर कर सकते हैं.