पटना: सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी देश में मॉब लिंचिंग की घटनाएं नहीं रुक रही हैं. ताजा मामला बिहार के सीतामढ़ी से सामने आया है. सीतामढ़ी के रीगा थाना के रमनगरा इलाके में भीड़ की हिंसा की वजह से एक युवक की मौत हो गई है, घटना रविवार की है.


पिकअप वैन के चालक से लूट की अफवाह के बाद गांव वालों ने एक युवक को लाठी डंडों से इतना मारा कि वो बेहद गंभीर रूप से जख्मी हो गया. रूपेश नाम के इस जख्मी युवक की पटना में इलाज के दौरान मौत हो गई. पुलिस ने एक नामजद और डेढ़ सौ अज्ञात लोगों के खिलाफ केस दर्ज कर लिया है.


तेजस्वी यादव का नीतीश पर हमला
सीतामढ़ी में भीड़ की हिंसा का शिकार हुए युवक के मामले में पूर्व डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने बड़ा हमला बोला है. तेजस्वी यादव ने ट्वीट किया, ''नीतीश जी, बिहार में कल मॉब लिंचिंग की दो घटनाएँ और हुई है. सीतामढ़ी में एक युवक की भीड़ ने सरेआम पीट-पीटकर हत्या कर दी. जमुई में भी भीड़ ने एक को पीटा. केंद्र की मॉब लिंचिग समर्थक सरकार ने बिहार में ऐसी घटनाओं को प्रायोजित करने पर आपको ईनाम देने का वादा किया है क्या?''




हिंसा बन रही भीड़ की आदत
बिहार में इंसाफ के नाम पर शुरू हुई हिंसा अब भीड़ की आदत बनती जा रही है. आठ सिंतबर को रोहतास में बच्चों के झगड़े में एक महिला की जान ले ली गई. सात सितंबर को बेगूसराय में भीड़ ने अपहरण के शक में तीन युवकों को पीट पीटकर मार डाला. इसी तरह 20 अगस्त को आरा में भीड़ एक महिला की जान की दुश्मन बन गई. इसे निर्वस्त्र करके सरेबाजार घुमाया गया.


भीड़ की हिंसा पर सुप्रीम कोर्ट के निर्देश
भीड़ की हिंसा को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 17 जुलाई को कुछ दिशा निर्देश जारी किए थे. उस दिशा निर्देश के बावजूद देश में भीड़ की हिंसा नहीं रूक रही थी. परसों ही सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर राज्यों को एक हफ्ते के अंदर दिशा निर्देश लागू करने का आदेश दिया है.


सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के मुताबिक
-हर जिले में एसपी रैंक का अधिकारी नोडल ऑफिसर बने
-जरूरत के मुताबिक नोडल ऑफिसर स्पेशल टास्क फोर्स बनाए
-ऐसे इलाकों की पहचान हो जहां हिंसा की आशंका हो, ऐसी जगहों पर विशेष चौकसी बरती जाए
-हिंसक भीड़ को तितर-बितर करना वहां मौजूद पुलिस अधिकारी की ज़िम्मेदारी
-भीड़ द्वारा हिंसा के मामलों में तुरंत FIR दर्ज हो
-मुकदमों की फास्ट ट्रैक सुनवाई कर 6 महीने में निपटारा हो
-राज्य पीड़ित मुआवजा योजना बनाई जाए और स्थिति की गंभीरता के हिसाब से मुआवजा तय कर 30 दिन में दिया जाए
-आरोपियों की जमानत अर्जी पर विचार से पहले पीड़ित पक्ष को भी सुना जाए
-भीड़ की हिंसा की रोकथाम/जांच में लापरवाही बरतने वाले पुलिस/प्रशासन के अधिकारी के खिलाफ विभागीय कार्रवाई 6 महीने में पूरी हो
-केंद्र और राज्य सोशल मीडिया या दूसरे तरीकों से भड़काऊ मैसेज/वीडियो फैलाने पर रोकथाम के लिए ज़रूरी कदम उठाए